मन की मन ही माँझ रही हिंदी मीनिंग Man Ki Man Hi Manjh Rahi Hindi Meaning Soor Ke Pad
मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही।
‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही।
‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही।
शब्दार्थ जाइ : माँझ = जाकर। पै में, भीतर, अंदर। कहिए से। ऊधौ = उद्धव। नाहीं कहें। नहीं। परत = पड़ता, पड़ती। अवधि = निश्चित समय । आस = आवन आने की। बिथा व्यथा, कष्ट। जोग = आशा। योग। सही = सहन की। अधार = आधार, सहारा। सँदेसनि = संदेश को। सुनि-सुनि = सुन-सुनकर। बिरहिनि = वियोग में जीने वाली स्त्री। बिरह = वियोग। दही = जली। चाहति = चाहती। हुतीं गुहारि रक्षा के लिए पुकारना। जितहिं तैं उत उधर, वहाँ। धार धरहिं = धारण करना। मरजादा रखी। = थीं। योग की प्रबल धार। धीर धीरज। मर्यादा, प्रतिष्ठा । न लही -नहीं रखी।
सूरदास के पद का भावार्थ/हिंदी मीनिंग : सूरदास के द्वारा रचित ‘सूरसागर’ के भ्रमरगीत के इस पद्य में गोपियों और उद्धव में मध्य का संवाद है. श्री कृष्ण जी ने उद्धव जी के द्वारा गोपियों को यह सन्देश पहुचाया की वे लौटकर वापस नहीं आयेंगे. इससे विरह में जल रही गोपियाँ दुःख से भर जाती हैं. सूरदास के इस पद में गोपियाँ उद्धव से कह रही हैं की जबसे श्री कृष्ण जी ने गोकुल को छोड़ा है, उनके मन की इच्छा मन में ही रह गई है.
उद्धव हम जाकर किसे अपनी कहानी सुनाएँ, यह कहने योग्य भी नहीं है. श्री कृष्ण के अतिरिक्त कोई अन्य इसके पात्र नहीं है जिसे अपनी व्यथा का कहा जा सके। वे उद्धव जी को भी इसका पात्र नहीं समझती हैं। श्री कृष्ण जी के वापस लौट आने की आस में ही उन्होंने यह दुःख सहे हैं. अब जब श्री कृष्ण जी का योग सन्देश प्राप्त हुआ है तो उन्हें गोपियाँ बिरह में टूट सी गई हैं. जहाँ पर ऐसी राह थी की हमें यहाँ से सहायता मिलेगी वहीँ से दुःख की प्रबल धारा बही है. हे श्री कृष्ण अब हम क्यों मर्यादा को धारण करें जब श्री कृष्ण जी ने जब हमें त्याग ही दिया है तो हमारी सभी मर्यादें नष्ट हो गई हैं.
सूरदास के पद का भावार्थ/हिंदी मीनिंग : सूरदास के द्वारा रचित ‘सूरसागर’ के भ्रमरगीत के इस पद्य में गोपियों और उद्धव में मध्य का संवाद है. श्री कृष्ण जी ने उद्धव जी के द्वारा गोपियों को यह सन्देश पहुचाया की वे लौटकर वापस नहीं आयेंगे. इससे विरह में जल रही गोपियाँ दुःख से भर जाती हैं. सूरदास के इस पद में गोपियाँ उद्धव से कह रही हैं की जबसे श्री कृष्ण जी ने गोकुल को छोड़ा है, उनके मन की इच्छा मन में ही रह गई है.
उद्धव हम जाकर किसे अपनी कहानी सुनाएँ, यह कहने योग्य भी नहीं है. श्री कृष्ण के अतिरिक्त कोई अन्य इसके पात्र नहीं है जिसे अपनी व्यथा का कहा जा सके। वे उद्धव जी को भी इसका पात्र नहीं समझती हैं। श्री कृष्ण जी के वापस लौट आने की आस में ही उन्होंने यह दुःख सहे हैं. अब जब श्री कृष्ण जी का योग सन्देश प्राप्त हुआ है तो उन्हें गोपियाँ बिरह में टूट सी गई हैं. जहाँ पर ऐसी राह थी की हमें यहाँ से सहायता मिलेगी वहीँ से दुःख की प्रबल धारा बही है. हे श्री कृष्ण अब हम क्यों मर्यादा को धारण करें जब श्री कृष्ण जी ने जब हमें त्याग ही दिया है तो हमारी सभी मर्यादें नष्ट हो गई हैं.
