पिया मोरा मिलिया सत्त गियाँनी हिंदी मीनिंग Piya Mora Miliya Satt Giyani Hindi Meaning

पिया मोरा मिलिया सत्त गियाँनी हिंदी मीनिंग Piya Mora Miliya Satt Giyani Hindi Meaning

 
Piya Mora Miliya Satt Giyani Hindi Meaning

पिया मोरा मिलिया सत्त गियाँनी।
सब मैं व्यापक सब की जाँनै ऐसा अंतरजामी।
सहज सिंगार प्रेम का चोला सुरति निरति भरि औनी ।
सील संतोख पहिरि दोइ कंगन होइ राही मगन दिवानी।।
कुमति जराइ करौं मैं काज़र पढ़ी प्रेम रस बानी ।
ऐसा पिय हम कबहुँ न देखा सूरति देखि लुभानी। ।
कहै कबीर मिला गुरु पूरा तन की तपनि बुझानी।


कबीर के पद का हिंदी मीनिंग : कबीर साहेब की वाणी है की मुझे मेरा पिया (पूर्ण परम ब्रह्म ) मिल गया है। मेरा पिया सत्य और ग्यानी हैं। मुझे सत्य और ज्ञानी प्रियतम की प्राप्ति हो गई है। वह सब में व्याप्त है और सबके मन की जानता है, वह अन्तर्यामी है। जीवात्मा सहज का श्रृंगार करके और प्रेम का चोला पहनकर सुरति और निरति भर कर लाइ हूँ। मैं प्रेम और श्रेय को भरकर लाइ हूँ। मैंने शील और संतोष रूपी दो कंगन धारण किए हैं और मैं इसी धुन में मगन और दीवानी बन चुकी हूँ।

दीवानी से आशय है की मेरी क्रियाएं सांसारिक क्रियाओं से मेल नहीं खा रही हैं। मैंने दुर्बुद्धि को जलाकर काजल बना लिया है। मैंने प्रेम रस से परिपूर्ण वाणी को पढ़ लिया है। ऐसा प्रियतम तो हमने पहले कभी नहीं देखा है। ऐसे प्रियतम का रूप/सूरत देख कर मैं लुब्ध हो गई हूँ, मेरे प्रियतम की सूरत सभी को लुभाने वाली है। कबीर साहेब कहते हैं की ऐसे परिपूर्ण गुरु की प्राप्ति के उपरान्त मेरे तन की जलन/विरह जलन शांत हो गई है।

कबीर साहेब ने लौकिक प्रेम के आधार पर अलौकिक प्रेम को परिभाषित किया है।

कबीर भजन
पिया मोरा मिलिया सत्त गियानी।।
सब मैं व्यापक सब की जांनै एैसा अंतरजांमीं।
सहज सिंगार प्रेम का चोला सुरति निरति भरि आंनीं।।

सील संतोष प्रहिरी दोई कंगन होई रही मगन दिवांनीं।
कुमति जराई करौं मैं काजर पढ़पी प्रेम रस बांनीं।।

एैसा पिया हम कबहुं न देखा सूरति देखि लुभांनीं।
कहै कबीर मिला गुरू पूरा तन की तपनि बुझांनीं।। 
 
Piya Mora Miliya Satt Gyani,
Sab Mein Vyaapak Sab Ki Jaane Aisa Antarjaami.
Sahaj Singar Prem Ka Chola, Surati-Nirati Bhari Auni,
Seel Santokh Pahiri Doi Kangan, Hoi Rahi Magan Diwani.

Kumati Jarai Karau Main Kajar, Padhi Prem Ras Bani,
Aisa Piya Hum Kabahun Na Dekha, Surati Dekhi Lubhani.
Kahai Kabir Mila Guru Pura, Tan Ki Tapani Bujhani. 

In this spiritual verse by Kabir, it is stressed upon the beautiful relationship with a wise and enlightened understood (or Guru) who knows everything and everywhere. The inner beauty with simplicity and love symbolizing spiritual awareness (Surti and Nirati) is what Kabir describes. In the ecstasy of divine, the seeker wearing humility and contentment as Ornaments becomes the motionless. He tells us to burn away ignorance, to take the 'kohl' of wisdom with our 'essence of love', the essence of devotion. He concludes that the Guru having put out the fires of worldly desires and pain, has peace.

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