कौसिक सुनहु मंद यहु बालकु हिंदी मीनिंग Koushik Sunahu Mand Balaku Hindi Meaning

कौसिक सुनहु मंद यहु बालकु हिंदी मीनिंग Koushik Sunahu Mand Balaku Hindi Meaning


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कौसिक सुनहु मंद यहु बालकु। कुटिल काले बस निजकुल घालकु,
भानु बंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुस अबुध असंकू,
काल कवलु होइहि छन माहीं। कहऊँ पुकारि खोरि मोहि नाहीं,
तुम्ह हटकहु जौं चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा,
लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा,
अपने मुँह तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी,
नहिं संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू,
बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा,
सूर समर करनी करहिं, कहिन जनावहिं आपु,
विद्यमान रन पाइ रिपु, कायर कथहिं प्रतापु.


तुलसीदास पद के शब्दार्थ - कौसिक = विश्वामित्र, यहाँ कौसिक से आशय विश्वामित्र से है। मंद =मंद बुद्धि, मूर्ख, बुद्धिहीन। कुटिल = टेढ़ा। काले बस = काल/मृत्यु के वश में आकर। घालकु = नष्ट करने वाला, समाप्त करने वाला। भानु बंस = सूर्यवंश, भानुकुल। राकेस = चन्द्रमा। कलंकू = कलंक, दाग। निपट = निरा, अत्यंत। निरंकुस = स्वच्छन्द, अनुशासनहीन। अबुध = मूर्ख, अज्ञानी। असंकू = निडर। काल कवलु = मृत्यु का ग्रास, काल का भागी, छन माहीं = क्षण में, अल्प समय में, खोरि = दोष, खोट, हटकहु = रोक लो। जौं = यदि। चहहु = चाहते हो। उबारा = बचाना। प्रतापु = प्रभाव, पराक्रम। रोषु = क्रोध, गुस्सा । सुजसु = कीर्ति, यश। अछत = रहते हुए, होते हुए। को = कौन। बरनै = वर्णन करना। पारा = समर्थ, कर पाना। आपनि = अपनी। करनी = कार्य। बहु = बहुत। बरनी = वर्णन करना। पुनि = पुनः, बार बार। कहहू = कहिए। जनि = मत। रिस = क्रोध, गुस्सा। रोकि = रोककर। दुसह = असहनीय। सहहू = सहिए, सहन कीजिए। बीरबती = वीरता धारण करने वाला। धीर = धैर्यवान। अछोभा = क्रोध न करने वाला। गारी देत = गाली देते हुए। सूर = शूर, वीर। समर = युद्ध। जनावहिं = जताते हैं। रिपु = दुश्मन। कायर = डरपोक। कथहिं = कहते हैं, सुनाते हैं।

तुलसीदास पद का हिंदी मीनिंग Hindi Meaning of Tulsidasa Pad:

यह पद तुलसीदास जी कृत रामचरित मानस के बाल काण्ड से सबंधित है जिसमे लक्ष्मण के परशुराम जी से संवाद के उपरान्त परशुराम विश्वामित्र जी से संवाद करते हैं. क्रोधित परशुराम जी विश्वामित्र जी से संवाद करते हैं की लक्ष्मण को समझाएं।
यह बालक (लक्ष्मण) बुद्धिहीन और कुटिल स्वभाव का है। यह काल के वश में आकर अपने कुल का भी नाश करवाएगा।
यह (लक्ष्मण जी ) सुर्यवंश पर कलंक है जैसे चंद्रमा पर कलंक होता है, चन्द्रमा पर काले धब्बे के समान। भाव है की यह अपने वंश सुर्यवंश पर कलंक है. यह (लक्ष्मण जी ) अत्यंत ही निरंकुश (मनमानी करने वाला), मुर्ख और निडर है, शंका करने वाला नहीं है. यह बालक क्षण भर में काल का कलेवा (भोजन) बन जाएगा।
 
मैं पुकार कर कह रहा हूँ की बाद में मुझे यह मत कहना की मेरा दोष मेरा है. भाव है की यदि मैं इस (लक्ष्मण) बालक का वध कर दूँ तो बाद में मुझे यह मत कहना की मेरा इसमें कोई दोष है, अभी आप इसे समझा सकते हैं. यदि तुम इसे (मेरे द्वारा लक्ष्मण का वध किया जाना ) रोकना चाहते हो तो, मेरे गुस्से और प्रताप (वीरता ) के विषय में लक्ष्मन को बताओ, उसे ज्ञात करवाओ की मैं अत्यंत ही गुस्सैल और प्रतापी हूँ. इस पर लक्ष्मण जी कहते हैं की हे मुनि आपने अपने मुंह से अपनी खूब प्रशंसा की है।
 
