कबीर हरि का भावता झीणा पंजर तास Kabir Hari Ka Bhavta Jheena Panjar Tas

कबीर हरि का भावता झीणा पंजर तास कबीर दोहे हिंदी मीनिंग Kabir Hari Ka Bhavta Jheena Panjar Tas Hindi Meaning

 
कबीर हरि का भावता झीणा पंजर तास कबीर दोहे हिंदी मीनिंग Kabir Hari Ka Bhavta Jheena Panjar Tas Hindi Meaning

कबीर हरि का भावता, झीणाँ पंजर तास।
रैणि न आवै नींदड़ी, अंगि न चढ़ई मास॥
Kabeer Hari Ka Bhavata, Jheenaan Panjar Taas.
Raini Na Aavai Neendadee, Angi Na Chadhee Maas. 
 
हरी भक्त का शरीर क्षीण होता है, कमजोर होता है क्योंकि उसका ध्यान तो हरी की भक्ति में ही लगा रहता है। ऐसे साधक को हरी मिलन की रट लगी रहती है और उसे रातों को भी नींद नहीं आती है, उसकी उसकी हड्डियों पर भी मांस नहीं चढ़ता है। भाव है की हरी भक्त को तो केवल हरी मिलन की ही आस लगी रहती है उसे अपने शरीर की भी सुध नहीं रहती है।

 
अणरता सुख सोवणाँ, रातै नींद न आइ।
ज्यूँ जल टूटै मंछली यूँ बेलंत बिहाइ॥
Aṇaratā Sukha Sōvaṇām̐, Rātai Nīnda Na Ā'i.
Jyūm̐ Jala Ṭūṭai Man̄chalī Yūm̐ Bēlanta Bihā'i. 
 
जिनको ईश्वर की लगन नहीं लगी है, जो ईश्वर से अनुरक्त नहीं है वे तो आराम से सोते हैं लेकिन जिनको ईश्वर की लगन लगी हुई है वे हरी मिलन की आस में ऐसे तडपते हैं जैसे बिना जल के मछली तडपती है। भाव है की वे सदा ही बेचैन रहते हैं हरी मिलन की आस में व्यक्ति को सिर्फ हरी की ही लगन लग जाती है उसे कोई भी सांसारिक और भौतिक क्रिया से सबंध अच्छा नहीं लगता है।

जिन्य कुछ जाँण्याँ नहीं तिन्ह, सुख नींदणी बिहाइ।
मैंर अबूझी बूझिया, पूरी पड़ी बलाइ
Jiny Kuchh Jaannyaan Nahin Tinh, Sukh Neendanee Bihai.
Mainr Aboojhee Boojhiya, Pooree Padee Balai 
 
जो अज्ञानी हैं, जिन्होंने कुछ भी जाना नहीं है, वे तो आराम की नींद सोते हैं लेकिन जिसने नासमझी में कुछ जानने का प्रयत्न किया उसके गले में भक्ति आ पड़ी है। भाव है की जिसने भी भक्ति की है उसे हरी की ही लगन लगी रहती है, वह बेचैन रहता है और उसे किसी भी अन्य कार्य में मन नहीं लगता है।

सजनी प्यारी रे अपने पीऊं ने जगाव
पियूजी सूतोड़े सुख भर निंदर माँय जगोवे देना लेना हरि
सासू सूवे पटसार नंदल जागे चौबारी
पियूजी सूतोड़े हरि रे मंदरिये मांय जगोवे देना लेना हरि
सजनी प्यारी रे अपने पीऊँ ने जगाव,

नाभ कमल एक धाट नागिन झूल रही
पाँच पांच पुरुष जेरी पास जीवला बुझाया हरि
सजनी प्यारी रे अपने पीऊँ ने जगाव,
सजनी प्यारी रे अपने पीऊँ ने जगाव,

बंक नाल एक घाट नागिन जाग रही
चार-चार पुरुष जेरी पास जीवलों जगोया हरि
सजनी प्यारी रे अपने पिऊ ने जगाव,
सजनी प्यारी रे अपने पीऊँ ने जगाव,

भंमर गुफ़ा री एक मांय, भंमरो गूंजे रे
माँगे फुलड़ां री बास, निंदरड़ा कई वध आवे हरि
सजनी प्यारी रे अपने पिऊ ने जगाव,
सजनी प्यारी रे अपने पीऊँ ने जगाव,

मगन भया है दोनों नेँन, पिया पल खोलो रे
पल पल खोलों तोरे नैन पिया, हंसे मुखड़े बोलो हरि
सजनी प्यारी रे अपने पिऊ ने जगाव,
सजनी प्यारी रे अपने पीऊँ ने जगाव,

कहत कबीर हे सुजाँन, कोई नर जागे रे
सूए एक नर अबूझ अजान, जनम खोया हरि
सजनी प्यारी रे अपने पिऊ ने जगाव,
सजनी प्यारी रे अपने पीऊँ ने जगाव,


जाँण भगत का नित मरण अणजाँणे का राज।
सर अपसर समझै नहीं, पेट भरण सूँ काज॥
Jaann Bhagat Ka Nit Maran Anajaanne Ka Raaj.
Sar Apasar Samajhai Nahin, Pet Bharan Soon Kaaj. 
 
