पावक रूपी राँम है घटि घटि रह्या समाइ मीनिंग Pavak Rupi Ram Hai Ghati Ghati Raha Samayi Hindi Meaning

पावक रूपी राँम है घटि घटि रह्या समाइ मीनिंग Pavak Rupi Ram Hai Ghati Ghati Raha Samayi Hindi Meaning

पावक रूपी राँम है, घटि घटि रह्या समाइ
चित चकमक लागै नहीं, ताथैं धुँवाँ ह्नै ह्नै जाइ॥

Paavak Roopee Raanm Hai, Ghati Ghati Rahya Samai.
Chit Chakamak Laagai Nahin, Taathain Dhunvaan Hnai Hnai Jai. 
 
पावक रूपी राँम है घटि घटि रह्या समाइ मीनिंग Pavak Rupi Ram Hai Ghati Ghati Raha Samayi Hindi Meaning
 

राम उस अग्नि के समान है जो घट घट में समाई हुई है। चित्त रूपी चकमक पत्थर का स्पर्श नहीं हो पाता है, और धुआं ही रह जाता है। भाव है चित्त की प्रवृतिया राम केन्द्रित नहीं होने पर राम के दर्शन संभव नहीं हो पाता है। राम की अग्नि तो हर हृदय में निवास है, हर हृदय में उसका निवास है। यदि चित्त रूपी चकमक पत्थर में अग्नि पूर्ण रूप से जाग्रत नहीं होती है तो वह धुआ देकर रह जाती है अग्नि प्रज्वलित नहीं होती है। भाव है की जिस हृदय में हरी नाम की लगन नहीं लगी है वह हरी को समझ नहीं सकता है।
कबीर खालिक जागिया, और न जागै कोइ।
कै जागै बिसई विष भर्‌या, कै दास बंदगी होइ॥
Kabīra Khālika Jāgiyā, Aura Na Jāgai Kō'i.
Kai Jāgai Bisa'ī Viṣa Bhar‌yā, Kai Dāsa Bandagī Hō'i. 
 
अपना स्वामी तो सदा ही जाग्रत रहता है और कोई भी इनकी भाँती जाग्रत नहीं होता है। जो विभिन्न विषय विकारों में लिप्त रहता है, विषय विकारों का सेवन करता है वह ईश्वर की बंदगी नहीं।

कबीर चाल्या जाइ था, आगैं मिल्या खुदाइ।
मीराँ मुझ सौं यौं कह्या, किनि फुरमाई गाइ॥
Kabīra Calya Jai Tha, Agaim Milya Khudai
Miram Mujha Sauṁ Yauṁ Kahay, Kini Phurami Gai
 
ईश्वर की धुन में साहेब चले जा रहे हैं और आगे उन्हें खुदा मिल गए और प्रश्न किया की तू अपने विचारों को गा कर क्यों प्रस्तुत करता है।

चंदन की कुटकी भली, नाँ बँबूर की अबराउँ।
बैश्नों की छपरी भली, नाँ साषत का बड गाउँ॥
Chandan Kee Kutakee Bhalee, Naan Banboor Kee Abaraanun.
Baishnon Kee Chhaparee Bhalee, Naan Saashat Ka Bad Gaun.


कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग Kabir Dohe in Hindi Meaning/Explanation :-चंदन की कुछ ही मात्रा भली है और बबूल का पूरा जंगल किसी काम का नहीं है। इसी प्रकार वैष्णव की एक छोटी सी कुटिया/छपरी भली है बनिस्पत शाक्य के पुरे ही गाँव के। भाव है की जो अच्छी वस्तु है / ज्ञान है वह थोड़ी मात्रा में ही भला है बजाए की बहुत मात्रा में अवगुण और व्यर्थ की वस्तुएं।

पुरपाटण सूबस बसै, आनँद ठाये ठाँइ।
राँम सनेही बाहिरा, ऊँजड़ मेरे भाँइ॥
Purapāṭaṇa Sūbasa Basai, Ānam̐da Thaye Thai.
Rām̐ma Sanēhī Bāhirā, Ūm̐jaṛa Mērē Bhai. 
 
कोई नगर कितना भी अच्छा बसा हुआ हो, और उसमे लोग कितने ही आनंद उठा रहे हों लेकिन वह उजड़ा हुआ ही समझो यदि उसमे राम के भक्त निवास नहीं कर रहे हों। जिस स्थान पर राम से स्नेह नहीं है राम भक्तों का निवास नहीं है वह उजड़ा हुआ ही समझ लेना चाहिए।

जिहिं घरि साध न पूजिये, हरि की सेवा नाँहिं।
ते घर मरड़हट सारषे, भूत बसै तिन माँहि॥
Jihin Ghari Saath Na Poojiye, Hari Kee Seva Naanhin.
Te Ghar Maradahat Saarashe, Bhoot Basai Tin Maanhi. 
 
