ऎसी म्हारी प्रीत निभावज्यो लिरिक्स Aisi Mhari Preet Lyrics Meaning Hindi

ऎसी म्हारी प्रीत निभावज्यो लिरिक्स Aisi Mhari Preet Meaning, Kabir Bhajan by Prahlad Singh Tipaniya Ji Meaning  & Lyrics


Latest Bhajan Lyrics

प्रीत करे तो ऐसी कीजै, जैसे लोटा डोर,
गला फँसाये आपना, पानी पिए कोई और।
प्रीत करे तो ऐसी मत कीजे, जैसे झाड़ी बोर,
ऊपर लाली प्रेम की, अंतर् पड़ी कठोर।
प्रीत करे तो ऐसी कीजे, जैसे रुई कपास,
जीते जी तो तन को ढके, मरे तो मरघट जाय।

ऎसी म्हारी प्रीत निभावज्यो जी,
निर्धन का ओ राम,
ऐसी म्हारीं प्रीत निभावज्यो,
दुर्बल का हो राम,
भव सागर में भूलो मति।

तम तो झरखट हम बेलड़ी,
रवांगा तम से लिपटाय,
तम तो झरखट हम बेलड़ी,
रवांगा तम से लिपटाय,
तम तो ढल ढोले हम सुखी जावां,
म्हारा काई हो हवाल,
ऐसी म्हारीं प्रीत निभावज्यो,
दुर्बल का हो राम,
भव सागर में भूलो मति।

हां, तम तो बादल हम मोरिया,
रवांगा इन बण माय,
तम तो गरजो ने हम बोलिया,
म्हारा काई हो हवाल,
ऐसी म्हारीं प्रीत निभावज्यो,
दुर्बल का हो राम,
भव सागर में भूलो मति।

हां, तम तो समदर हम माछली,
रवांगा तमरो ही माय, हम मरी जावां,
तम तो सुखो ने हम मरी जांवा,
म्हारा काई हो हवाल,
ऐसी म्हारीं प्रीत निभावज्यो,
दुर्बल का हो राम,
भव सागर में भूलो मति।

हां, कहे हो कबीर धर्मदास से,
सुण लो चित्त मन लाय,
हां, कहे हो कबीर धर्मदास से,
सुण लो चित्त मन लाय,
गावे बजावे सुण सांभड़े,
हंसा सतलोक जावे,
ऐसी म्हारीं प्रीत निभावज्यो,

ऐसी म्हारी प्रीत निभाव जो हिंदी मीनिंग Esi Mhari Preet Neebhav jo Meaning Hindi : प्रह्लाद सिंह टिपानिया भजन हिंदी मीनिंग।

प्रीत करे तो ऐसी कीजै, जैसे लोटा डोर, गला फँसाये आपना, पानी पिए कोई और : प्रीत करो तो ऐसी करो जैसे पानी पीने के लोटे और डोरी की होती है। लौटा अपने गले में रस्सी को फंसा लेता है, यद्यपि उससे पानी कोई और ही पीता है। भाव है की लोटा और डोर एक दूसरे के लिए समर्पण कर देते हैं, ऐसा ही समपर्ण प्रेम में भी आवश्यक है।
प्रीत करे तो ऐसी मत कीजे, जैसे झाड़ी बोर,  ऊपर लाली प्रेम की, अंतर् पड़ी कठोर : ऐसा प्रेम नहीं करना चाहिए जैसे झाडी और बेर का होता है। झाडी का बेर ऊपर से लाल दिखाई देता है लेकिन अंदर से बहुत सख्त होता है।
प्रीत करे तो ऐसी कीजे, जैसे रुई कपास, जीते जी तो तन को ढके, मरे तो मरघट जाय : प्रेम करे तो ऐसा करना चाहिए जैसे कपास (वस्त्र) जीवन के रहते हुए वस्त्र के रूप में तन पर रहता है और तन के समाप्त हो जाने पर संग संग मरघट तक जाता है और तन के साथ ही समाप्त हो जाता है। 
ऎसी म्हारी प्रीत निभावज्यो जी, निर्धन का ओ राम : हे ईश्वर आपकी और मेरी ऐसी प्रीत हो, मेरे निर्धन के राम (ईश्वर).
भव सागर में भूलो मति- मुझे इस भव सागर में भूलो मत।
तम तो झरखट हम बेलड़ी, रवांगा तम से लिपटाय: आप तो वृक्ष हैं और मैं एक बेल हूँ। मैं तो आप से ही लिपट कर रहूंगी।
तम तो ढल ढोले हम सुखी जावां, म्हारा काई हो हवाल : यदि तुम ढलने लगो तो मैं सूख जाउंगी, ऐसे में मेरा कौन धणी है। भाव है की जैसे वृक्ष के सहारे बेल पनप जाती है। लेकिन वृक्ष के ना होने पर बेल का कौन रखवाला होगा।
हां, तम तो बादल हम मोरिया, रवांगा इन बण माय : आप बादल हो और हम मोर हैं। आप गरजो तो हम बोलेंगे।
तम तो गरजो ने हम बोलिया, म्हारा काई हो हवाल: आप गरजो तो हम बोलेंगे लेकिन आपके बिना मेरा कौन हवाल है।
हां, तम तो समदर हम माछली,  रवांगा तमरो ही माय, हम मरी जावां : आप समंदर हो तो जीवात्मा मछली है। मछली बन कर वह तो ईश्वर रूपी सागर के अंदर रहना चाहती है।
तम तो सुखो ने हम मरी जांवा : यदि आप ही सूख जाएंगे तो हम भी मर जाएंगे। भाव है की समुद्र में मछली रहती है। पानी के सूखने पर मछली मर जाती है।
हां, कहे हो कबीर धर्मदास से, सुण लो चित्त मन लाय : कबीर दास जी कहते हैं की धर्मदास जी सुनों, जो गाकर, बजाकर और सुनकर अपने चित्त में ईश्वर का ध्यान कर लेता है, ज्ञान को धारण कर लेता है, ऐसा हंसा, जीवात्मा अवश्य ही सतलोक को गमन करती है।  