जो ग्यानी है उसका नित ही मरन होना तय है, इस परिस्थिति में जो अज्ञानी होते हैं उनके किसी प्रकार का कोई गम नहीं रहता है और वह मस्त रहता है। जिन्हें भक्ति से कोई लेना देना नहीं होता है वे खुश रहते हैं और अपने जीवन को खाने पीने में ही उडा देते हैं। भगत के नित मरण से आशय है की भगत इस जीवन की सच्चाई को जान जाता है की यह जगत झूठा है, स्थाई नहीं है फिर भी उसे सांसारिक क्रियाओं में शामिल रहना पड़ता है और उसका चित्त तो हरी के चरणों में ही लगा रहता है, यही दुविधा है जिसके कारण से वह बेचैन रहता है। वहीँ दूसरी तरफ जो अज्ञान के अंधेरों में पड़े हैं उन्हें तो कोई चिंता है ही नहीं। यह तुलसीदास के रस्सी और सांप के प्रसंग की ही भाँती है। जिसने नहीं समझा है वह तो प्रशन्न है और अज्ञानता में सांप को रस्सी समझ लेता है। विडंबना है की जिसने समझ लिया की यह रस्सी नहीं अपितु सांप है वह अधिक व्यथित है।


जिहि घटिजाँण बिनाँण है, तिहि घटि आवटणाँ घणाँ।
बिन षंडै संग्राम है नित उठि मन सौं झूमणाँ॥
Jihi Ghatijaann Binaann Hai, Tihi Ghati Aavatanaan Ghanaan.
Bin Shandai Sangraam Hai Nit Uthi Man Saun Jhoomanaan.

जिसके हृदय में ज्ञान विज्ञान है/ यह ज्ञान है की ईश्वर क्या है, कैसे है, जगत की सच्चाई क्या है वह दुखी ही रहता है और उसे नित्य ही अपने अन्दर से झूझना पड़ता है, बिना तलवार से संघर्ष करना पड़ता है।

राम बियोगी तन बिकल, ताहि न चीन्है कोइ।
तंबोली के पान ज्यूँ, दिन दिन पीला होइ॥
Raam Biyogee Tan Bikal, Taahi Na Cheenhai Koi.
Tambolee Ke Paan Jyoon, Din Din Peela Hoi.

राम के विरह की वेदना को कोई पहचान नहीं सका है। तबोली के पान की भाँती वह नित्य ही पीला पड़ता जाता है। भाव है की जिसे हरी के नाम की लगन लग जाती है वह विरह वेदना में जलता रहता है।

पीलक दौड़ी साँइयाँ, लोग कहै पिंड रोग।
छाँनै लंधण नित करै, राँम पियारे जोग॥
Peelak Daudee Saaniyaan, Log Kahai Pind Rog.
Chhaannai Landhan Nit Karai, Raanm Piyaare Jog.

हरी के वियोग में शरीर नित्य ही पीला पड़ता जाता है जबकि लोग समझते हैं की उन्हें पीलिया हो गया है। ऐसे विरह में जलने वाले छिप छिप कर हरी से मिलने की जुगत में रहते हैं।

काम मिलावै राम कूँ, जे कोई जाँणै राषि।
कबीर बिचारा क्या करे, जाकी सुखदेव बोले साषि॥
Kaam Milaavai Raam Koon, Je Koee Jaannai Raashi.
Kabeer Bichaara Kya Kare, Jaakee Sukhadev Bole Saashi.

यदि कर्मों का ठीक ढंग से पालन किया जाए तो कर्म ही राम से मिलाने में समर्थ हैं। इसकी साखी तो स्वंय सुखदेव दे रहे हैं, इसमें कबीर का क्या कर सकता है। उल्लेखनीय हैं की सुखदेव का उदाहरन देकर साहेब ने लोक मान्यता के आधार पर कर्म को प्रधान सिद्ध किया है।

काँमणि अंग बिरकत भया, रत भया हरि नाँहि।
साषी गोरखनाथ ज्यूँ, अमर भए कलि माँहि॥
Kaanmani Ang Birakat Bhaya, Rat Bhaya Hari Naanhi.
Saashee Gorakhanaath Jyoon, Amar Bhe Kali Maanhi.

