त्रिगुण असार निर्गुण हें सार भजन

त्रिगुण असार निर्गुण हें सार भजन

 
त्रिगुण असार निर्गुण हें सार भजन Trigun Asar Nirgun He Saar Bhajan Lyrics

त्रिगुण असार निर्गुण हें सार । सारासार विचार हरिपाठ,
सगुण निर्गुण गुणांचें अगुण । हरिविणें मत व्यर्थ जाय,
अव्यक्त निराकार राहीं ज्या आकार । जेथुनी चराचर त्यासी भजें,
ज्ञानदेवा ध्यानीं रामक्‍इश्ह्ण मनीं । अनंत जन्मांनीं पुण्य होय,

त्रिगुण असार निर्गुण हें सार । सारासार विचार हरिपाठ,
सगुण निर्गुण गुणांचें अगुण । हरिविणें मत व्यर्थ जाय,
अव्यक्त निराकार राहीं ज्या आकार । जेथुनी चराचर त्यासी भजें,
ज्ञानदेवा ध्यानीं रामक्‍इश्ह्ण मनीं । अनंत जन्मांनीं पुण्य होय,
त्रिगुण असार निर्गुण हें सार । सारासार विचार हरिपाठ,
सगुण निर्गुण गुणांचें अगुण । हरिविणें मत व्यर्थ जाय,
अव्यक्त निराकार राहीं ज्या आकार । जेथुनी चराचर त्यासी भजें,
ज्ञानदेवा ध्यानीं रामक्‍इश्ह्ण मनीं । अनंत जन्मांनीं पुण्य होय,
 


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