दीन गरीबी बंदगी साधुन सों अधीन हिंदी मीनिंग Deen Garibi Bandagi Sadhun So Adheen Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit
दीन गरीबी बंदगी, साधुन सों अधीन।
ताके संग मैं यौ रहूं, ज्यौं पानी संग मीन।।
ताके संग मैं यौ रहूं, ज्यौं पानी संग मीन।।
Deen Gareebee Bandagee, Saadhun Son Adheen.
Taake Sang Main Yau Rahoon, Jyaun Paanee Sang Meen
Taake Sang Main Yau Rahoon, Jyaun Paanee Sang Meen
कबीर दोहे का हिंदी मीनिंग: जो साधु के साथ रह सकते हैं, साधु के अधीन रह सकते हैं, जिनमे दीन, सहिषुणता है, सेवाभाव और प्रेमभाव है उन लोगो के साथ वैसे ही रहना चाहिए जैसे पानी के साथ मछली रहती है, घुल मिल कर और प्रेम के साथ रहना चाहिए। वस्तुतः जो संतजन के पास रहते हैं वे भी 'साधू स्वभाव' के होते हैं। वे अपने अहम् को मार चुके होते हैं और दया, प्रेम और मालिक के प्रति उनमे बंदगी होती है। ऐसे व्यक्ति की संगती को साहेब ने श्रेष्ठ माना है क्योंकि उनकी संगती से मायाजनित विकार दूर होते हैं और व्यक्ति सद्मार्ग की और अग्रसर होता है। 'जिहिं घरि साध न पूजि, हरि की सेवा नाहिं, ते घर मड़हट सारंषे, भूत बसै तिन माहिं ' और जहाँ पर साधू की पूजा नहीं की जाती है वह हरी की सेवा करने में भी असमर्थ है।
उस घर को ऐसे मानिये जैसे वह कोई मरघट हो। साधु की संगती के सबंध में साहेब की वाणी है की ऐसी नगरी जहाँ पर लोग खूब खुशहाली से रह रहे हों (माया जनित वैभव ) जहाँ पर खूब उत्सव मनाये जाते हों लेकिन वह नगर उजड़ा हुआ ही समझो जहा पर राम स्नेही (मालिक और परमसत्ता) के स्नेहीजन को नगर से बाहर कर दिया गया हो। भाव है की जिस नगर में साधू और संतजन का कोई स्थान नहीं है वह उजड़ा हुआ ही समझे।
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