राम निरंजन न्यारा रे लिरिक्स Raam Niranjan Nyara Re Lyrics Kabir Bhajan Lyrics

राम निरंजन न्यारा रे लिरिक्स Raam Niranjan Nyara Re Lyrics Kabir Bhajan Lyrics Hindi

 
राम निरंजन न्यारा रे लिरिक्स Raam Niranjan Nyara Re Lyrics Kabir Bhajan Lyrics Hindi

राम निरंजन न्यारा रे, अंजन सकल पसारा रे॥टेक॥
अंजन उतपति वो उंकार, अंजन मांड्या सब बिस्तार।
अंजन ब्रह्मा शंकर ईद, अंजन गोपी संगि गोब्यंद॥
अंजन बाणी अंजन बेद, अंजन कीया नांनां भेद।
अंजन विद्या पाठ पुरांन, अंजन फोकट कथाहिं गियांन॥
अंजन पाती अंजन देव, अंजन की करै अंजन सेव॥
अंजन नाचै अंजन गावै, अंजन भेष अनंत दिखावै।
अंजन कहौ कहाँ लग केता, दांन पुनि तप तीरथ जेता॥
कहै कबीर कोई बिरला जागै, अंजन छाड़ि निरंजन लागै॥
राम निरंजन न्यारा रे, अंजन सकल पसारा रे ॥

राम निरंजन न्यारा रे मीनिंग Raam Niranjan Nyara Re Meaning.

 राम निरंजन न्यारा रे, अंजन सकल पसारा रे
raam niranjan nyaara re, anjan sakal pasaara re ||
कबीर साहेब की वाणी है सम्पूर्ण जगत में माया फैली हुई है, पसरी पड़ी है। राम माया से परे हैं और सबसे न्यारे हैं।
Word niranjan means spotless, Pure, Supreme being, Unpainted, Devoid of all Objectifications, without any bad quality (attributes) Niranjan Ram is Unmatched, Manifesting the Entire Anjan (Reality)

अंजन उतपति, ॐ कार, अंजन मांड्या सब विस्तार,
anjan utapati, kaar, anjan Maandya sab vistaar,

माया से ही ओमकार की उत्पत्ति हुई है और माया ने ही इन विभिन्न नाम-रूपो मे विस्तार किया है ।
Anjan are the Womb (of Creation) and the Om, The Anjan Demands All Expansiveness

अंजन ब्रह्मा, शंकर, इंद, अंजन गोपी संगे गोविंद रे ॥
anjan brahma, shankar, ind, anjan gopee sange govind ||

ब्रह्मा, शंकर, इन्द्र तथा गोपियों के साथ रहने वाले श्री कृष्ण सभी माया के ही रूप हैं।
Anjan are Brahma, Shankra and Indra, Anjan is the Govinda along with his Gopis

अंजन वाणी, अंजन वेद, अंजन किया नाना भेद,
anjan vaanee, anjan ved, anjan kiya naana bhed,

वाणी और वेद भी माया ही हैं । माया ने अपने कई रूप धारण कर लिए हैं।  माया ही संसार में विभिन्न रूपों में हैं। Anjan are the Spoken Words and Listening, Anjan has Created Innumerable Distinctions 

अंजन विद्या, पाठ पुराण, अंजन घोकतकत ही ग्यान रे ॥
anjan vidya, paath-puraan, anjan ghokatakat hi gyaan re ||

विद्या, पाठ और पुराण माया के ही आयाम हैं।  यह व्यर्थ का वाचिक ज्ञान भी माया ही है । Anjan are Knowledge, the Daily Prayers and the Ancient Scriptures, Anjan is that Questioning and Reasoning Knowledge

अंजन पाती, अंजन देव, अंजन ही करे, अंजन सेव,
anjan paatee, anjan dev, anjan hee kare, anjan sev.

पूजा करने के साधन पत्रादिक तथा पूज्य देव भी माया ही हैं । माया रूप पुजारी माया रूप देवता की सेवा करता है । Anjan is the Leaf and Anjan are the Enlightened Beings, Anjan is the Served and Anjan is the Servant

अंजन नाचै, अंजन गावै, अंजन भेसी-अनंत दिखावै रे ॥३॥
anjan naachai, anjan gaavai,
anjan bhesee-anant dikhaavai re||3||

माया के विभिन्न रूप हैं जैसे माया नाचती है और माया ही गाती भी है। माया के अनेक रूप हैं और माया स्वंय को अनंत रूपों में प्रकट करती है। Anjan is the Singer and the Dancer, The Anjan Displays Endless Forms

अंजन कहां कहां लग केता  दान पुनि तप तीरथ जेथा
anjan kahaan-kahaan lag keta daan-puni-tap-teerath jetha

माया का वर्णन अकथनीय है माया के बारे मे कहाँ तक कहूँ और उसके कितने रूपों का वर्णन करूं दान, पुण्य, तप, तीर्थ आदि जितने जो कुछ हैं, सब माया के ही रूप हैं। माया ही हैं।  Where is the Limit, up to Which Anjan has Taken Hold? Even in Philanthropy, Purity, Austerities and Places of Pilgrimage, Anjan is Victorious

