कबीर कहा गरबियो, काल गहे कर केस।
ना जाने कहाँ मारिसी, कै घर कै परदेस।।
ना जाने कहाँ मारिसी, कै घर कै परदेस।।
Kabir Kaha Garabiyo Kaal Gahe Kar Kes,
Na Jaane Kaha Marisi Ke Ghar Ke Pardes.
कबीर कहा गरबियो दोहे का हिंदी मीनिंग : जीव को अपनी जवानी, धन दौलत और कुल पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए क्यों की काल हर समय उसके सर पर मंडराता रहता है। काल ने जीव को उसके बालो से पकड़ रखा है, काल के नियंत्रण में है जीव। काल जीव को कभी भी अपना शिकार बना सकता है भले ही वह अपने घर, देश में हो या फिर परदेस में, काल कहीं भी जीव को अपना शिकार बना सकता है। भाव है की यह जीवन नश्वर है, एक रोज समाप्त हो जाना है और किस भाँती और कहाँ इसका अंत होगा या कहा नहीं जा सकता है। इसलिए जीव को घमंड नहीं करना चाहिए और हरी नाम का सुमिरण करना चाहिये।
कबीर मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम्बार।
तरूवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर न लगता डारि।।
तरूवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर न लगता डारि।।
मनुष्य जीवन बहुत ही दुर्लभ है और यह बार बार नहीं प्राप्त होता है इसलिए इस जीवन का उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए। जैसे वृक्ष सेपत्ता टूट कर गिर जाता है और उसे ऐसा करने में कुछ ख़ास वक़्त नहीं लगता और एक बार पत्ता टूट कर गिर जाए उसके बाद वह पुनः वृक्ष से नहीं मिल सकता है। भाव है की यह जीवन क्षणिक है और कभी भी समाप्त हो सकता है, इसलिए वक़्त रहते हरी नाम का सुमिरण ही जीवन का आधार है। जीवन का समय सिमित है इसलिए वक़्त रहते सुमिरण का लाभ लेना चाहिए अन्यथा अनमोल मानव जीवन यूँ ही समाप्त हो जाएगा।
कबीर गाफील क्यों फिरय, क्या सोता घनघोर
तेरे सिराने जम खड़ा, ज्यों अंधियारे चोर।
तेरे सिराने जम खड़ा, ज्यों अंधियारे चोर।
काल अँधेरे में चोर के समान छुप के खड़ा है और कभी भी वह सोते हुए जीव को भी अपना शिकार बना सकता है। सोने से आशय है की अज्ञान की रात और उसमे गाफिल होकर सोना। अज्ञान ही अँधेरा है और उसमे काल छिपा हुआ है। भाव है की अज्ञान कीरात्री से बाहर आकर सत्य की राह पर चलकर हरी सुमिरण करना चाहिए।
काल छिछाना है खड़ा, जग पियारे मीत।
राम सनेही बाहिरा, क्यां सोबय निहचिंत।।
राम सनेही बाहिरा, क्यां सोबय निहचिंत।।
काल रूपी काला बाज सिरहाने खड़ा है वह कभी भी जीव को अपना शिकार बना सकता है और उसने ईश्वर को याद नहीं किया है इसलिए उसका राम भी भाहर ही है, ऐसी अवस्था में निर्भीक होकर सोना मुर्खता है। बाज रूपी काल से ईश्वर का सुमिरण ही बचा सकता है।
ज्ञानी कहे सुनो अन्याई, काटो फंद जीव ले जाई।।
जेतिक फंद तुम रचे विचारी, सत्य शबद तै सबै बिंडारी।।
जौन जीव हम शब्द दृढावै, फंद तुम्हारा सकल मुकावै।।
चैका कर प्रवाना पाई, पुरुष नाम तिहि देऊं चिन्हाई।।
ताके निकट काल नहीं आवै, संधि देखी ताकहं सिर नावै।।
जेतिक फंद तुम रचे विचारी, सत्य शबद तै सबै बिंडारी।।
जौन जीव हम शब्द दृढावै, फंद तुम्हारा सकल मुकावै।।
चैका कर प्रवाना पाई, पुरुष नाम तिहि देऊं चिन्हाई।।
ताके निकट काल नहीं आवै, संधि देखी ताकहं सिर नावै।।
अतः उपरोक्त से स्पष्ट होता है की कबीर साहेब ने वाणी दी है की काल के अनुसार भी भक्ति का मार्ग चयन नहीं करना चाहिए बल्कि भक्ति का मार्ग बहुत ही सोच समझ कर चुनना चाहिए ।
सुमिरण की सुधि यौ करो, ज्यौं गागर पनिहारि।
हालै डीलै सुरति में, कहैं कबीर बिचारी ।।
हालै डीलै सुरति में, कहैं कबीर बिचारी ।।
काल से यदि बचना है और भव सागर से यदि पार उतरना है तो भक्ति इस भाँती करनी चाहिए जैसे पनिहारी गागर में पानी भरती है,पानी उसके पात्र में भरा हुआ होता है और उसका पूरा शरीर हिलता डुलता है (पानी को ले कर चलने पर) लेकिन उसका पानी जरा भी पात्र से बाहर नहीं छलकता है । भाव है की जैसे पनिहारी का पूरा ध्यान अपने पानी पर रहता है वैसे ही साधक को भक्ति में अपना पूरा ध्यान लगाना चाहिए और माया से बच कर रहना चाहिए।
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