Man Kee Man Hee Maanjh Rahee.
Kahie Jai Kaun Pai Oodhau, Naaheen Parat Kahee.
Avadhi Adhaar Aas Aavan Kee, Tan Man Bitha Sahee.
Ab In Jog Sandesani Suni-suni, Birahini Birah Dahee.
Chaahati Huteen Guhaari Jitahin Tain, Ut Tain Dhaar Bahee.
‘sooradaas’ Ab Dheer Dharahin Kyaun, Marajaada Na Lahee.
Kahie Jai Kaun Pai Oodhau, Naaheen Parat Kahee.
Avadhi Adhaar Aas Aavan Kee, Tan Man Bitha Sahee.
Ab In Jog Sandesani Suni-suni, Birahini Birah Dahee.
Chaahati Huteen Guhaari Jitahin Tain, Ut Tain Dhaar Bahee.
‘sooradaas’ Ab Dheer Dharahin Kyaun, Marajaada Na Lahee.
गोपियों की मन की बात मन में ही क्यों रह गई?
जब श्री कृष्ण गोपियों को अकेले छोड़ गए और उद्धव जी कृष्ण जी का सन्देश लेकर पहुँचे तो उन्होंने श्री कृष्ण जी के आने की बात बताने के स्थान पर योग सन्देश देने लगे जिससे गोपियाँ अधिक दुखी हो गईं। वे श्री कृष्ण जी से अपने मन की बात कहना चाहती थी लेकिन कृष्ण जी के संदेशे को प्राप्त करके उनके मन की व्यथा मन में ही रह गई.गोपियों की विरहाग्नि और अधिक क्यों धधक गई?
जब गोपियों को पता चला की श्री कृष्ण जी नहीं आ रहे हैं और उलटे आने के उन्होंने तो योग सन्देश भिजवा दिया है तो वे अधिक व्यथित हो गई और उनकी बिरह अग्नि अधिकता से धधकने लगी।
गोपियाँ किस आशा में दुख सहकर भी जी रहीं थीं?
गोपियों को यह आशा थी की एक रोज कृष्ण जी लौट कर आएंगे। वे सोचती थी की कृष्ण जी हमेशा के लिए नहीं गए हैं। श्री कृष्ण जी से पुनः मिलन की आशा में ही गोपियाँ बिरह का दुःख सहकर जीवित रहीं।
मन की मन ही माँझ रही में कौनसा रस है ?
मन की मन ही माँझ रही में वियोग श्रृंगार रस का उपयोग हुआ है।
‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?
श्री कृष्ण जी के साथ प्रेम के कारण गोपियों को घर परिवार और समाज में खूब खरी खोटी सुननी पड़ती थी। वे स्वंय व्यथित होकर भी श्री कृष्ण जी से प्रेम का सबंध निभाती थी। जब श्री कृष्ण जी ने उद्धव जी के माध्यम से योग का सन्देश भिजवा दिया तो गोपियों की समस्त आशाएं टूट गयी और वे कहने लगी की अब कैसी मर्यादा। जब श्री कृष्ण जी ने उनको त्याग ही दिया है तो समस्त मर्यादा नष्ट हो गई हैं।
मन की मन ही माँझ रही का क्या आशय है
गोपियाँ श्री कृष्ण जी से अपने मन की बात कहना चाहती थी लेकिन जब उनको ज्ञात हुआ की कृष्ण जी अब नहीं आयेंगे तोउनके मन की बातें मन में ही रह गई।
गोपियों की कौनसी बात मन में रह गई ?
गोपियों को आशा थी की एक रोज कृष्ण उनसे मिलने आएंगे और उनके विरह को समाप्त करेंगे। गोपियाँ विरह में इस आशा में जल रही थी की एक रोज श्री कृष्ण से वे मन की बात करेंगी। लेकिन जब उद्धव जी ने योग का सन्देश दिया तो उनके मन की व्यथा मन में ही रह गई।
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