हो बलियां कब देखोगी तोहि मीनिंग Ho Baliya Kab Dekhogi Tohi Meaning Kabir Ke Pad
हो बलियां कब देखोगी तोहि।
अह निस आतुर दरसन कारनि, ऐसी ब्यापै मोहि॥टेक॥
नैन हमारे तुम्ह कूँ चांहै, रती न मांनै हारि।
बिरह अगनि तन अधिक जरावै ऐसी लेहु बिचारि॥
सुनहुं हमारी दादि गुसांई, अब जिन करहुं वधीर।
तुम्ह धीरज मैं आतुर स्वामी, काचै भांडै नीर॥
बहुत दिनन के बिछुरै माधौ, मन नहीं बाँधे धीर।
देह छतां तुम्ह मिलहु कृपा करि, आरतिवंत कबीर॥
अह निस आतुर दरसन कारनि, ऐसी ब्यापै मोहि॥टेक॥
नैन हमारे तुम्ह कूँ चांहै, रती न मांनै हारि।
बिरह अगनि तन अधिक जरावै ऐसी लेहु बिचारि॥
सुनहुं हमारी दादि गुसांई, अब जिन करहुं वधीर।
तुम्ह धीरज मैं आतुर स्वामी, काचै भांडै नीर॥
बहुत दिनन के बिछुरै माधौ, मन नहीं बाँधे धीर।
देह छतां तुम्ह मिलहु कृपा करि, आरतिवंत कबीर॥
कबीर के इस पद में जीवात्मा पूर्ण परमात्मा से विनय करती है की हे ईश्वर, मैं आप पर बलिहारी जाती हूँ। मैं आप पर न्योछावर हूँ। आप मुझे कब दर्शन दोगे। मैं आपके दर्शन करने के लिए नित्य तड़प रही हूँ। मैं दिन रात आपके दर्शन करने के लिए व्याकुल रहती हूँ। मेरे नयन आपके दर्शन ही करना चाहते हैं। आपके दर्शन करने के लिए नयनों ने ज़िद पकड़ रखी है और वे हार मानने के लिए तैयार नहीं हैं। विरह अग्नि इस तन को जला रही है और इस विषय पर आप विचार करें। विरहाग्नि में मेरा तन जले जा रहा है, तड़प रहा है। हे नाथ हमारी विनती सुन लीजिये और इसे अनसुना मत कीजिये। हे नाथ आप तो धैर्य स्वरुप हैं लेकिन मैं आपके दर्शन के लिए आतुर हूँ।
आपके दर्शन के लिए मैं अत्यंत ही व्याकुल हूँ और जैसे कच्चा घड़ा कभी भी टूट सकता है और उसमे भरा पानी बाहर निकल सकता है, ऐसे ही मेरे प्राण भी आपके दर्शन की व्याकुलता में मेरे प्राणों को छोड़ सकते हैं।
में माधव मैं आपसे अनेकों अनेक जन्मों से बिछड़ी हूँ और अब मेरे मन को धैर्य नहीं है। मेरा मन आपके दर्शन के लिए अत्यंत व्याकुल हो रहा है। हे ईश्वर इस देह के रहते हुए आप मुझसे मिलने की कृपा करें ऐसा साहेब कबीर का विनय है।
जीवात्मा पूर्ण परमात्मा से विनय कर रही है की हे स्वामी मुझे आपके दर्शन कब होंगे। मैं आपको कब देख पाउंगी। बलियां=प्रेमी जिस पर प्राण न्योछवर हैं, देखोगी तोहि=आपके दर्शन होंगे। Kabir addresses Ram as his Baliayaan(lover) and says when will he see him
अह निस आतुर दरसन कारनि,
ऐसी ब्यापै मोहि॥
ah nis aatur darasan kaarani ,
aisee byaapai mohi||
रात और दिन मुझे आपके दर्शन के कारण मेरे नयन व्याकुल और उतावले हो रहे हैं। ऐसी उत्सुकता मेरे पूर्ण शरीर में व्याप्त हो रही है। अह निस=रात और दिन, आतुर=उतावली, दरसन=दर्शन, ब्यापै=उत्सुकता, मोहि=मुझे।
Day and night I am impatient for your sight, such is the anxiety(pervasiveness) is in me(whole body)
नैन हमारे तुम्ह कूँ चांहै,
रती न मांनै हारि।
nain hamaare tumh kooncaanhai ,
ratee na maannai haari
