मुर्शिद नैनों बीच नबी है कबीर भजन

मुर्शिद नैनों बीच नबी है कबीर भजन

 
मुर्शिद नैनों बीच नबी है  Murshid Naino Beech Nabi Hai Lyrics Kabir Bhajan Lyrics

कवि कबीर
मुरशिद नैनों बीच नबी है
स्याह सफेद तिलों बिच तारा
अविगत अलख रबी है
मुरशिद नैनों बीच नबी है
आँखी मद्धे पांखी चमकै चमकै
पँखी मद्धे द्वारा
तेही द्वार दूरबीन लगाकै लगाकै
उतरे भवजल पारा
मुरशिद नैनों बीच नबी है
सुन्न सहर बास हमारा
तहुँ सरवंगी जावै
साहेब कबीर सदा के संगी
सबद महल ले आवै
मुरशिद नैनों बीच नबी है
 

'Murshid Nainon Beech Nabi Hai' by Madhup Mudgal
 
In the centre of the eye
A bird shimmers
In the bird
A door
On that door
I put a telescope
And navigate this world-ocean
In this enigmatic song, Kabir points to a space between the eyes, or within the eyes, where the ‘prophet’ resides. The gleaming image of a bird pulsing in the pupil of the eye points to a mysterious doorway. In this song Kabir uses a more explicitly Islamic or Sufi terminology - ‘murshid’ is the spiritual teacher and ‘nabi’ stands for the Prophet.
 
Interview by: Shabnam Virmani & Tara Kini
Camera: Shabnam Virmani
Camera Assistance: Smriti Chanchani
Editing: Sharanya Gautam
Sub-Titling: Shruti Kulkarni & Vipul Rikhi
Collection: Kabir Project 
 
यह भजन भी कबीर की गूढ़, अंतरंग और साधना-प्रधान रहस्यवादी अभिव्यक्ति को दर्शाता है, जिसमें वह आत्मा को भवसागर पार कराने वाले मार्गदर्शक (गुरु या 'मुरशिद') को नेत्रों के भीतर खोजने की बात करते हैं: कबीर यहाँ 'मुरशिद नैनों बीच नबी है' (गुरु/मार्गदर्शक आँखों के भीतर पैगंबर/दिव्य ज्योति है) कहकर इस बात पर ज़ोर देते हैं कि सत्य का ज्ञान या ईश्वर का साक्षात्कार बाहर नहीं, बल्कि मनुष्य के अंदर ही स्थित है, विशेष रूप से 'स्याह सफेद तिलों बिच तारा' (काले और सफेद हिस्से के बीच की पुतली/दिव्य बिंदु) में, जिसे अध्यात्म में तीसरा नेत्र या आज्ञा चक्र का स्थान माना जाता है। इसी पुतली में 'आँखी मद्धे पांखी चमकै' (आँखों के मध्य पक्षी/चमकीली वस्तु झलकती है) और इस पक्षी के भीतर 'पँखी मद्धे द्वारा' (एक रहस्यमय द्वार) है, जिस पर 'दूरबीन' (सूक्ष्म दृष्टि या ध्यान की एकाग्रता) लगाकर ही इस संसार-सागर ('भवजल') से पार उतरा जा सकता है, जो दर्शाता है कि आंतरिक ध्यान और गुरु के मार्गदर्शन से ही मुक्ति संभव है। अंत में, कबीर कहते हैं कि उनका वास 'सुन्न सहर' (शून्य शहर/समाधि की अवस्था) में है, जहाँ गुरु का 'सबद महल' (शब्द या उपदेश का महल) आत्मा को उस परम सत्य तक ले जाता है, जिससे जन्म-मरण का चक्र टूट जाता है और जीव 'अविगत अलख रबी' (अदृश्य और निराकार ईश्वर) से एकाकार हो जाता है। 
 
Next Post Previous Post