वृथा क्यों भटक रहा है
भज ले प्राणी, अरे अज्ञानी,
दो दिन की जिंदगानी,
वृथा क्यों भटक रहा है,
वृथा क्यों भटक रहा है,
झूठी काया, झूठी माया,
चक्कर में क्यों आया
इसी से अटक रहा है,
इसी से अटक रहा हैं,
नर तन मिला है तुझे, खो क्यों रहा है प्यारे खेल में,
सोने की काया तेरी उलझी है, विषयों के मेल में,
सुत और दारा, वैभव सारा, कुछ भी नहीं तुम्हारा,
कहाँ से अटक रहा है,
भज ले प्राणी, अरे अज्ञानी,
दो दिन की जिंदगानी,
वृथा क्यों भटक रहा है,
वृथा क्यों भटक रहा है,
भोला फेरे क्यों बन्दे, तूं धन यौवन के उमंग में,
माता पिता और बंधू, कोई चले ना तेरे संग में,
मैं और मेरा, तू और तेरा, है माया का फेरा,
इसी में भटक रहा है,
भज ले प्राणी, अरे अज्ञानी,
दो दिन की जिंदगानी,
वृथा क्यों भटक रहा है,
वृथा क्यों भटक रहा है,
योनियाँ अनेक भ्रमी, प्रभु की कृपा से,नर तन पाया है,
झूठे जगत में फंस कर, इनसे ना प्रेम बढ़ाया है,
गीता गाए, वेद बताए, गुरु बिन ज्ञान ना आए,
भज ले प्राणी, अरे अज्ञानी,
दो दिन की जिंदगानी,
वृथा क्यों भटक रहा है,
वृथा क्यों भटक रहा है,
चंचल गुमानी मन, अब तो जनम को सँवार ले,
फिर न मिले तुझे अवसर ऐसा बारम्बार रे,
रे अज्ञानी तज नादानी, भज ले सारंग पाणी,
भज ले प्राणी, अरे अज्ञानी,
दो दिन की जिंदगानी,
वृथा क्यों भटक रहा है,
वृथा क्यों भटक रहा है,
भज ले प्राणी, अरे अज्ञानी,
दो दिन की जिंदगानी,
वृथा क्यों भटक रहा है,
वृथा क्यों भटक रहा है,
झूठी काया, झूठी माया,
चक्कर में क्यों आया
इसी से अटक रहा है,
इसी से अटक रहा हैं,
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पूज्य राजन जी द्वारा गाया हुवा ये भजन- वृथा क्यों भटक रहा है, एक बहुत ही अद्भुत भजन है। इस भजन को पूज्य राजन जी ने सबसे पहले अपने पूज्य महाराज जी के श्री मुख से सुना था । इस भजन को पूज्य राजन जी ने ग्राम- हीरा गाड़ाडीह, कुरुद, जिला- धमतरी, छत्तीसगढ़ की श्री रामकथा में गाया है
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