मेरे नयन तो हर समय आपको ही चाहते हैं। मेरे नयन हर समय आपके दर्शन करना चाहते हैं। आपके दर्शन करने के लिए ये थोड़ी सी भी हार मानने के लिए तैयार नहीं हैं। नैन-आँखें, हमारे-मेरे, तुम्ह-आपको, कूँ चांहै-दर्शन करना चाहती हैं, रती- थोड़ी सी भी, न मांनै- हार नहीं मानती हैं, My eyes only crave(want) to see you, even for a moment they don’t want to lose (your sight)
बिरह अगनि तन अधिक जरावै
ऐसी लेहु बिचारि॥
birah agani tan adhik jaraavai aisee
lehu bicaari||
विरह की अग्नि मेरे तन को जला रही है, आप विषय पर विचार कर लो। आप मेरी तरफ ध्यान दीजिये क्योंकि बिरह की अग्नि में/संताप में मेरा तन और मन जले जा रहा है। बिरह= अलगाव, अगनि=आग, तन=शरीर, अधिक=more जरावै=burn, लेहु=do बिचारि=विचार कर लें। The anguish of separation is burning my body even more, please do ponder on my request
सुनहुं हमारी दादि गुसांई,
अब जिन करहुं वधीर।
sunahun hamaaree daadi gusaanee ,
ab jin karahun vadheer|
हे नाथ आप अब मेरी करूँन पुकार सुनों। मेरा विनय सुनो। अब आप इस विषय को अनसुना मत कीजिये।
सुनहुं=सुनो, हमारी=मेरी, दादि=करुण पुकार, listening to my plea(with lots of pain); now don’t be late (for a moment)
तुम्ह धीरज मैं आतुर स्वामी,
काचै भांडै नीर॥
tumh dheeraj main aatur svaamee ,
kaacai bhaandai neer||
आप धैर्यशाली हो, आप धैर्यवान हो लेकिन मैं तो बहुत ही विचलित और आतुर हूँ। कहीं ऐसा ना हो की आपके दर्शन की अग्नि में जलते जलते मेरे प्राण ऐसे ही तन से निकल जाएं जैसे कच्चे घड़े को तोड़कर पानी बाहर निकल जाता है। My master you are (treasure of) tolerance(patience) and I am impatient, my body is like (earthen) pot (of soil and weak, can be broken easily),filled with water(which can easily spill)
बहुत दिनन के बिछुरै माधौ,
मन नहीं बाँधे धीर।
bahut dinan ke bichurai maadhau ,
man naheen baandhe dheer|
हे माधव, मैं तो आपसे बहुत जन्मों से बिछड़ चुकी हूँ। अब आपके मिलन के लिए यह मन धैर्य धारण नहीं कर सकता है। Oh Madhav, I am separated from you for long time(many lives), now my heart can’t keep patience anymore
देह छतां तुम्ह मिलहु कृपा करि,
आरतिवंत कबीर॥
deh chataan tumh milahu krpa kari ,
aarativant kabeer||
हे स्वामी मैं आपको हाथ जोड़कर विनती करता हूँ की आप मेरे प्राण रहते मुझे दर्शन दो। देह=शरीर, छतां=के रहते हुए, आरतिवंत= मैं आपको हाथ जोड़कर विनती करता हूँ। Show me your mercy and meet me while my soul has not left this body, says Kabir in reverence
हो बलियां कब देखोगी तोहि लिरिक्स Ho Baliya Kab Dekhogi Tohi Lyrics : Kabir Ke Pad Hindi
Ho Baliyaan Kab Dekhogee Tohi.
Ah Nis Aatur Darasan Kaarani, Aisee Byaapai Mohi.tek.
Nain Hamaare Tumh Koon Chaanhai, Ratee Na Maannai Haari.
Birah Agani Tan Adhik Jaraavai Aisee Lehu Bichaari.
Sunahun Hamaaree Daadi Gusaanee, Ab Jin Karahun Vadheer.
Tumh Dheeraj Main Aatur Svaamee, Kaachai Bhaandai Neer.
Bahut Dinan Ke Bichhurai Maadhau, Man Nahin Baandhe Dheer.
Deh Chhataan Tumh Milahu Krpa Kari, Aarativant Kabeer.
Ah Nis Aatur Darasan Kaarani, Aisee Byaapai Mohi.tek.
