हिरना समझ बुझ बन चरना ।
एक बन चरना, दुजे बन चरना, तिजे बन नहीं तू चरना ॥ १॥`
तिजे बन पारधी , उनके नज़र नहीं तू परना || २ ॥
तोहे मार तेरा मांस बिकावे , तेरे खाल का करेंगे बिछोना ॥ ३ ॥
पॉँच हिरना पचीस हिरनी , उनमे एक तू चतुर ना ॥ ४ ॥
कहे कबीरा सुन भई साधो , गुरुके चरण चित धरना ॥५ ॥
हिरना (हिरण -मृग) से आशय है हमारा चंचल मन जो विषय विकार और माया के पीछे दौड़ता रहता है। हिरण का आशय कबीर साहेब की वाणियों में ऐसे मन से लिया जाता है जो स्थिर नहीं है और माया का लोलुप है। जैसे हम/जीवात्मा सांसारिक सुखों के पीछे भागते हैं उसी को सांकेतिक रूप में हिरण के चरने से समझाया गया है। यह जगत बन (जंगल) है।
साहेब की वाणी है की हमें समझ बूझ कर चरना है, समझ बूझ कर संसार में आचार और व्यवहार करना है। जीवन की तीन अवस्थाओं का वर्णन करके समझाया गया ही इस जीवन में प्रथम वन से आशय बाल्य काल है जिसमे जीवात्मा बेख़बर होकर अपने मन के मुताबिक़ आचरण करती है। द्वितीय अवस्था (द्वितीय बन ) युवावस्था का होता है जिसमे जीवात्मा अपनी मनमानी करती है और दम्भ और अहम् से भरी रहती है। वह अधिक से अधिक माया जोड़ने की जुगत में लगी रहती है।
ऐसे में साहेब कहते हैं की पाँचवे वन में पाँच प्रकार खतरे हैं। ये पाँच प्रकार के विकार हैं। पारधी से आशय शिकारी से जो तुम्हारा शिकार करके तुम्हारे माँस को बेचेंगे और तुम्हे ही कष्ट देंगे। भाव है की इन सबसे बचने के लिए गुरु की शिक्षाओं पर अमल करना ही हितकर है।
हिरना समझ बूझ बन चरना|| Hirna Samajh Boojh Ban Charna||
Oh Deer graze forest with knowledge and discrimination||
एक बन चरना, दूजे बन चरना Ek Ban Charna, Duje Ban Charna
Graze in the first forest, graze in the second forest
तीजे बन पग नहिं धरना || Tije Ban Pag Nahin Dharna||
But don't tread into the third forest|, (Third forest is five senses)
हिरना समझ बूझ बन चरना|| Hirna Samajh Boojh Ban Charna||
Oh Deer graze forest with knowledge and discrimination||
तीजे बनमें पांच पारधी, Tije Ban Mein Panch Paardhi
The third forest has five hunters (Five hunters are sight, sound, smell, taste and touch)
उनके नजर नहिं पडना || Un Ke Nazar Nahin Padna||
Don't let them see you||
हिरना समझ बूझ बन चरना|| Hirna Samajh Boojh Ban Charna||
Oh Deer graze forest with knowledge and discrimination||
पांच हिरना, पचीस हिरनी
Kabir Bhajan Lyrics in Hindi
Panch Hirana, Pachis Hirni
Five deer, twenty five female deer
उन में एक चतुर ना || Un Mein Ek Chatur Na||
One among them is clever||
हिरना समझ बूझ बन चरना|| Hirna Samajh Boojh Ban Charna||
Oh Deer graze forest with knowledge and discrimination||
तोये मार तेरो मास बिकावे Toye Mar Tero Mas Bikawe
Killing you they will sell your flesh
तेरे खाल का करेंगे बिछोना Tere khal ka karenge bichona
Your Skin will be used as a covering (dead animal skin is used as cover to sit on)
हिरना समझ बूझ बन चरना|| Hirna Samajh Boojh Ban Charna||
Oh Deer graze forest with knowledge and discrimination||
कहे कबीराजी सुनो भाई साधो Kahe Kabira Jo Suno Bhai Sadho
Says Kabir listen oh practicing aspirant
गुरू के चरण चित धरना || Guru Ke Charan Chit Dharna||
Offer your mind at the feet of the Guru||
हिरना समझ बूझ बन चरना|| Hirna Samajh Boojh Ban Charna||
Oh Deer graze forest with knowledge and discrimination|
हिरना समझ बुझ बन चरना लिरिक्स Hirana Samajh Bujh Charna Lyrics with Meaning
हिरना समझ बुझ बन चरना। एक बन चरना, दुजे बन चरना, तिजे बन नहीं तू चरना। तिजे बन पारधी , उनके नज़र नहीं तू परना। तोहे मार तेरा मांस बिकावे , तेरे खाल का करेंगे बिछोना। पॉँच हिरना पचीस हिरनी , उनमे एक तू चतुर ना। कहे कबीरा सुन भई साधो , गुरुके चरण चित धरना।
Hirana Samajh Bujh Ban Charana. Ek Ban Charana, Duje Banana Charana, Tije Ban Not Charana. Tije Ban Paaradhee, Unakee Nazar Nahin Parana. Tohe Maar Tera Maans Bikaave, Teree Khaal Ka Vilona. Ponch Hirana Pachees Hiranee, Uname Ek Too Chatur Na. Kahe Kabeera Sun Bhee Saadho, Guruke Charan Chit Dharana.
कबीर ने इंद्रियों को आत्मा की ओर ले जाने वाले रास्ते में प्रमुख बाधा माना है। उनका मानना था कि मनुष्य की इंद्रियां उसे मोह, माया और भौतिक सुखों की ओर आकर्षित करती हैं, जिससे वह अपने सच्चे आत्मज्ञान और ईश्वर से दूर हो जाता है। कबीर ने कहा कि इंद्रियों पर नियंत्रण करना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि ये मनुष्य को भ्रमित करती हैं और उसकी आध्यात्मिक उन्नति में रुकावट पैदा करती हैं।
उनके भजनों और दोहों में अक्सर इंद्रियों के मोह से बचने और सच्चे ज्ञान की ओर बढ़ने का संदेश मिलता है। कबीर ने इंद्रियों को वश में रखने और साधना के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार की बात की, जिससे व्यक्ति संसारिक इच्छाओं से ऊपर उठकर ईश्वर के सच्चे मार्ग पर चल सके। उनके अनुसार, जब मनुष्य अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करता है, तभी वह सच्चे आनंद और ईश्वर का साक्षात्कार कर पाता है।
सरगम
राग : मिश्र बिभास , ताल : केहरवा
दो ऋषभ, कोमल धैवत , निषाद वर्ज
विनम्र निवेदन: वेबसाइट को और बेहतर बनाने हेतु अपने कीमती सुझाव नीचे कॉमेंट बॉक्स में लिखें व इस ज्ञानवर्धक ख़जाने को अपनें मित्रों के साथ अवश्य शेयर करें। यदि कोई त्रुटि / सुधार हो तो आप मुझे यहाँ क्लिक करके ई मेल के माध्यम से भी सम्पर्क कर सकते हैं। धन्यवाद।