ऐसी म्हारी प्रीत निभाव जो II Esi Mhari Preet Neebhav jo II Kabir Bhajan

ऎसी म्हारी प्रीत निभावज्यो लिरिक्स Aisi Mhari Preet Lyrics Meaning Hindi

यह भजन इस प्रकार से भी गाया जाता है, कुछ भिन्न प्रकार से लिरिक्स निम्न हैं।
प्रीत तो ऐसी कीजिये, ज्यूं लोटा ज्यूं डोर,
वी गला फँसावे आपणा, और पानी पिलावे और,
घायल की गति और है, और औरन की गति और,
जब प्रेम बाण ह्रदय लगा, तो रहा कबीरा ठोर,
प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरा, मोहे प्रेमी मिला न कोए,
प्रेमी से प्रेमी मिले, तो विष अमृत होए,
प्रेम छिपाया न छिपे, जा घट परकट होए,
अगर मुख से बोले नहीं, तो ये नैन देत हैं रोए।

ऐसी म्हारी प्रीत निभावजो,
हो निर्धन का हो राम,
राम जी,
तम तो बादल हम मोरीया,
रहांगा तमारा ही माए,
तम तो बरसो तो हम बोलीया,
अब म्हारा कईं हवाल,
ऐसी म्हारी प्रीत निभावजो।

राम राम,
तम तो सरोवर हम मछली,
रहांगा तमारा हो माए,
तम जद सूको तो हम मरी जावां,
अब म्हारा कईं हवाल,
ऐसी म्हारी प्रीत निभावजो।

 राम राम,
तम तो झरकट हम बेलड़ी,
रहांगा तम से लिपटाए,
तम जद सूको तो हम मरी जावां,
अब म्हारा कईं हवाल,
ऐसी म्हारी प्रीत निभावजो।

राम राम
कहे हो कबीर धर्मदास से,
सुण लीजो ध्यान धराए,
गावे बजावे सुणे सांभड़े,
हंसा सतलोक जाए,
ऐसी म्हारी प्रीत निभावजो। 

ऎसी म्हारी प्रीत निभावज्यो लिरिक्स Aisi Mhari Preet Lyrics Meaning Hindi

Preet To Aisi Keejiye, Jyun Lota Jyun Dor
Vi Gala Phansaave Aapna, Aur Paani Pilaave Aur
Ghaayal Ki Gati Aur Hai, Aur Auran Ki Gati Aur
Jab Prem Baan Hirday Laga, To Raha Kabira Thhor
Premi Dhhoondhhat Main Phira, Mohe Premi Mila Na Koye
Premi Se Premi Mile, To Vish Amrit Hoye
Prem Chhipaaya Na Chhipe, Ja Ghat Parkat Hoye
Agar Mukh Se Bole Nahin, To Ye Nain Det Hain Roye

Aisi Mhaari Preet Nibhaavjo
Ho Nirdhan (Durbal) Ka Ho Raam
Raam Ji

Tam To Baadal Ham Moriya
Rahaanga Tamaara Hi Maaye
Tam To Barso To Ham Boliya
Ab Mhaara Kai Havaal?
Aisi Mhaari Preet Nibhaavjo…
Raam Raam

Tam To Sarovar Ham Machhli
Rahaanga Tamaara Ho Maaye
Tam Jad Sooko To Ham Mari Jaavaan
Ab Mhaara Kai Havaal?
Aisi Mhaari Preet Nibhaavjo…
Raam Raam