जिस घर में हरी की भक्ति नहीं की जा रही हो और साधू का कोई स्थान नहीं हो, वह मरघट के समान ही होता है और उस घर में भूंत रहते हैं। भाव है की हरी का निवास जहाँ हो वहीँ समृधि और सम्पन्नता होती है।

है गै गैंवर सघन घन, छत्रा धजा फहराइ।
ता सुख थैं भिष्या भली, हरि सुमिरत दिन जाइ॥
Hai Gai Gainvar Saghan Ghan, Chhatra Dhaja Phaharai.
Ta Sukh Thain Bhishya Bhalee, Hari Sumirat Din Jai. 
 
किसी के पास कई हाथी, घोड़े और प्रजा का गाँव हो खूब एश्वर्य हो शीश पर छात्र हो और महल पर ध्वज फहरा रहा हो, लेकिन यदि वह हरी का भक्त नहीं हो तो उससे तो भला भिकुक्ष ही होता है जो हरी का सुमिरण करता है। भाव है की धन दौलत होने से कोई लाभ नहीं होने वाला है यदि ईश्वर का सुमिरण नहीं कीया जाए। हरी के नाम का गुणगान और सुमिरण ही मुक्ति का आधार है।

हैं गै गैंवर सघन घन, छत्रापति की नारि।
तास पटंतर नाँ तुलै, हरिजन की पनिहारि॥

Hain Gai Gainvar Saghan Ghan, Chhatraapati Kee Naari.
Taas Patantar Naan Tulai, Harijan Kee Panihaari.

हाथी घोड़े और समस्त एश्वर्य से युक्त छत्र धारी रानी भी हरी के नाम का सुमिरण करने वाले वैष्णव की दासी के समान है। भाव है की हरी के नाम का सुमिरण ही मुक्ति का आधार है।

क्यूँ नृप नारी नींदये, क्यूँ पनिहारी कौं माँन।
वामाँग सँवारै पीव कौ, वा नित उठि सुमिरै राँम॥
Kyoon Narp Naaree Neendaye, Kyoon Panihaaree Kaun Maann.
Vaamaang Sanvaarai Peev Kau, Va Nit Uthi Sumirai Raanm. 
 
समस्त एश्वर्य से युक्त रानी की तुलना में दासी श्रेष्ठ क्यों है ? रानी इस भौतिक संसार के स्वामी के लिए श्रृंगार करती है और दासी (हरी भक्त) तो ईश्वर के लिए नित्य ही श्रृंगार (भक्ति) करती है, जो मुक्ति का आधार है। दासी का मान और रानी का सम्मान इसीलिए होता है क्योंकि दासी हरी भक्ति में लीन रहती है जो रानी से भी श्रेष्ठ है। भाव है की हरी के नाम का सुमिरण करो जो की मुक्ति धाम का मार्ग प्रशस्त करती है।


कबीर धनि ते सुंदरी, जिनि जाया बैसनों पूत।
राँम सुमिर निरभैं हुवा, सब जग गया अऊत॥
Kabeer Dhani Te Sundaree, Jini Jaaya Baisanon Poot.
Raanm Sumir Nirabhain Huva, Sab Jag Gaya Aoot. 
 
वह स्त्री धन्य है जो वैष्णव पुत्र को जनम देती है। राम के सुमिरण से वह धन्य हुआ है और बाकी सभी निपूत ही रह गए हैं। भाव है की राम सुमिरण ही निर्भय देता है और मुक्ति का पथ है।

कबीर कुल तौ सो भला, जिहि कुल उपजै दास।
जिहिं कुल दास न ऊपजै, सो कुल आक पलास॥
Kabeer Kul Tau So Bhala, Jihi Kul Upajai Daas.
Jihin Kul Daas Na Oopajai, So Kul Aak Palaas. 
 
वही कुल श्रेष्ठ है जिसमे हरी का भक्त/ सेवक जनम लेता हो, जिस कुल में हरी का सेवक जनम ना ले वह कुल तो पलास के समान है। भाव है की हरी भक्त ही श्रेष्ठ है कोई कुल विशेष नहीं।

साषत बाँभण मति मिलै, बैसनों मिलै चंडाल।
अंक माल दे भटिये, माँनों मिले गोपाल॥
Saashat Baanbhan Mati Milai, Baisanon Milai Chandaal.
Ank Maal De Bhatiye, Maannon Mile Gopaal. 
 