कहे कबीर कोई बिरला जागे, अंजन छांडी निरंजन लागै ॥
kahe kabeer koee birala jaage, anjan chhaandee niranjan laagai ||
कबीर साहेब की वाणी है की कोई बिरला व्यक्ति ही ज्ञान प्राप्ति के उपरान्त माया को छोड़ कर हरी सुमिरण की तरफ अग्रसर होता है। 

raam niranjan nyaara re - Kumar Gandharva Kabir Bhajan

राम निरंजन न्यारा रे, अंजन सकल पसारा रे ।।टेक।। 
अजन उतपति वो उकार, अंजन मांड्या सब बिस्तार ॥ 
अंजन ब्रह्मा सकर इद, अजन गोपी संगि गोव्यद ।। 
अंजन बॉणी, अंजन बेद, अजन कीया नानां भेद ॥ 
अंजन विद्या पाठ पुरान, अंजन फोकट कथहि गियान ॥ 
अजन पाती अंजन देव, अंजन की करे अजन सेव ।। 
अंजन नाचै अंजन गावै, अंजन भेष अनंत दिखावे ।। 
अंजन कहाँ कहाँ लग केता, दांन पुनि तप तीरथ जेता ।। 
कहै कबीर कोइ विरला जागै, अंजन छाड़ि निरंजन लागे ।
Raam Niranjan Nyaara Re, Anjan Sakal Pasaara Re ..tek ..
Ajan Utati Vo Ukaar, Anjan Mandya Sab Bistaar U
Anjan Brahmaakarar Id, Svarn Gopee Sangee Govid ..
Anjan Bonee, Anjan Bed, Ajan Keeya Naanan Bhed An
Anjan Vidya Paath Prasan, Anjan Paadat Kathahee Gaan Paath
Ajan Paatee Anjan Dev, Anjan Kee Karenar Sev ..
Anjan Naachai Anjan Gaavai, Anjan Bhesh Anant Dikhaave ..
Anjan Kahaan Kahaan Lag Ke Saath, Dann Puni Tap Teerath Jeta ..
Kahai Kabeer Koiraala Jaay, Anjan Chhaadi Niranjanage.
शब्दार्थ-निरजन = माया रहित तत्त्व । अंजन= माया ।। 
 
कबीर साहेब की वाणी है की समस्त संसार माया का ही पसारा है, समस्त संसार में माया व्याप्त है। माया रहित केवल राम समस्त जगत से परे एव भिन्न है तथा समस्त जगत केवल माया का प्रसार है । ओकार की उत्पत्ति माया से है, माया ने ही इन विभिन्न नाम-स्पो मे विस्तार किया है । ब्रह्मा, शकर, इन्द्र तथा गोपियो के साथ रहने वाली कृष्ण भी माया ही है। वाणी और वेद माया ही हैं। माया ने ही ये विभिन्न रूपात्मक भेद किए हैं अथवा माया के प्रश्रय से ही यह रूपात्मक जगत ब्रह्म से भिन्न प्रतीत होता है । माया ही विद्या, पाठ और पुराण है । यह व्यर्थ का वाचिक ज्ञान भी माया ही है । पूजा करने के साधन पत्रादिक तथा पूज्य देव माया ही हैं । माया रूप पुजारी माया रूप देवता की सेवा करता है । माया ही नाचती है और माया ही गाती है , माया जगत में विभिन्न रूपों में व्याप्त है। माया ही अनन्त भेषो में अपने आपको प्रदशित करती है । माया के बारे में कहाँ तक कहूँ और उसके कितने रूपों का वर्णन करू" ? दान, पुण्य, तप, तीर्थ आदि जितने जो कुछ हैं, सब माया ही हैं । कबीर कहते हैं कि किसी विरले को ही माया सम्बन्धी यह बोध होता है । और वही माया का परित्याग करके माया रहित तत्तव (निरजन) मे लीन होता है (उसके प्रति अनुरक्त होता है) ।अलंकार-उल्लेख माया का विभिन्न रूपी से वर्णन है । 
 
अजंन अलप निरज़न सार, यहै चीन्हि नर करहु विचार ।।टेक ॥ 
अंजन उतपति बरतनि लोई, बिना निरंजन मुक्ति न होई ।। 
अंजन आवै अंजनि जाइ निरजन सब घट रह्यो समाइ ।। 
जोग घ्यांन तप सबै विकार, कहै कबीर मेरे रांम अधार ॥
 
राम निरंजन न्यारा रे लिरिक्स Raam Niranjan Nyara Re Lyrics Kabir Bhajan Lyrics Hindi
राम निरंजन न्यारा रे
अंजन सकल पसारा रै।

अंजन उत्पति ॐकार
अंजन मांगे सब विस्तार
अंजन ब्रहमा शंकर इन्द्र
अंजन गोपि संगी गोविन्द रे।

अंजन वाणी अंजन वेद
अंजन किया ना ना भेद
अंजन विद्या पाठ पुराण
अंजन हो कत कत ही ज्ञान रे।

अंजन पाती अंजन देव
अंजन की करे अंजन सेव
अंजन नाचे अंजन गावे
अंजन भेष अनंत दिखावे रे।

अंजन कहाँ कहाँ लग केता
दान पुनी तप तीरथ जेता
कहे कबीर कोई बिरला जागे
अंजन छाडी अनंत ही दागे रे।

राम निरंजन न्यारा रे
अंजन सकल पसारा रै।
 
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Saroj Jangir : Lyrics Pandits
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