हौं बिरहा की लाकड़ी मीनिंग कबीर के दोहे

हौं बिरहा की लाकड़ी मीनिंग Ho Biraha Ki Laakadi Meaning, Kabir Ke Dohe Hindi Meaning. Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit

हौं बिरहा की लाकड़ी, समझि समझि धूंधाउँ।
छूटि पड़ौं यों बिरह तें, जे सारीही जलि जाउँ॥

Ho Biraha Ki Lakadi, Samajhi Samajhi Dhundhai,
Chhuti Pado Yo Birah Te, Je Sarihi Jali Jaau.
 
हौं बिरहा की लाकड़ी, समझि समझि धूंधाउँ। छूटि पड़ौं यों बिरह तें, जे सारीही जलि जाउँ॥

कबीर दोहा हिंदी शब्दार्थ Kabir Doha Word Meaning

हौं बिरहा-जैसे बिरहा (विरह)
लाकड़ी-लकड़ी (जैसे बिरह रूपी लकड़ी)
समझि समझि-धीरे धीरे.
धूंधाउँ-धीरे धीरे करके धुआ करके जलना.
छूटि पड़ौं-छूट पड़ना, मुक्त होना.
यों-इस.
बिरह-विरह.
तें-से.
जे-जो.
सारीही-सम्पूर्ण.
जलि जाउँ-जल जाऊं.

कबीर दोहा हिंदी मीनिंग Kabir Doha Hindi Meaning

कबीर साहेब इस दोहे में विरह का वर्णन करते हुए वाणी देते हैं की जीवात्मा विरह में ऐसे जल रही है जैसे गीली लकड़ी धुआ देकर सुलगती रहती है. ऐसी लकड़ी एक साथ नहीं जलती है. जीवात्मा इस विरह से छूट जाए जो एक साथ ही जल जाए. इस साखी का भाव है की जैसे गीली लकड़ी एक साथ नहीं जलती है और लम्बे समय तक धुआ
देकर सुलगती रहती है, ऐसे ही विरह में जीवात्मा अंदर ही अंदर विरह की अग्नि में दग्ध होती रहती है. 
ऐसे में जीवात्मा पूर्ण परमात्मा से मिलने के लिए व्याकुल है और कहती है की क्यों नहीं वह एक साथ ही जल जाए, जिससे नित विरह की अग्नि से उसे मुक्ति मिले.

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