श्री वल्लभाचार्य द्वारा रचित 'श्री यमुनाष्टक' में यमुना नदी की महिमा का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र भक्तों को यमुना देवी की कृपा प्राप्त करने और आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रेरित करता है। यमुनाष्टक का अर्थ नीचे दिया गया है.
नमामि यमुनामहं सकल सिद्धि हेतुं मुदा, मुरारि पद पंकज स्फुरदमन्द रेणुत्कटाम। तटस्थ नव कानन प्रकटमोद पुष्पाम्बुना, सुरासुरसुपूजित स्मरपितुः श्रियं बिभ्रतीम।।हिंदी अर्थ: मैं उन यमुना देवी को प्रसन्नतापूर्वक प्रणाम करता हूँ, जो सभी सिद्धियों की दात्री हैं। जिनके जल में मुरारि (भगवान श्रीकृष्ण) के चरण कमलों की धूलि मिली हुई है। जिनके तट पर नवीन काननों (वनों) में खिले पुष्पों की सुगंधित जलधाराएँ बहती हैं। जो देवताओं और असुरों द्वारा पूजित हैं और कामदेव (स्मर) के पिता (ब्रह्मा) की लक्ष्मी (श्री) स्वरूपा हैं।
कलिन्द गिरि मस्तके पतदमन्दपूरोज्ज्वला, विलासगमनोल्लसत्प्रकटगण्ड्शैलोन्न्ता। सघोषगति दन्तुरा समधिरूढदोलोत्तमा, मुकुन्दरतिवर्द्धिनी जयति पद्मबन्धोः सुता।।हिंदी अर्थ: जो कलिन्द पर्वत के शिखर से मंद गति से प्रवाहित होकर उज्ज्वल धारा के रूप में प्रकट होती हैं। जिनकी लहरों की गति में विलासपूर्ण गमन है और जो ऊँचे तटों के रूप में प्रकट होती हैं। जिनकी गर्जना (तरंगों की आवाज) दन्तुर (दाँतों वाली) है और जो उत्तम झूले के समान आनंद देती हैं। जो मुकुन्द (भगवान विष्णु) की रति (प्रेम) को बढ़ाने वाली हैं, वे कमल के निर्माता (ब्रह्मा) की पुत्री यमुना देवी जयवंत हों।
भुवं भुवनपावनी मधिगतामनेकस्वनैः, प्रियाभिरिव सेवितां शुकमयूरहंसादिभिः। तरंगभुजकंकण प्रकटमुक्तिकावालूका, नितम्बटटसुन्दरीं नमत कृष्ण्तुर्यप्रियाम।।हिंदी अर्थ: जो इस पृथ्वी को पवित्र करने वाली हैं और मधुर ध्वनियों से युक्त हैं। जिन्हें शुक (तोता), मयूर (मोर), हंस आदि प्रिय पक्षी अपनी प्रेयसी के समान सेवा करते हैं। जिनकी तरंगों के भुजाओं में कंकण के रूप में मोतियों की रेत सुशोभित है। जो सुंदर तटों वाली हैं, उन कृष्ण की प्रिय यमुना देवी को प्रणाम करें।
अनन्तगुण भूषिते शिवविरंचिदेवस्तुते, घनाघननिभे सदा ध्रुवपराशराभीष्टदे। विशुद्ध मथुरातटे सकलगोपगोपीवृते, कृपाजलधिसंश्रिते मम मनः सुखं भावय।।हिंदी अर्थ: जो अनंत गुणों से विभूषित हैं और शिव, ब्रह्मा तथा देवताओं द्वारा स्तुत हैं। जो घने बादलों के समान श्यामल हैं और ध्रुव, पराशर आदि ऋषियों की इच्छाओं को पूर्ण करने वाली हैं। जो पवित्र मथुरा के तट पर स्थित हैं और सभी ग्वालों एवं गोपियों से घिरी रहती हैं। जो कृपा के सागर की आश्रिता हैं, वे मेरे मन को सुख प्रदान करें।
