अवधू सो जोगी गुर मेरा लिरिक्स Avadhu So Jogi Guru Mera Lyrics With Meaning

अवधू सो जोगी गुर मेरा लिरिक्स Avadhu So Jogi Guru Mera Lyrics with meaning Kabir Bhajan/कबीर भजन/कबीर उलटबासी


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अवधू सो जोगी गुरु मेरा, जौ या पद का करै नबेरा॥टेक॥
तरवर एक पेड़ बिन ठाढ़ा, बिन फूलाँ फल लागा।
साखा पत्रा कछू नहीं वाकै अष्ट गगन मुख बागा॥
पैर बिन निरति कराँ बिन बाजै, जिभ्या हीणाँ गावै।
गायणहारे के रूप न रेषा, सतगुर होई लखावै॥
पषी का षोज मीन का मारग, कहै कबीर बिचारी।
अपरंपार पार परसोतम, वा मूरति बलिहारी॥
राग रामकली Raag Ramkali

अवधू सो जोगी गुरु मेरा, जौ या पद का करै नबेरा॥
Avadhu so jogi guru mera jo ya pad ka karat navera.

Meaning in Hindi मीनिंग : अवधु (संत/साधू ) मेरा गुरु वही हो सकता है जो इस पद का निबेरा करे, पद का निराकरण करें, अर्थ लगा ले ।
Oh avadhu (saint) only that yogi can be my guru who can understand the meanings of these verses

तरवर एक पेड बिन ठाढ़ , बिन फूलाँ फल लागा।
tarvar ek peda bin thada bin phoola phal laga.

Meaning in Hindi मीनिंग :  एक बड़ा पेड़ बिना तने के खड़ा है। बगैर फूल के आये ही वह फल देता है। One big tree is standing without its trunk, without flowers it gives fruits

साखा पतर कछू नहीं वाकै अष् गगन मुख बागा॥
sakha patra kachhu nahi lage astagagan bhavana.

उस वृक्ष (जिसके कोई तना नहीं है और जो बग़ैर फूल के फ़ल देता है )  के कोई पत्ते नहीं हैं और वह गगन की आठों दिशाओं में फैला हुआ है। It doesn’t have stems and leaves;it is expanded in eight directions in sky

अवधू सो जोगी गुर मेरा, जौ या पद का करै नबेरा॥
Avadhu so jogi guru mera jo ya pad ka karat navera॥

अवधू (ग्यानी पुरुष ) मेरा गुरु वही हो सकता है जो मेरे इस पद का समाधान करें। Oh avadhu (saint) only that yogi can be my guru who can understand the meanings of these verses

पैर बिन निरति कराँ बिन बाजै, जिभ्य हीणाँ गावै।
par bin nirat kar bin vaad jihvaheen na gaave.

वह बिना पैर के नाचता है और हाथ के नहीं होने के बावजूद भी वह खेलता है और जिव्हा के बगैर वह गाता है। Without feet he is dancing, without hands he is playing, without tongue he sings

गायणहारे के रप न रेषा, सतगुर होई लखावे॥
ravan harak roop na resa satguru hoyi lakhave॥

जो गाता है, गायक है, उसका कोई रूप और आकार नहीं है। उसके आकार के सबंध में मात्र सतगुरु ही वर्णन कर सकते हैं। The singer doesn’t have any form or shape(matter), only sat guru can have these traits

अवधू सो जोगी गुर मेरा, जौ या पद का करै नबेरा॥
Avadhu so jogi guru mera jo ya pad ka karat navera,

Meaning in Hindi मीनिंग :  मेरा वही गुरु हो सकता है जो मेरे इस पद का निराकरण करें। Oh avadhu(saint) only that yogi can be my guru who can understand the meanings of these verses

पषी का षोज मीन का मारग, कहै कबीर बिचारी।
panchhi ka shor veen ka marag kahat piya vichare,

पंछी की खोज और मछली का मार्ग / राह के सबंध में कबीर साहेब कहते हैं, विचार पूर्वक वर्णन करते हैं। He is invisible like flight path of bird and track of fish in water, says Kabir understandingly

अपरंपार पार परसोतम, वा मूरति बलिहारी॥
aprampaar paar parsotam va murati ki balihari

वह सीमाओं से परे है उस पर मैं बलिहारी /समर्पित होता हूँ। He is boundless(infinite) supreme being, to that image(statue or deity or divine) I offer myself

अवधू सो जोगी गुर मेरा, जौ या पद का करै नबेरा॥
Avadhu so jogi guru mera jo ya pad ka karat navera.

Oh avadhu(saint) only that yogi can be my guru who can understand the meanings of these verses


Avadhu so Jogi guru mera - Madhup Mudgal - Kabir Bhajan

Avadhoo So Jogee Guru Mera, Jau Ya Pad Ka Karai Nabera.tek.
Taravar Ek Ped Bin Thaadha, Bin Phoolaan Phal Laaga.
Saakha Patra Kachhoo Nahin Vaakai Asht Gagan Mukh Baaga.
Pair Bin Nirati Karaan Bin Baajai, Jibhya Heenaan Gaavai.
Gaayanahaare Ke Roop Na Resha, Satagur Hoee Lakhaavai.
Pashee Ka Shoj Meen Ka Maarag, Kahai Kabeer Bichaaree.
Aparampaar Paar Parasotam, Va Moorati Balihaaree.