Tam To Jharkat Ham Beladi
Rahaanga Tam Se Lipataaye
Tam Jad Sooko To Ham Mari Jaavaan
Ab Mhaara Kai Havaal?
Aisi Mhaari Preet Nibhaavjo…
Raam Raam

Kahe Ho Kabir Dharamdas Se
Sun Leejo Dhyaan Dharaaye
Gaave Bajaave Sune Saambhade
Hansa Satlok Jaaye
Aisi Mhaar Preet Nibhaavjo…
 इस दोहे में कबीर साहेब प्रेम की भावना को व्यक्त करते हैं। वे कहते हैं कि प्रेम ऐसी भावना होनी चाहिए जो निस्वार्थ हो। प्रेम में कोई स्वार्थ नहीं होना चाहिए। प्रेम में केवल एक ही भावना होती है, वह है दूसरों की भलाई की भावना।

प्रीत करे तो ऐसी कीजै, जैसे लोटा डोर, इस पंक्ति में कबीर साहेब कहते हैं कि प्रेम ऐसी भावना होनी चाहिए जो दूसरों को लाभ पहुँचाए। जैसे लोटा पानी पीने के लिए होता है, उसी प्रकार प्रेम दूसरों को लाभ पहुँचाने के लिए होना चाहिए।

गला फँसाये आपना, पानी पिए कोई और। इस पंक्ति में कबीर साहेब कहते हैं कि प्रेम में स्वार्थ नहीं होना चाहिए। प्रेम में केवल दूसरों की भलाई की भावना होनी चाहिए। अगर प्रेम में स्वार्थ होगा तो वह प्रेम नहीं है।

प्रीत करे तो ऐसी मत कीजे, जैसे झाड़ी बोर, इस पंक्ति में कबीर साहेब कहते हैं कि प्रेम में दिखावा नहीं होना चाहिए। प्रेम में केवल सच्चाई और ईमानदारी होनी चाहिए। अगर प्रेम में दिखावा होगा तो वह प्रेम नहीं है।

ऊपर लाली प्रेम की, अंतर् पड़ी कठोर। इस पंक्ति में कबीर साहेब कहते हैं कि प्रेम में केवल दिखावा नहीं होना चाहिए। प्रेम में सच्चाई और ईमानदारी भी होनी चाहिए। अगर प्रेम में केवल दिखावा होगा तो वह प्रेम नहीं है।

प्रीत करे तो ऐसी कीजे, जैसे रुई कपास, इस पंक्ति में कबीर साहेब कहते हैं कि प्रेम में त्याग होना चाहिए। प्रेम में केवल दूसरों की भलाई के लिए सोचना चाहिए। अगर प्रेम में त्याग नहीं होगा तो वह प्रेम नहीं है।

जीते जी तो तन को ढके, मरे तो मरघट जाय। इस पंक्ति में कबीर साहेब कहते हैं कि प्रेम में हमेशा दूसरों की भलाई के लिए सोचना चाहिए। चाहे वह जीवित हो या मृत।

ऐसी म्हारी प्रीत निभावज्यो जी, निर्धन का ओ राम, इस पंक्ति में कबीर साहेब कहते हैं कि प्रेम ऐसी होनी चाहिए जो निर्धनों और दुर्बलों की मदद करे।

ऐसी म्हारीं प्रीत निभावज्यो, दुर्बल का हो राम, भव सागर में भूलो मति। इस पंक्ति में कबीर साहेब कहते हैं कि प्रेम ऐसी होनी चाहिए जो लोगों को भव सागर से पार लगा दे।

तम तो झरखट हम बेलड़ी, रवांगा तम से लिपटाय, इस पंक्ति में कबीर साहेब कहते हैं कि प्रेम में एक दूसरे के साथ मजबूती से बंधे रहना चाहिए।

तम तो ढल ढोले हम सुखी जावां, म्हारा काई हो हवाल, इस पंक्ति में कबीर साहेब कहते हैं कि प्रेम में एक दूसरे के साथ सुख और दुःख में साथ रहना चाहिए।

ऐसी म्हारीं प्रीत निभावज्यो, दुर्बल का हो राम, भव सागर में भूलो मति। इस पंक्ति में कबीर साहेब कहते हैं कि प्रेम ऐसी होनी चाहिए जो लोगों को भव सागर से पार लगा दे।

कबीर साहेब की यह शिक्षा हमें यह बताती है कि प्रेम एक ऐसी भावना है जो दूसरों की भलाई के लिए होती है। प्रेम में स्वार्थ नहीं होना चाहिए। प्रेम में त्याग होना चाहिए। प्रेम में हमेशा दूसरों की भलाई के लिए सोचना चाहिए। प्रेम ऐसी होनी चाहिए जो लोगों को भव सागर से पार लगा दे।

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