जो स्त्री से विरक्त होकर ईश्वर के प्रति समर्पित हो गया है, ईश्वर के ध्यान में मगन रहता है वह इस कलयुग से पार लग जाता है और इसकी साक्षी स्वंय गुरु गोरखनाथ जी देते हैं। भाव है की विषय वासना और मोह माया को छोडकर जो ईश्वर की भक्ति में लीन रहता है सदा ही भव सागर से पार होता है, उसे मुक्ति मिलती है।

जदि विषै पियारी प्रीति सूँ, तब अंतर हरि नाँहि।
जब अंतर हरि जी बसै, तब विषिया सूँ चित नाँहि॥
Jadi Vishai Piyaaree Preeti Soon, Tab Antar Hari Naanhi.
Jab Antar Hari Jee Basai, Tab Vishiya Soon Chit Naanhi.

जिस घट में विषय वासना भरी पड़ी हैं, तब तक हरी का निवास नहीं होता है। जब तक हरी का निवास नहीं हो सकता है, जब तक व्यक्ति विषय विकारों में लिप्त रहता है। भाव है की यदि भक्ति मार्ग पर आगे बढना है तो तमाम तरह की विषय वासना और विकारों को छोड़ कर हरी भक्ति को प्राप्त किया जा सकता है।

जिहि घट मैं संसौ बसै, तिहिं घटि राम न जोइ।
राम सनेही दास विचि, तिणाँ न संचर होइ॥
Jihi Ghat Main Sansau Basai, Tihin Ghati Raam Na Joi.
Raam Sanehee Daas Vichi, Tinaan Na Sanchar Hoi.

जिस घट में शंशय है, द्वेत की भावना है उस हृदय में हरी का वास नहीं हो सकता है। जो राम स्नेही हैं, राम भक्त हैं और राम के बीच तृष्णा भी पैदा नहीं हो सकती है। भाव है की भक्ति उसे ही मिल सकती है जो पूर्ण रूप से हरी को नहीं मानते हैं।

स्वारथ को सबको सगा, सब सगलाही जाँणि।
बिन स्वारथ आदर करै, सो हरि की प्रीति पिछाँणि॥
Svaarath Ko Sabako Saga, Sab Sagalaahee Jaanni.
Bin Svaarath Aadar Karai, So Hari Kee Preeti Pichhaanni.

स्वार्थ के सभी प्राणी सखी हैं, इसे सब जगत के प्राणी जानते हैं, लेकिन जो बगैर स्वार्थ के, स्वार्थ रहित दूसरों का आदर करता है तो समझ लो की उसके घट में हरी का निवास है, वह हरी का भक्त है, भक्ति मार्गी है। भाव है की भक्ति सांसारिक लोभ, स्वार्थ आदि से परे होता है।

जिहिं हिरदै हरि आइया, सो क्यूँ छाँनाँ होइ।
जतन जतन करि दाबिए, तऊ उजाजा सोइ॥
jihin hiradai hari aaiya, so kyoon chhaannaan hoi.
jatan jatan kari daabie, taoo ujaaja soi.

जिस हृदय में हरी का वास हो जाता है उसे छिपाया नहीं जा सकता है, वह सभी को प्रकाशित हो जाता है। यदि जतन करके भी उसको जताया जाए तो भी उसे दबाया नहीं जा सकता है।

फाटै दीदे मैं फिरौं, नजरि न आवै कोइ।
जिहि घटि मेरा साँइयाँ, सो क्यूँ छाना होइ॥
Phaatai Deede Main Phiraun, Najari Na Aavai Koi.
Jihi Ghati Mera Saaniyaan, So Kyoon Chhaana Hoi.

आँखे फाड़ फाड़ कर देखने से भी कोई नजर नहीं आटा है, लेकिन यदि हृदय में हरी का वास है तो उसे छिपाया नहीं जा सकता है। भाव है की यदि हृदय में हरी का वास है तो वह छुप नहीं सकता है।

सब घटि मेरा साँइयाँ, सूनी सेज न कोइ।
भाग तिन्हौ का हे सखी, जिहि घटि परगड होइ॥
Sab Ghati Mera Saaniyaan, Soonee Sej Na Koi.
Bhaag Tinhau Ka He Sakhee, Jihi Ghati Paragad Hoi.