यया चरणपद्मजा मुररिपोः प्रियं भावुका, समागमनतो भवत्सकलसिद्धिदा सेवताम। तया सह्शतामियात्कमलजा सपत्नीवय, हरिप्रियकलिन्दया मनसि मे सदा स्थीयताम।।हिंदी अर्थ: जिनके चरण कमलों से उत्पन्न होकर मुररिपु (कृष्ण) की प्रिय बनी हैं। जिनके संगम से सेवकों को सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। जिनके साथ कमलजा (गंगा) सहचरी के रूप में रहती हैं। वे हरि की प्रिय कालिन्दी (यमुना) मेरे मन में सदा स्थित रहें।
नमोस्तु यमुने सदा तव चरित्रमत्यद्भुतं, न जातु यमयातना भवति ते पयः पानतः। यमोपि भगिनीसुतान् कथमूहन्ति दुष्टानपि, प्रियो भवति सेवनात् तव हरेर्यथा गोपिकाः।।हिंदी अर्थ: हे यमुना देवी! आपको सदा नमस्कार है। आपका चरित्र अत्यंत अद्भुत है। आपके जल के पान से यमराज की यातनाएँ नहीं होतीं। यमराज भी अपनी बहन (आप) के पुत्रों (आपके भक्तों) को, चाहे वे दुष्ट ही क्यों न हों, कष्ट नहीं देते। आपके सेवन से भक्त, जैसे गोपिकाएँ श्रीहरि को प्रिय थीं, वैसे ही प्रिय हो जाते हैं।
ममास्तु तव सन्निधौ तनुनवत्वमेतावता, न दुर्लभतमारतिर्मुररिपौ मुकुन्दप्रिये। अतोस्तु तव लालना सुरधुनी परं संगमा, त्तवैव भुवि कीर्तिता न तु कदापि पुष्टिस्थितैः।।हिंदी अर्थ: हे मुकुन्दप्रिये यमुना देवी! आपके सन्निधि में रहने से मेरी देह नवयौवन से युक्त हो। इससे मुररिपु (श्रीकृष्ण) में मेरी अरति (प्रेम) दुर्लभ नहीं होगी। आपकी लीलाओं का संगम गंगा (सुरधुनी) के साथ होता है, परंतु पृथ्वी पर आपकी कीर्ति पुष्टिमार्ग के भक्तों द्वारा ही गाई जाती है।
स्तुति तव करोति कः कमलजासपत्नि प्रिये, हरेर्यदनुसेवया भवति सौख्यमामोक्षतः। इयं तव कथाधिका सकल गोपिका संगम, स्मरश्रमजलाणुभिः सकल गात्रजैः संगमः।।हे कमलजा (गंगा) की सहचरी यमुना देवी! आपकी स्तुति कौन कर सकता है? श्रीहरि की सेवा से जो सुख और मोक्ष प्राप्त होता है, वह आपकी कथा के श्रवण से अधिक होता है। आपकी कथा का संगम सभी गोपिकाओं के साथ होता है, जो स्मरण (ध्यान) के समय श्रम के कारण उत्पन्न पसीने की बूंदों से आपके सम्पूर्ण अंगों का संगम कराता है।
तवाष्टकमिदं मुदा पठति सूरसूते सदा, समस्तदुरितक्षयो भवति वै मुकुन्दे रतिः। तया सकलसिद्धयो मुररिपुश्च सन्तुष्यति, स्वभावविजयो भवेत् वदति वल्लभः श्रीहरेः।।हे सूर्यकन्या यमुना देवी! जो भक्त इस अष्टक को सदा प्रसन्नतापूर्वक पढ़ता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और मुकुन्द (श्रीकृष्ण) में उसकी प्रीति होती है। इससे सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, मुररिपु (श्रीकृष्ण) संतुष्ट होते हैं, और स्वभाव पर विजय प्राप्त होती है। यह वल्लभाचार्य कहते हैं, जो श्रीहरि के प्रिय भक्त हैं।आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं