Kachu Lena Na Dena Magan Rahana Kabir Bhajan
सांसारिक विषय वासनाओं और जगत के मायाजनित व्यापार के प्रति कबीर साहेब के मन में अरुचि उत्पन्न हो गयी है। साहेब वाणी देते हैं की सांसारिक व्यापार के प्रति अलगाव होकर साईं के नाम के सुमिरण में मगन रहना चाहिए। मानव जीवन अनेकों अनेक योनियों के उपरान्त मिला है जिसे व्यर्थ में गँवाना नहीं चाहिए। यह तन रूपी पिंजरा जिसमे आत्मा रहती है यह पांच तत्वों से बना हुआ है। इसके अंदर आत्मा रूपी मैना बोल रही है। स्वांस इसका प्रतिनिधित्व करते हैं। सांसारिक व्यापार जो शुद्ध रूप से माया का भरम जाल है जिसके अंदर से पार लग जाना मुश्किल है क्योंकि यह नदिया गहरी है और नाँव बहुत ही पुरानी है।
इस नांव का खेवट (खिवैया) हरी ही इसलिए उससे तालमेल बना कर रखना जरुरी है। ईश्वर को पिया/प्रिय घोषित करके वाणी है की ईश्वर किसी मंदिर, मस्जिद और तीर्थ/कर्मकांडों में नहीं अपितु तुम्हारे ही घट में वास करता है। इसे तुम नयन खोलकर देखों। नयन खोलने से आशय है की हृदय में सत्य का प्रकाश उत्पन्न करना, ज्ञान रूपी दीपक को जलाना। यह सत्य का ज्ञान गुरु ही दे सकता है, जो माया के भरम को मिटाने में सक्षम है। इसलिए अपने गुरु के चरणों में ही स्थान बनाये रखना क्योंकि वहीँ से सत्य का ज्ञान प्राप्त होना है। गुरु ही ईश्वर से मिलाने में अहम भूमिका रखता है।
कछु लेना ना देना मगन रहना,
कछु लेना ना देना मगन रहना ॥
पांच तत्व का बना पिंजरा,
जा में बोले है मेरी मैंना ।
गहरी नदियां नाव पुरानी,
खेवटियां से मिले रहना ॥
तेरो पिया तोरे घट में बसत है,
सखी खोलकर देखो नैंना ।
कहत कबिरा सुनो भाई साधो,
गुरु के चरन में पड़े रहना ॥
संत कबीरदास जी के इस भजन में गहन आध्यात्मिक संदेश निहित है, जो हमें आत्मज्ञान और ईश्वर से जुड़ने की प्रेरणा देता है। आइए, सरल भाषा में प्रत्येक पंक्ति के अर्थ को समझें:
"कछु लेना ना देना मगन रहना,"यह पंक्ति हमें सिखाती है कि संसार की लेन-देन, मोह-माया से मुक्त होकर, आत्मा में मग्न रहना चाहिए। जब हम सांसारिक इच्छाओं और वासनाओं से ऊपर उठते हैं, तभी सच्चे आनंद की प्राप्ति होती है।
"पांच तत्व का बना पिंजरा, जा में बोले है मेरी मैना,"हमारा शरीर पांच तत्वों—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश—से बना एक पिंजरे के समान है, जिसमें आत्मा रूपी मैना वास करती है। यह दर्शाता है कि आत्मा इस भौतिक शरीर में बंधी हुई है, जबकि उसकी असली प्रकृति स्वतंत्र और अनंत है।
"गहरी नदियां नाव पुरानी, खेवटियां से मिले रहना,"जीवन रूपी नदी गहरी और कठिनाइयों से भरी है, और हमारा शरीर एक पुरानी नाव के समान है। इस यात्रा में गुरु रूपी खेवट (मल्लाह) का साथ आवश्यक है, जो हमें सुरक्षित पार ले जा सकते हैं। इसलिए, हमें सदैव गुरु के सान्निध्य में रहना चाहिए।
"तेरो पिया तोरे घट में बसत है, सखी खोलकर देखो नैंना,"कबीरदास जी कहते हैं कि तुम्हारा प्रियतम (ईश्वर) तुम्हारे ही भीतर वास करता है। हे सखी, अपनी आंतरिक दृष्टि (आत्मचिंतन) से उसे देखो। यह संदेश आत्म-साक्षात्कार की ओर प्रेरित करता है, जहां ईश्वर को बाहर नहीं, बल्कि अपने भीतर खोजने की आवश्यकता है।
"कहत कबिरा सुनो भाई साधो, गुरु के चरन में पड़े रहना,"कबीरदास जी उपदेश देते हैं कि हे साधु भाइयों, गुरु के चरणों में समर्पित रहो। गुरु ही वह मार्गदर्शक हैं, जो हमें आत्मज्ञान और मोक्ष की ओर ले जाते हैं। उनकी शरण में रहकर ही हम जीवन के सत्य को समझ सकते हैं।
इस भजन के माध्यम से कबीरदास जी हमें संसार की मोह-माया से मुक्त होकर, आत्मा की वास्तविकता को पहचानने, गुरु की महत्ता को समझने और आत्म-साक्षात्कार की दिशा में अग्रसर होने की प्रेरणा देते हैं।
Magan Rehana | Kabir Bhajan | Vidushi Dr. Ashwini Bhide Deshpande
Kachhu Lena Na Dena Magan Rahana,
Kachhu Lena Na Dena Magan Rahana
Paanch Tatv Ka Bana Paura,
Ja Mein Bole Hai Meree Ina.
Gaharee Naadiyaan Naav Puraanee,
Khevatiyon Se Mile Rahana Mile
Tero Piya Tore Ghat Mein Basat Hai,
Sakhee Khulakar Dekho Naanna.
Kahat Kabira Suno Bhaee Saadho,
Guru Ke Charan Mein Pade Rahana Kachu Lena Na Dena Magan Rehana' by Dr. Ashwini Bhide Deshpande in her unique style.Raga: Raga Basant Mukhari Lyrics: Saint Kabir Das Composition: Kachu Lena Na Dena Magan Rehana(Bhajan) Composer: Dr. Ashwini Bhide Deshpande Vocalist: Vidushi Dr. Ashwini Bhide Deshpande Style: Jaipur-Atrauli Gharana
Dr. Ashwini Bhide-Deshpande: Ashwini Tai belongs to the Jaipur-Atrauli gharana tradition. Ashwini Bhide-Deshpande was born in Mumbai on 7th October, 1960, into a family of music connoisseurs and musicians. She completed her Sangeet Visharad from the Akhil Bharatiya Gandharva Mahavidyalaya. Being a scholar, Ashwinitai also obtained a PhD in Biochemistry from the reputed Bhabha Atomic Research Centre, Mumbai. Ashwinitai‘s journey into classical music began under the tutelage of Narayanrao Datar, who belonged to the Paluskar branch of the Gwalior gharana.
Later, her disciplined taleem under her mother, Manik Bhide (who herself was trained under the legendary Kishori Amonkar) was largely made up of learning the traditional aspects of the Jaipur-Atrauli style of raga development and also studying the nuances of raga-music. She then went on to train under Ratnakar Pai, a renowned teacher of the gharana, from whom she received further guidance and a great repertoire of the traditional paramparik compositions and ragas. Because of her influences from the Jaipur-Atrauli, Mewati and Patiala gharanas, she has created her own musical style. She holds a strong command over the three primary saptaks.
Raga: Raga Basant Mukhari
Lyrics: Saint Kabir Das
Composition: Kachu Lena Na Dena Magan Rehana(Bhajan)
Composer: Dr. Ashwini Bhide Deshpande
Vocalist: Vidushi Dr. Ashwini Bhide Deshpande
Style: Jaipur-Atrauli Gharana
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