ऊधौ तुम हौ अति बड़भागी हिंदी मीनिंग Udho Tum Ho Ati Badbhagi Hindi Meaning
ऊधौ तुम हौ अति बड़भागी हिंदी मीनिंग Udho Tum Ho Ati Badbhagi Hindi Meaning Soordas Ke Pad
ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।
सूर दास के पद के हिंदी मीनिंग :
or
ऊधौ तुम हौ अति बड़ भागी।
अपरस रहत सनेह तगादै, नाहिन मन अनुरागी।।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौ जल माहँ तेल की गागरि, बूद न ताकौ लागी।।
प्रीति नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
'सूरदास' अबला हम भोरी, गुर चीटी ज्यौ पागी।।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।
सूर दास के पद के हिंदी मीनिंग :
or
ऊधौ तुम हौ अति बड़ भागी।
अपरस रहत सनेह तगादै, नाहिन मन अनुरागी।।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौ जल माहँ तेल की गागरि, बूद न ताकौ लागी।।
प्रीति नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
'सूरदास' अबला हम भोरी, गुर चीटी ज्यौ पागी।।
शब्दार्थ : हौ-हो, अति - बहुत, बड़भागी भाग्यवान, अपरस नीरस, अछूता, सनेह - स्नेह, तगा - धागा, बंधन, नहीं, अनुरागी प्रेमी, पुरइनि - कमल तैं - इसलिए, नाहिन = नहीं, अनुरागी का, पात पत्ता, ता उसका, ज्यौं जैसे, जिस प्रकार, माह - में, गागरि मटकी (छोटा घड़ा), ताकौं - उसको, प्रीति नदी प्रेम की नदी, पाउँ पैर, बौखौ दृष्टि अबला डुबोया, नजर, रूप सुंदरता, परागी मुग्ध होना, असहाय, भोरी भोली, गुर - गुड़, पागी पगी।
सूरदास के पद का हिंदी मीनिंग :
गोपियाँ उद्धव से कहती हैं की तुम बड़े ही भागी हो, भाग्यशाली हो क्योंकि तुम प्रेम के बंधन से दूर हो. तुम प्रेम के वन्धन से मुक्त हो. जैसे कमल के फूल की पत्तियाँ जल में रहकर भी जल से ऊपर ही रहती है, जल में गलती मिलती नहीं हैं. उस पर जल की एक बूंद भी नहीं ठहरती है, जल का कोई दाग उस पर नहीं लगता है. तुम तो ऐसे ही हो जैसे तेल की मटकी को पानी में डुबो देने पर भी एक बूंद भी उसके ऊपर नहीं ठहरती है. तुमने प्रेम की नदी में अभी तक पांव नहीं रखा है. तुम्हारी द्रष्टि किसी को देख करके भी उसमे उलझी नहीं है, किसी से प्रेम स्थापित नहीं हुआ है. लेकिन हम अबलाएँ तो भोली भाली हैं हम तो जैसे गुड़ पर मक्खी बैठ कर चिपक जाती है (चिपक कर वह प्राण त्याग देती है ) वैसे स्वभाव की हैं. इस पद में श्रृंगार और वात्सल्य रस की व्यंजना हुई है. इस पद्य में विरह का चित्रण भी प्राप्त होता है.
इस पद्य में निम्न अलंकारों का उपयोग हुआ है.
सूरदास के पद का हिंदी मीनिंग :
गोपियाँ उद्धव से कहती हैं की तुम बड़े ही भागी हो, भाग्यशाली हो क्योंकि तुम प्रेम के बंधन से दूर हो. तुम प्रेम के वन्धन से मुक्त हो. जैसे कमल के फूल की पत्तियाँ जल में रहकर भी जल से ऊपर ही रहती है, जल में गलती मिलती नहीं हैं. उस पर जल की एक बूंद भी नहीं ठहरती है, जल का कोई दाग उस पर नहीं लगता है. तुम तो ऐसे ही हो जैसे तेल की मटकी को पानी में डुबो देने पर भी एक बूंद भी उसके ऊपर नहीं ठहरती है. तुमने प्रेम की नदी में अभी तक पांव नहीं रखा है. तुम्हारी द्रष्टि किसी को देख करके भी उसमे उलझी नहीं है, किसी से प्रेम स्थापित नहीं हुआ है. लेकिन हम अबलाएँ तो भोली भाली हैं हम तो जैसे गुड़ पर मक्खी बैठ कर चिपक जाती है (चिपक कर वह प्राण त्याग देती है ) वैसे स्वभाव की हैं. इस पद में श्रृंगार और वात्सल्य रस की व्यंजना हुई है. इस पद्य में विरह का चित्रण भी प्राप्त होता है.
इस पद्य में निम्न अलंकारों का उपयोग हुआ है.
- अनुप्रास : "नाहिन मन अनुरागी" "पुरइनि पात रहत" " ज्यौं जल",
- उपमा- "गुर चाँटी ज्यौं पागी"
- रूपक- "अपरस रहत सनेह तगा तैं"
- उदाहरण- "ज्यौं जल माई तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी"
- दृष्टात- "पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।"
ऊधौ तुम हौ अति बड़भागी में गोपियाँ उद्धव जी भाग्यवान कहकर क्या व्यंग्य कर रही हैं ?
गोपियाँ उद्धव के व्यंग्य कर रही हैं की तुम श्री कृष्ण के समीप रहकर भी उनसे दूर हो क्योंकि तुम्हे प्रीत नहीं लगी है। उद्धव श्री कृष्ण रूपी प्रेम के सागर के समीप रहकर भी अनुरक्त नहीं हुए हैं।
गोपियों ने किन किन कारणों से उद्धव जी को उलाहने दिए।
गोपियों ने उद्धव जी को चिकना घड़ा और कमल के पत्ते से तुलना करके कहा की वे प्रेम से बिलकुल वंचित हैं।
गोपियाँ उद्धव के व्यंग्य कर रही हैं की तुम श्री कृष्ण के समीप रहकर भी उनसे दूर हो क्योंकि तुम्हे प्रीत नहीं लगी है। उद्धव श्री कृष्ण रूपी प्रेम के सागर के समीप रहकर भी अनुरक्त नहीं हुए हैं।
गोपियों ने किन किन कारणों से उद्धव जी को उलाहने दिए।
गोपियों ने उद्धव जी को चिकना घड़ा और कमल के पत्ते से तुलना करके कहा की वे प्रेम से बिलकुल वंचित हैं।
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रूपक अलींकार’ का उदाहरण छाँटकर सलखखए
उद्धव तुम हो अति बड़भागी में कौन सा व्यंग्य है?
Uddhav Tum Na hoti badi bhag chali mujhe daba do peg dance ka arth
Ismein kaun sa chhand hai