Nain Hamaare Tumh Koon Chaanhai, Ratee Na Maannai Haari.
Birah Agani Tan Adhik Jaraavai Aisee Lehu Bichaari.
Sunahun Hamaaree Daadi Gusaanee, Ab Jin Karahun Vadheer.
Tumh Dheeraj Main Aatur Svaamee, Kaachai Bhaandai Neer.
Bahut Dinan Ke Bichhurai Maadhau, Man Nahin Baandhe Dheer.
Deh Chhataan Tumh Milahu Krpa Kari, Aarativant Kabeer.
कबीर साहेब के अन्य पद Kabir Pada in Hindi
सार सुख पाइये रे, रंगि रमहु आत्माँराँम॥टेक॥
बनह बसे का कीजिये, जे मन नहीं तजै बिकार।
घर बन तत समि जिनि किया ते बिरला सन्सार॥
का जटा भसम लेपन किये, कहा गुफा मैं बास।
मन जीत्या जग जीतिये, जौ बिषया रहै उदास॥
सहज भाइ जे ऊपजै, ताका किसा माँन अभिमान।
आपा पर समि चीनियैं, तब मिलै आतमां राम॥
कहै कबीर कृपा भई, गुर ग्यान कह्या समझाईं।
हिरदै श्री हरि भेटियै, जे मन अनतै नहीं जाइ॥
है हरि भजन कौ प्रवान।
नींच पावैं ऊँच पदवी बाजते नीसान॥टेक॥
भजन कौ प्रताप ऐसो, तिरे जल पाषान।
अधम भील अजाति गनिका, चढ़े जात बिवान॥
नव लख तारा चले मण्डल, चलै ससिहर भान।
दास धू कौ अटल पदवी, राम को दीवाँन॥
निगत जाकी साखि बोलै, कहै संत सुजाँन।
जन कबीर तेरी सरनि आयौ, राखि लेहु भगवाँन॥
चलो सखी जाइये तहाँ, जहाँ गये पाइयै परमानंद॥टेक॥
यहु मन आमन धूमनाँ, मेरो तन छीजत नित जाइ।
च्यंतामणि चित चोरियौ, ताथैं कछू न सुहाइ॥
सुनि लखी सुपनै की गति ऐसी, हरि आए हम पास।
सोवत ही जगाइया, जागत भए उदास॥
चलु सखी बिलम न कीजिये, जब लग सांस सरीर।
मिलि रहिये जमनाथ सूँ, सूँ कहै दास कबीर॥
सार सुख पाइये रे, रंगि रमहु आत्माँराँम॥टेक॥
बनह बसे का कीजिये, जे मन नहीं तजै बिकार।
घर बन तत समि जिनि किया ते बिरला सन्सार॥
का जटा भसम लेपन किये, कहा गुफा मैं बास।
मन जीत्या जग जीतिये, जौ बिषया रहै उदास॥
सहज भाइ जे ऊपजै, ताका किसा माँन अभिमान।
आपा पर समि चीनियैं, तब मिलै आतमां राम॥
कहै कबीर कृपा भई, गुर ग्यान कह्या समझाईं।
हिरदै श्री हरि भेटियै, जे मन अनतै नहीं जाइ॥
है हरि भजन कौ प्रवान।
नींच पावैं ऊँच पदवी बाजते नीसान॥टेक॥
भजन कौ प्रताप ऐसो, तिरे जल पाषान।
अधम भील अजाति गनिका, चढ़े जात बिवान॥
नव लख तारा चले मण्डल, चलै ससिहर भान।
दास धू कौ अटल पदवी, राम को दीवाँन॥
निगत जाकी साखि बोलै, कहै संत सुजाँन।
जन कबीर तेरी सरनि आयौ, राखि लेहु भगवाँन॥
चलो सखी जाइये तहाँ, जहाँ गये पाइयै परमानंद॥टेक॥
यहु मन आमन धूमनाँ, मेरो तन छीजत नित जाइ।
च्यंतामणि चित चोरियौ, ताथैं कछू न सुहाइ॥
सुनि लखी सुपनै की गति ऐसी, हरि आए हम पास।
सोवत ही जगाइया, जागत भए उदास॥
चलु सखी बिलम न कीजिये, जब लग सांस सरीर।
मिलि रहिये जमनाथ सूँ, सूँ कहै दास कबीर॥
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Author - Saroj Jangir
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