शाक्त ब्राह्मण से भेंट की बजाए तो चांडाल वैष्णव ही श्रेष्ठ है। साहेब ने अनेकों स्थान पर वैष्णव को ही श्रेष्ठ माना है।

राँम जपत दालिद भला, टूटी घर की छाँनि।
ऊँचे मंदिर जालि दे, जहाँ भगति न सारँगपाँनि॥
Raanm Japat Daalid Bhala, Tootee Ghar Kee Chhaanni.
Oonche Mandir Jaali De, Jahaan Bhagati Na Saarangapaanni. 
 
ऐसे ऊँचे महल और अटारी किस काम की जहाँ पर राम की भक्ति ना हो, राम का सुमिरण नहीं कीया जाए ? ऐसे ऊँचे महलों को जला देना ही श्रेष्ठ रहता है जहाँ पर हरी का भक्ति भाव नहीं हो। भक्ति विहीन महलों से तो श्रेष्ठ है टूटी फूटी छान और छप्पर जहाँ पर हरी का वास होता हो, ऐसी दरिद्रता भी भली ही होती है। भाव है की भले ही कोई दरिद्र हो यदि हरी भक्ति का स्थान है तो वह श्रेष्ठ है और यदि हरी भक्ति का अभाव है तो वह स्थान नष्ट कर देना चाहिए।

कबीर भया है केतकी, भवर गये सब दास।
जहाँ जहाँ भगति कबीर की, तहाँ तहाँ राँम निवास॥
Kabeer Bhaya Hai Ketakee, Bhavar Gaye Sab Daas.
Jahan Jahan Bhagati Kabir Kee, Tahan Tahan Ram Nivas. 
 
हरी भक्त केतकी पुष्प के समान है और सभी हरी के दास भ्रमर के समान हैं, जहाँ जहाँ हरी की भक्ति होती है वहीँ हरी का वास होता है। भाव है की हरी भक्ति ही मुक्ति का द्वार है, जहाँ पर हरी की भक्ति की जाती है वह श्रेष्ठ है।

कबीर के पद / Kabir Ke Pad
सतों देखत जग बौराना,
साँच कहौं तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना,
नेमी देखाँ धरमी देखां, प्रात करे असनाना,
आतम मारी पखानहि पूजें, उनमें कछु नहीं ज्ञाना,
बहुतक देखा पीर औलियां, पढ़ै कितेब कुराना,
कै मुरीद तदबीर बतावे, उनमें उहै जो ज्ञाना,
आसन मारि डिंभ धरि बैठें, मन में बहुत गुमाना,
पीपर पाथर पूजन लागें, तीरथ गर्व भुलाना,
टोपी पहिरे माला पहिरें, छाप तिलक अनुमाना,
साखी सब्दहि गावत भूलें, आतम खबरि न जाना,
हिन्दू कहै मोहि राम पियारा, तुर्क कहै रहिमाना,
आपस में दोउ लरि लरि मुएँ, मर्म न काहू जाना,
घर घर मन्तर देत फिरत है, महिमा के अभिमाना,
गुरु के सहित सिख्य सब बड़े, अंत काल पछिताना,
कहै कबीर सुनो हो संतो, ई सब भर्म भुलाना,
केतिक कहौ कहा नहिं मानें, सहजै सहज समाना,
दुलहनी गावहु मंगलचार कबीर के पद/ Kabir Ke Pad
दुलहनीं गावहूँ मंगलचार,
हम घरि आएं हो राजा राम भरतार॥
तन रत करि मैं मन रत करिहूँ, पंचतत्त बराती।
राम देव मोरैं पाँहुनैं आये मैं जोबन मैं माती॥
सरीर सरोवर बेदी करिहूँ, ब्रह्मा वेद उचार।
रामदेव सँगि भाँवरी लैहूँ, धनि धनि भाग हमार॥
सुर तेतीसूँ कौतिग आये, मुनिवर सहस अठ्यासी।
कहै कबीर हँम ब्याहि चले है, पुरिष एक अबिनासी॥

बहुत दिनन थैं मैं प्रीतम पाये, भाग बड़े घरि बैठे आये॥
मंगलाचार माँहि मन राखौं, राम रसाँइण रमना चाषौं।
मंदिर माँहि भयो उजियारा, ले सुतो अपना पीव पियारा॥
मैं रनि राती जे निधि पाई, हमहिं कहाँ यह तुमहि बड़ाइ।
कहै कबीर मैं कछु न कीन्हा सखी सुहाग मोहि दीन्हा॥

अब तोहि जान न देहुँ राम पियारे-कबीर के पद/Kabir Ke Pad
अब तोहि जान न देहुँ राम पियारें , ज्यूँ भावै त्यूँ होहु हमारे॥
बहुत दिनन के बिछुरे हरि पाये, भाग बड़े घरि बैठे आये॥
चरननिलागि करौं बरियायी, प्रेम प्रीति राखों उरझाई।
इत मन मंदिर रहौ नित चोषै, कहै कबीर करहु मति घोषैं

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