यदि अभी भी संतोष ना हुआ हो तो और कुछ कहिए. अपने गुस्से को अपने मन में दबा कर अधिक दुःख मत सहिए. आप तो अत्यंत वीर हैं, वीरता को धारण करने वाले हैं. आप गुस्सा कैसे हो सकते हैं. आपको इस प्रकार से गाली देना शोभा नहीं देता है. शूरवीर तो युद्ध में वीरता का प्रदर्शन किया करते हैं, वे स्वंय अपनी प्रशंसा नहीं किया करते हैं. कायर जन ही युद्ध में शत्रु के सामने अपनी वीरता का गुणगान करते हैं. वे स्वंय के बारे में बखान नहीं करते हैं. गोस्वामी तुलसीदास जी ने यहाँ चौपाई (चौपाई छंद- चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है। ) का सुन्दर उपयोग किया है.

राम लक्ष्मण परशुराम संवाद पाठ रामचरितमानस के बाल कांड से लिया गया है.
काव्यांश में मंद बालक कौन है?
इस पद में तुलसीदास जी ने लक्ष्मण जी को मंद बालक (बुद्धिहीन बालक) कहा है.
कौशिक सुनहु मंद यहु बालक पंक्ति में कौशिक किसे कहा गया है
इस पंक्ति में कौशिक विश्वामित्र को कहा गया है.
रण में रिपु को पाकर अपनी वीरता का बखान कौन करता है?
कायर व्यक्ति ही युद्ध में अपने शत्रु के समक्ष अपनी वीरता का बखान करता है.
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद पाठ किस भाषा में लिखा गया है
राम लक्ष्मण परशुराम अवधि भाषा में लिखित है.
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद मे किन रसों का प्रयोग किया गया है
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद मे श्रृंगार, भक्ति रस, वीर रस और रौद्र रस का उपयोग हुआ है।
भक्ति रस की परिभाषा (Definition of Bhakti Ras in Hindi)
भक्ति रस (Bhakti Ras), जहाँ ईश्वर के प्रति प्रेम या अनुराग का वर्णन होता है वहाँ भक्ति रस होता है. भक्ति रस का स्थायी भाव देव रति है. जहाँ भगवद् अनुरक्ति और प्रेम का वर्णन होता है वहाँ भक्ति रस होता है
भक्ति रस का स्थायी भाव: देव रति/ अनुराग
भक्ति रस का संचारी भाव: भक्ति भावना
भक्ति रस का आलम्बन: ईश्वर, गुरु, साधू, सन्यासी, माता-पिता आदि
भक्ति रस का उद्दीपन: धर्म-स्थल, ईश्वर मूर्ति, प्रतिमा इत्यादि।
भक्ति रस का अनुभाव: शरणागत होना, समर्पित होना, शरीर को ढीला छोड़ देना इत्यादि क्रियाएं।
श्रृंगार रस (Shringar Ras) में नायक-नायिका के सौन्दर्य तथा प्रेम-संबंधों/क्रियाओं का वर्णन किया जाता है. श्रृंगार रस को रसराज या रसपति भी कहा जाता है. श्रृंगार रस का स्थायी भाव रति या प्रेम है. प्रेम का वर्णन “श्रृंगार रस” के अंतर्गत आता है.
श्रृंगार का स्थायी भाव: प्रेम
आलम्बन: नायक और नायिका
उद्दीपन: वसंत ऋतु, प्राकृतिक सौन्दर्य, चाँदनी रात, गीत-संगीत, वाटिका इत्यादि
अनुभाव: संयोग- मुख खिलना, मुस्कराना, एकटक देखना, हाव-भाव, मधुरालाप इत्यादि.
वियोग- रुदन, क्रंदन, विलाप, प्रलाप, निःश्वास इत्यादि.
श्रृंगार रस के प्रकार
श्रृंगार रस के दो प्रकार हैं:
संयोग श्रृंगार: जब नायक और नायिका साथ हों
वियोग या विप्रलम्भ श्रृंगार: जब नायक और नायिका एक दूसरे से दूर हों


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