संसार मुसाफिर खाना है भजन
किस धुन में बैठा बावरे तू किस मद में मस्ताना है,
सोने वाले जाग जा सँसार मुसाफिर खाना है,
क्या लेकर के आया था जग में फिर क्या लेकर जाएगा,
मुट्ठी बांधे आया जग में हाथ पसारे जाना है,
सोने वाले जाग जा संसार मुसाफिर खाना है,
कोई आज गया कोई कल गया कोई चंद रोज में जायेगा
जिस घर से निकल गया पंछी उस घर में फिर नही आना है,
सोने वाले जाग जा संसार मुसाफिर खाना है,
सुत मात पिता बांदव नारी धन धान यही रह जाएगा,
यह चंद रोज की यारी है फिर अपना कौन बेगाना है,
सोने वाले जाग जा संसार मुसाफ़िर खाना है,
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Author - Saroj Jangir
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