अवधू : अवधू शब्द से आशय संत/भक्तिमार्गी से लिया जाता है जिसका उपयोग साधना मार्ग के कई आचार्यों के द्वारा किया गया है। नाथ योगियों ने प्राय अवधू सम्बोधन द्वारा ही सिद्धांत निरूपण किया है। अवधूत से प्राय आशय है की जो सांसारिक मोह माया से मुक्त हो चूका हो।
उलटबासी : उलटबासी से आशय है ऐसी बानी / पद जिसका अर्थ सीधा ना हो और सन्देश को घुमा फिरा कर प्रकट किया जाय।
कबीर साहेब की वाणी में कुछ उलटबासियाँ :
मँड़ये के चारन समधी दीन्हा, पुत्र व्यहिल माता॥
दुलहिन लीप चौक बैठारी। निर्भय पद परकासा॥
भाते उलटि बरातिहिं खायो, भली बनी कुशलाता।
पाणिग्रहण भयो भौ मुँडन, सुषमनि सुरति समानी,
कहहिं कबीर सुनो हो सन्तो, बूझो पण्डित ज्ञानी॥

देखि-देखि जिय अचरज होई यह पद बूझें बिरला कोई॥
धरती उलटि अकासै जाय, चिउंटी के मुख हस्ति समाय।
बिना पवन सो पर्वत उड़े, जीव जन्तु सब वृक्षा चढ़े।
सूखे सरवर उठे हिलोरा, बिनु जल चकवा करत किलोरा।
बैठा पण्डित पढ़े कुरान, बिन देखे का करत बखान।
कहहि कबीर यह पद को जान, सोई सन्त सदा परबान॥

देखि-देखि जिय अचरज होई
यह पद बूझें बिरला कोई
धरती उलटि अकासै जाय,
चिउंटी के मुख हस्ति समाय
बिना पवन सो पर्वत उड़े,
जीव जन्तु सब वृक्षा चढ़े
सूखे-सरवर उठे हिलोरा,
बिनु-जल चकवा करत किलोरा।
 
नदिया जल कोयला भई, समुन्दर लागी आग।
मच्छी बिरछा चढ़ि गई, उठ कबीरा जाग॥
तिल समान तो गाय है,बछड़ा नौ-नौ हाथ।
मटकी भरि-भरि दुहि लिया,पूँछ अठारह हाथ॥

ऐसा अद्भुत मेरा गुरु कथ्या, मैं रह्या उभेषै।
मूसा हस्ती सों लड़ै, कोई विरला पेपै ॥
मूसा बैठा बांबि मैं, लारै सापणि धाई।
उलटि मूसै सापिण गिली,यहु अचरन भाई ।।
चींटी परबत ऊपण्यां,ले राख्यो चौड़े।
मूर्गा मिनकी सूं लड़े, झल पाणी दौडै ॥
सुरहीं चूपै बछतलि, बछा दूध उतारै ।
ऐसा नवल गुणी भया,सारदूलहि मारै ।।
भील लुक्या बन बीझ मैं,ससा सर मारै ।
कहै कबीर ताहि गुर.करौं,जो या पदहि बिचारै ॥
अवधू जागत नींद न कीजै।
काल न खाइ कलप नहीं ब्यापै देही जुरा न छीजै॥टेक॥
उलटी गंग समुद्रहि सोखै ससिहर सूर गरासै।
नव ग्रिह मारि रोगिया बैठे, जल में ब्यंब प्रकासै॥
डाल गह्या थैं मूल न सूझै मूल गह्याँ फल पावा।
बंबई उलटि शरप कौं लागी, धरणि महा रस खावा॥
बैठ गुफा मैं सब जग देख्या, बाहरि कछू न सूझै।
उलटैं धनकि पारधी मार्यौ यहु अचिरज कोई बूझै॥
औंधा घड़ा न जल में डूबे, सूधा सूभर भरिया।
जाकौं यहु जुग घिण करि चालैं, ता पसादि निस्तरिया॥
अंबर बरसै धरती भीजै, बूझै जाँणौं सब कोई।
धरती बरसै अंबर भीजै, बूझै बिरला कोई॥
गाँवणहारा कदे न गावै, अणबोल्या नित गावै।
नटवर पेषि पेषनाँ पेषै, अनहद बेन बजावै॥
कहणीं रहणीं निज तत जाँणैं यहु सब अकथ कहाणीं।
धरती उलटि अकासहिं ग्रसै, यहु पुरिसाँ की बाँणी॥
बाझ पिय लैं अमृत सोख्या, नदी नीर भरि राष्या।
कहै कबीर ते बिरला जोगी, धरणि महारस चाष्या॥
(राग रामकली)
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