सभी के हृदय में राम का वास है/ हरी का वास है, ऐसा कोई हृदय नहीं है जिसमें हरी का निवास नहीं है, लेकिन भाग्यवान वही है जिसके हृदय में हरी का प्रकटीकरण हो गया हो। भाव है की जिसने सत्य के प्रकाश में ही हरी को जाना जा सकता है। हरी को प्रकट करना हमारे ही यत्न पर निर्भर करता है, भक्ति की प्रबलता पर निर्भर करता है।

कबीर के भजन / Kabir Bhajan
उमरिया धोखे में खोये दियो रें,
धोखे में खोये दियो रें,
पांच बरस का भोला-भाला
बीस में जवान भयो।
तीस बरस में माया के कारण,
देश विदेश गयों,
उमरिया धोखे में खोये दियो रें,
धोखे में खोये दियो रें,
चालिस बरस अन्त अब लागे, बाढ़ै मोह गयो,
धन धाम पुत्र के कारण, निस दिन सोच भयो,
बरस पचास कमर भई टेढ़ी, सोचत खाट परयो,
लड़का बहुरी बोलन लागे, बूढ़ा मर न गयो,
बरस साठ-सत्तर के भीतर, केश सफेद भयो,
वात पित कफ घेर लियो है, नैनन निर बहो,
न हरि भक्ति न साधो की संगत,
न शुभ कर्म कियो,
कहै कबीर सुनो भाई साधो,
चोला छुट गयो,
उमरिया धोखे में खोये दियो रें,
धोखे में खोये दियो रें,

संतन के संग लाग रे,
तेरी भली बनेगी,

हंसन की गति हंस हि जानै,
क्या जाने कोई काग रे,
संतन के संग लाग रे,
तेरी भली बनेगी,

संतन के संग पूर्ण कमाई,
होय बडो तेरे भाग रे,
संतन के संग लाग रे,
तेरी भली बनेगी,

ध्रुव की बनी प्रह्लाद की बन गई,
गुरू सुमिरन बैराग रे,
संतन के संग लाग रे,
तेरी भली बनेगी,

कहत कबीरा सुनो भाई साधो,
राम भजनमें लाग रे,
संतन के संग लाग रे,
तेरी भली बनेगी,

संतन के संग लाग रे,
तेरी भली बनेगी,
संतन के संग लाग रे,
तेरी भली बनेगी,

अवधु मेरा मन मतवारा,
उनमनि चढा गगन रस पीवै, त्रिभुवन भया उजियारा,
अवधु मेरा मन मतवारा,

गुडकर ज्ञान ध्यान कर महुवा, भव भाठी करी भारा,
सुषमन नाड़ी सहज समानी, पीवै पीवनहारा,
अवधु मेरा मन मतवारा,

दोइ पुर जोरी चिनगारी भाठी, चुवा महारस भारी,
काम क्रोध दोई किया बनीता, छुटी गई संसारी,
अवधु मेरा मन मतवारा,

सुनि मंडल मैं मंदला बाजै, तहाँ मेरा मन नाचे,
गुरुप्रसादी अमृतफल पाया, सहज सुषमना काछै,
अवधु मेरा मन मतवारा,

पूरा मिला तबै सुख़ उपज्यों, तन की तपन बुझानी,
कहे कबीर भवबंधन छूटे, ज्योति ही ज्योति समानी,
अवधु मेरा मन मतवारा,

गुडकर ज्ञान ध्यान कर महूँवा, भव भाठी करी भारा,
सुषमन नाड़ी सहज समानी, पीवै पीवनहारा,
अवधु मेरा मन मतवारा,

दोइ पुर जोरी चिनगारी भाठी, चुवा महारस भारी,
काम क्रोध दोई किया बनीता, छुटी गई संसारी,
अवधु मेरा मन मतवारा,

सुनि मण्डल मैं मंदला बाजै, तहाँ मेरा मन नाचें,
गुरुप्रसादी अमृतफल पाया, सहज सुषमना काछै,
अवधु मेरा मन मतवारा,

पूरा मिला तबै सुख उपज्यों, तन की तपन बुझानी,
कहे कबीर भवबंधन छूटें, ज्योति ही ज्योतीं समानी,
अवधु मेरा मन मतवारा,
सत्यनाम का सुमिरन करे ले, कल जाने क्या होय,
जाग जाग नर निज पासुन में काहे बिरथा सोय,
येही कारन तुं जग में आया, वो नहीं तुने कर्म कमाया,
मन मैला था मैला तेरा, काया मल मल धोय,
दो दिन का है रैनबसेरा, कौन है मेरा कौन है तेरा,
हुआ सवेरा चले मुसाफिर, अब क्यो नयन भिगोय,
गुरु का शबद जगा ले मन में, चौरासी से छूटे क्षण में,
ये तन बार बार नहीं पावे, शुभ अवसर क्यूँ खोय,
ये दुनियाँ है एक तमाशा, कर नहीं बंदे किसी की आशा,
कहे कबीर सुनो भाई साधो, साँई भजे सुख होए,
सत्यनाम का सुमिरन करे ले, कल जाने क्या होय,
जाग जाग नर निज पासुन में काहे बिरथा सोय,

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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