साखी शब्द बहुतक सुना मिटा न मन का मोह मीनिंग
साखी शब्द बहुतक सुना, मिटा न मन का मोह |
पारस तक पहुँचा नहीं, रहा लोह का लोह ||
Sakhi Shabad Bahutak Suna, Mita Na Man Ka Moh,
Paras Tak Pahucha Nahi, Raha Loh Ka Loh
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग अर्थ/भावार्थ
कबीर साहेब का सन्देश है की साखी और शबद (गुरु के सन्देश/वाणी) बहुत सुनने के बाद भी यदि उस पर अमल नहीं किया जाय और मन का संदेह दूर ना किया जाय, लोभ को ना छोड़ा जाय तो उस ज्ञान का क्या फायदा. अज्ञानी व्यक्ति लोहे की भाँती है यदि वह पारस के पास नहीं पंहुचता है तो वह लोहे की तरह ही रहता है, पारस नहीं बन पाता है. कबीर दास जी के इस दोहे का अर्थ है कि ज्ञान से पूर्ण बहुत सारे शब्दों को सुनने के बाद भी यदि मन का अज्ञान नहीं मिटा, तो समझ लो कि पारस-पत्थर तक न पहुँचने से लोहा ही लोहा रह गया है। कबीर दास जी कहते हैं कि ज्ञान ही मन का अज्ञान मिटा सकता है। ज्ञान से मन में प्रकाश होता है और अज्ञान का अंधेरा दूर होता है। ज्ञान से मन शुद्ध होता है और मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
कबीर दास जी का मानना है कि ज्ञान को केवल सुनने से ही नहीं, बल्कि उसे समझने और आत्मसात करने से ही प्राप्त किया जा सकता है, उसे जीवन में उतारने से ही मनुष्य का भला होने वाला है। यदि हम केवल साखी शब्दों को सुनते हैं, लेकिन उन्हें समझते नहीं हैं और उन्हें अपने जीवन में नहीं उतारते हैं, तो हमारा मन अज्ञान से भरा रहेगा, हम कभी भी ज्ञान का उपयोग नहीं कर पायेंगे। इस प्रकार, कबीर दास जी के इस दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें ज्ञान को सुनने के साथ-साथ उसे समझने और आत्मसात करने का भी प्रयास करना चाहिए। ज्ञान से ही मन का अज्ञान मिट सकता है और हम मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। कबीर दास जी का यह दोहा ज्ञान के महत्व को समझाता है। वे कहते हैं कि ज्ञान से ही मन का अज्ञान मिट सकता है।
ज्ञान ही हमें सांसारिक मोह-माया से मुक्त कर सकता है और हमें जीवन का सही अर्थ समझा सकता है। हमें अपने जीवन में ज्ञान को महत्व देना चाहिए। हमें ज्ञान से परिपूर्ण साखी शब्दों को सुनना चाहिए और उनके अनुसार अपने जीवन को जीना चाहिए। कबीर दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने जीवन में ज्ञान को महत्व देना चाहिए। हमें ज्ञान से परिपूर्ण साखी शब्दों को सुनना चाहिए और उनके अनुसार अपने जीवन को जीना चाहिए।
दोहे का सन्देश : इस दोहे का सन्देश है की हमें गुरु के ज्ञान को अपने जीवन में उतारने की आवश्यकता है, अपने मन से माया का लोभ छोड़ने की आवश्यकता है. अपने जीवन से लोभ और मोह को छोड़कर हमें गुरु के शब्द/वाणी पर अमल करना चाहिए, उसे आत्मसात करके अपने जीवन में उसी के अनुसार आचरण करना चाहिए. माया का लोभ छोड़कर इश्वर की भक्ति करने पर हमें अवश्य ही लाभ मिलता है.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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