नाचु रे मेरो मन नट हो कबीर भजन

नाचु रे मेरो मन नट हो कबीर भजन

 
नाचु रे मेरो मन नट हो लिरिक्स Nachu Re Mero Man Nat Ho Lyrics Kabir Bhajan Lyrics

कवि कबीर
नाचु रे मेरो मन नट होय
ज्ञान के ढोल बजाय रैन दिन
सब्द सुने सब कोई
राहू केतु नवग्रह नाचे
जमपुर आनँद होई
नाचु रे मेरो मन...
छापा तिलक लगाए बाँस चढ़ि
होई रहु जग से न्यारा
सहस कला कर मन मेरो नाचे
रीझे सिरजनहारा
नाचु रे मेरो मन...
जो तुम कूद जाओ भवसागर
कला बदाऊं में तेरो
कहे कबीर, सुनो भाई साधो
हो रहु सतगुरु चेरो
नाचु रे मेरो मन...


'Naachu Re Mero Mann' by Bindhumalini & Vedanth

Naachu Re Mero Mann
POET Kabir
Naachu re mero mann nat hoye
Gyaan ke dhol bajaaye rain din
Sabd sune sab koi
Raahu Ketu navgrah naache
Jampur aanand hoi
Naachu re…
Chhaapa tilak lagaaye baans chadhhi
Hoi rahu jag se nyaara
Sahas kala kar mann mero naache
Reejhe sirjanhaara
Naachu re…
Jo tum kood jaao bhavsaagar
Kala badaaun mein tero
Kahe Kabir, suno bhai saadho
Ho rahu satguru chero
Naachu re…
 
When Kabir dances, the planets and stars dance with him! And so do we all – who were brought to our feet by the delightful poetic and musical energy of this song! Bindhumalini and Vedanth composed this song in a train on their way to the Rajasthan Kabir Yatra. They got off that train and sang this freshly minted song to all of us a few days later, captivating audiences.
 
यह कबीर भजन मन को संबोधित करते हुए उसे एक 'नट' (नर्तक या कलाबाज़) बनने का आह्वान करता है, जो जीवन और संसार की मायावी डोरियों पर संतुलन बनाते हुए आध्यात्मिक नृत्य करे, जिसका एकमात्र उद्देश्य परमात्मा को प्रसन्न करना है: कबीर कहते हैं, "हे मेरे मन, तू नट (कलाकार) बनकर नाच," और यह नृत्य किसी बाहरी संगीत पर नहीं, बल्कि 'ज्ञान के ढोल' (विवेक और सत्य के ज्ञान) पर होना चाहिए, जिसके 'सबद' (शब्द/ध्वनि) को सभी लोग सुन सकें। इस आंतरिक आनंदमय नृत्य के प्रभाव से 'राहू केतु नवग्रह' भी नाच उठते हैं और 'जमपुर' (मृत्यु का लोक) में भी आनंद छा जाता है, जिसका अर्थ है कि सच्चे ज्ञान और भक्ति से मन के सारे भ्रम, भय और कर्मों के बंधन समाप्त हो जाते हैं। 'छापा तिलक लगाए बाँस चढ़ि' का तात्पर्य है कि नट की तरह संसार की प्रशंसा या निंदा से निर्लिप्त होकर एकांत में रहकर, अपनी 'सहस कला' (हजारों कलाएं/अभ्यास की एकाग्रता) से मन को नचाना चाहिए, ताकि 'सिरजनहारा' (सृष्टिकर्ता/ईश्वर) प्रसन्न हो जाएं। अंत में, कबीर इस बात पर ज़ोर देते हैं कि अगर मन संसार रूपी 'भवसागर' से कूदकर पार जाना चाहता है, तो उसे अपनी 'कला' (योग्यता) दिखानी होगी, और मोक्ष पाने का एकमात्र मार्ग यही है कि व्यक्ति 'सतगुरु चेरो' (सच्चे गुरु का शिष्य) बनकर रहे, क्योंकि गुरु के मार्गदर्शन में ही यह आंतरिक नृत्य पूर्ण होकर जीवन का लक्ष्य प्राप्त कर सकता है। 
 
Cameras: Smriti Chanchani & Amitesh Singhal
Editing: Piyush Kashyap & Aarthi Parthasarathy
Sound: Atirek Pandey
Sub-Titling: Nandini Nayyar
Collection: The Kabir Project 
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

इस ब्लॉग पर आप पायेंगे मधुर और सुन्दर भजनों का संग्रह । इस ब्लॉग का उद्देश्य आपको सुन्दर भजनों के बोल उपलब्ध करवाना है। आप इस ब्लॉग पर अपने पसंद के गायक और भजन केटेगरी के भजन खोज सकते हैं....अधिक पढ़ें

Next Post Previous Post