माया दीपक नर पतंग हिंदी मीनिंग
माया दीपक नर पतंग, भ्रमि भ्रमि इवै पड़ंत।
कहै कबीर गुर ग्यान थैं, एक आध उबरंत॥
Maaya Deepak Nar Patang, Bhrami Bhrami Iv Padant.
Kahai Kabeer Gur Gyaan Thaan, Ek Do Ubarant Gur

कबीर के दोहे के शब्दार्थ
माया दीपक -माया दीपक की भाँती है (स्वंय की और आकर्षित करती है)
नर पतंग- जीवात्मा (नर) पतंगे की भाँती है.
भ्रमि भ्रमि - भ्रम / छलावा.
इवै पड़ंत- इसमें गिरते हैं.
गुर ग्यान थैं-गुरु के ज्ञान से.
एक आध- कोई कोई ही/बिरला ही.
उबरंत-उबरना (उबरता है )
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग
कबीर साहेब ने इस दोहे में माया के भ्रम के विषय में बताया है. माया को दीपक के समान बताया गया है नर (जीवात्मा) पतंगे की भाँती से होती है जो माया रूपी दीपक की और आकर्षित इसमें गिर पड़ते हैं. माया के इस भ्रम से कोई बिरला ही बच पाता है।
गुरु के ज्ञान के उपरान्त ही कोई माया को समझ सकता है और इसके प्रभाव से मुक्त हो पाता है. माया हर जगह व्याप्त है, जैसे की कबीर साहेब कहते हैं है की -
माया महा ठगनी हम जानी,
तिरगुन फांस लिए कर डोले बोले मधुरे बानी,
केसव के कमला वे बैठी शिव के भवन भवानी,
पंडा के मूरत वे बैठीं तीरथ में भई पानी,
योगी के योगन वे बैठी राजा के घर रानी,
काहू के हीरा वे बैठी काहू के कौड़ी कानी,
भगतन की भगतिन वे बैठी ब्रह्मा के ब्रह्माणी,
कहे कबीर सुनो भई साधो यह सब अकथ कहानी।
स्पष्ट है की माया सर्वत्र विराजमान है. माया से मुक्त हो पाना कोई सरल कार्य नहीं है. माया को पहचान कर इससे मुक्त हो पाने का एकमात्र माध्यम गुरु का ज्ञान है. अन्यथा तो जैसे पतंगा दीपक की तरफ आकर्षित होकर उसी में गिरकर स्वंय को समाप्त कर लेता है उसी की भाँती नर भी उस की और आकर्षित होकर स्वंय को नष्ट कर लेता है.
Kabir Saheb has told about the confusion of Maya in this couplet. Maya is said to be like a lamp, the jeevaatma (living soul) is like a insect which attracts a lamp like Maya and falls into it. Only a few survive from this illusion of Maya.