जाका गुर भी अंधला चेला खरा निरंध हिंदी मीनिंग
जाका गुर भी अंधला, चेला खरा निरंध।
अंधा अंधा ठेलिया, दून्यूँ कूप पड़ंत॥
कबीर के दोहे के शब्दार्थ Word Meaning of Kabir Doha/Sakhi
जाका -जिसका/जिसके
अंधला-अँधा है (अज्ञानी है)
खरा निरंध : पूर्ण रूप से अँधा/द्रष्टिहीन.
ठेलिया- धकेलता है (राह दिखाता है )
दून्यूँ -दोनों.
कूप - कुए में.
पड़ंत- गिर पड़ते हैं.
अज्ञानी व्यक्तियों के सबंध में साहेब की वाणी है की जिनका गुरु अँधा होता है तो उसका शिष्य भी निपट ही अँधा (दृष्टिहीन ) होता है. अँधा गुरु अंधे शिष्य शिष्य को मार्ग दिखाता है और दोनों ही कुए में गिर पड़ते हैं .
दोहे का भाव है की गुरु के चयन के विशेष सावधानी की आवश्यकता होती है. यदि गुरु ही जड़ है, अज्ञानी है तो वह शिष्य को किस भाँती ज्ञान देगा. विचारणीय है की जिसका गुरु ही लोगों के अनुकरण में लगा है, जिसको यह समझ नहीं है की वह जांच परख करे की क्या सत्य है, वह शिष्य को क्या ज्ञान देगा. वह स्वंय ही भक्ति के नाम पर कर्मकांड, आडम्बर और अंधविश्वासों में उलझा रहता है. ऐसा मूढ़ व्यक्ति जो गुरु बन बैठा है वह शिष्य को उपयोगी ज्ञान नहीं दे सकता है. वह एक भाँती से अँधा है और अंधे की भाँती अपने शिष्य को अन्धकार में धकेलता है. कुए से आशय अज्ञान से है, माया जनित भ्रम से है. परम्पारगत मान्यताओं और रीती रिवाजों का पालन करना भी अज्ञान का सूचक है. ऐसे दोनों गुरु और शिष्य भव सागर में डूब जाते हैं. भाव है की गुरु का ज्ञानी होना अत्यंत ही आवश्यक है अन्यथा वह शिष्य को उचित मार्गदर्शन करवाने में असमर्थ रहता है और दोनों ही दुर्दशा के पात्र बनते हैं.
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