आवन की मनभावन की मीनिंग
आवन की मनभावन की मीनिंग
आवन की मनभावन की
कोई कहियौ रे प्रभु आवन की, आवन की मन भावन की।
आप न आवै लिख नहिं भेजै, बांण पडी ललचावन की।
ऐ दोई नैणा कह्यौ नहिं मानैं, नदियां बहै जैसे सावन की।
कहा करूं कछु नहिं बस मेरो, पांख नहिं उड जावन की।
मीरा कहै प्रभु कब रै मिलोगे, चेरी भई हूँ तेर दावंण की॥
कोई कहियौ रे प्रभु आवन की, आवन की मन भावन की।
आप न आवै लिख नहिं भेजै, बांण पडी ललचावन की।
ऐ दोई नैणा कह्यौ नहिं मानैं, नदियां बहै जैसे सावन की।
कहा करूं कछु नहिं बस मेरो, पांख नहिं उड जावन की।
मीरा कहै प्रभु कब रै मिलोगे, चेरी भई हूँ तेर दावंण की॥
इस पद के विषय में : यह भजन/पद बाई मीरा जी का लिखा हुआ है। इस पद में हरी मिलन की विरह और वेदना का चित्रण किया गया है। जीवात्मा परमात्मा के मिलन के लिए व्याकुल है और वह उसके दर्शन के लिए व्यथित है। ना तो हरी आते हैं और ना ही उनका कोई सन्देश ही प्राप्त होता है। विरह के प्यासे ये दो नैन नहीं समझते हैं और सावन की बरसात की भांति ये आंसुओं की नदियाँ बहा रहे हैं। जीवात्मा के बस में कुछ भी नहीं है क्योंकि यह तो परमात्मा के ऊपर निर्भर है की कब वे दर्शन देते हैं। क्या करूँ कुछ समझ में नहीं आता है यदि मेरे पंख होते तो मैं उड़ कर ही चली आती। हे परमात्मा आप इस दासी से कब आकर मिलोगे।
प्यारे दर्शन दीजो आय
प्यारे दर्शन दीजो आय, तुम बिन रह्ययो न जाय।
जल बिन कमल, चंद बिन रजनी, ऐसे तुम देख्यां बिन सजनी॥
आकुल व्याकुल फिरूं रैन दिन, विरह कलेजा खाय॥
दिवस न भूख नींद नहिं रैना, मुख के कथन न आवे बैनां॥
कहा करूं कुछ कहत न आवै, मिल कर तपत बुझाय॥
क्यों तरसाओ अतंरजामी, आय मिलो किरपा कर स्वामी।
मीरा दासी जनम जनम की, परी तुम्हारे पायं॥
मैं तो गिरधर के रंग राती
सखी री मैं तो गिरधर के रंग राती॥
पचरंग मेरा चोला रंगा दे, मैं झुरमुट खेलन जाती॥
झुरमुट में मेरा सांई मिलेगा, खोल अडम्बर गाती॥
चंदा जाएगा, सुरज जाएगा, जाएगा धरण अकासी।
पवन पाणी दोनों ही जाएंगे, अटल रहे अबिनासी॥
सुरत निरत का दिवला संजो ले, मनसा की कर बाती।
प्रेम हटी का तेल बना ले, जगा करे दिन राती॥
जिनके पिय परदेश बसत हैं, लिखि लिखि भेजें पाती॥
मेरे पिय मो माहिं बसत है, कहूं न आती जाती॥
पीहर बसूं न बसूं सासघर, सतगुरु सब्द संगाती।
ना घर मेरा ना घर तेरा, मीरा हरि रंग राती॥
चरण कंवल अवणासी
भज मन चरण कंवल अवणासी।
जेताई दीसां धरण गगन मां, तेताई उठ जासी।
तीरथ बरतां ग्यांण कथंता, कहा लियां करवत कासी।
यो देही रो गरब णा करणा माटी मां मिल जासी।
यो संसार चहर री बाजी, सांझ पड्यां उठ जासी।
कहां भयां थां भगवां पहर्यां, घर तज लयां संन्यासी।
जोगी होयां जुगत णां जाणा, उलट जणम फिर फाँसी।
अरज करा अबला कर जोरया, स्याम तुम्हारी दासी।
मीरा रे प्रभु गिरधरनागर, काट्यां म्हारो गांसी॥
प्यारे दर्शन दीजो आय, तुम बिन रह्ययो न जाय।
जल बिन कमल, चंद बिन रजनी, ऐसे तुम देख्यां बिन सजनी॥
आकुल व्याकुल फिरूं रैन दिन, विरह कलेजा खाय॥
दिवस न भूख नींद नहिं रैना, मुख के कथन न आवे बैनां॥
कहा करूं कुछ कहत न आवै, मिल कर तपत बुझाय॥
क्यों तरसाओ अतंरजामी, आय मिलो किरपा कर स्वामी।
मीरा दासी जनम जनम की, परी तुम्हारे पायं॥
मैं तो गिरधर के रंग राती
सखी री मैं तो गिरधर के रंग राती॥
पचरंग मेरा चोला रंगा दे, मैं झुरमुट खेलन जाती॥
झुरमुट में मेरा सांई मिलेगा, खोल अडम्बर गाती॥
चंदा जाएगा, सुरज जाएगा, जाएगा धरण अकासी।
पवन पाणी दोनों ही जाएंगे, अटल रहे अबिनासी॥
सुरत निरत का दिवला संजो ले, मनसा की कर बाती।
प्रेम हटी का तेल बना ले, जगा करे दिन राती॥
जिनके पिय परदेश बसत हैं, लिखि लिखि भेजें पाती॥
मेरे पिय मो माहिं बसत है, कहूं न आती जाती॥
पीहर बसूं न बसूं सासघर, सतगुरु सब्द संगाती।
ना घर मेरा ना घर तेरा, मीरा हरि रंग राती॥
चरण कंवल अवणासी
भज मन चरण कंवल अवणासी।
जेताई दीसां धरण गगन मां, तेताई उठ जासी।
तीरथ बरतां ग्यांण कथंता, कहा लियां करवत कासी।
यो देही रो गरब णा करणा माटी मां मिल जासी।
यो संसार चहर री बाजी, सांझ पड्यां उठ जासी।
कहां भयां थां भगवां पहर्यां, घर तज लयां संन्यासी।
जोगी होयां जुगत णां जाणा, उलट जणम फिर फाँसी।
अरज करा अबला कर जोरया, स्याम तुम्हारी दासी।
मीरा रे प्रभु गिरधरनागर, काट्यां म्हारो गांसी॥
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