
भोले तेरी भक्ति का अपना ही
शनिवार का दिन विशेष रूप से भगवान शनिदेव को समर्पित होता है, जिन्हें न्याय और कर्मफल के देवता माना जाता है। यदि किसी की कुंडली में शनि का प्रभाव विपरीत हो, तो जीवन में कई कठिनाइयां आ सकती हैं। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए, सावन और शनिवार का समय अत्यधिक शुभ माना जाता है। इन दिनों में शनि मंत्रों का जाप करने से जीवन में सुख, शांति, समृद्धि, और खुशहाली आती है।
"ऊँ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम। उर्वारुक मिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात।।"
"ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शंयोरभिश्रवन्तु नः। ऊँ शं शनैश्चराय नमः।।"
"ऊँ ह्रिं नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। छाया मार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।"
"ॐ निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम।।"
"ऊँ शन्नोदेवीर-भिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तुनः।।"
"ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्।।"
"ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।।"
"ॐ शं शनैश्चराय नमः।।"
मंत्र जाप विधि:
शनिवार के दिन, प्रातःकाल स्नान करके साफ कपड़े पहनें। पूजा स्थल की सफाई करें और शनिदेव की मूर्ति या तस्वीर पर नीले फूल चढ़ाएं। कुश के आसन पर बैठकर रुद्राक्ष की माला से किसी एक मंत्र का पाँच माला जाप करें। इस विधि से शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन की सभी समस्याओं का निवारण होता है।
ॐ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥
अर्थ: जो नीलमणि के समान दिखाई देते हैं, सूर्य के पुत्र और यमराज के अग्रज हैं। जो छाया और सूर्य के संयोग से उत्पन्न हुए हैं, उन शनैश्चर (शनि देव) को मैं प्रणाम करता हूँ। यह श्लोक शनि देव की स्तुति के लिए सर्वश्रेष्ठ है, जिससे उनके शुभ आशीर्वाद प्राप्त होते हैं और जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है।
शनिदेव मूल मंत्र
ॐ शं शनैश्चराय नमः॥
मंत्र का अर्थ: हे सर्व कर्मों के फल देने वाले शनिदेव, हमारे पापों का नाश करें और शुभ फल प्रदान करें। हम आपको नमन करते हैं।
लाभ:
2. श्री शनिदेव ग्रह शांति मंत्र
ॐ नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्ड सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥
3. शनिदेव गायत्री मंत्र
ॐ काकध्वजाय विद्महे,
खड्गहस्ताय धीमहि।
तन्नो मन्दः प्रचोदयात्॥
मंत्र का अर्थ: जिनका वाहन कौआ है, जो हाथ में खड्ग धारण करते हैं, मैं ऐसे शनिदेव का ध्यान करता हूं। मंद गति से चलते हुए वे हमें अपनी शरण प्रदान करें।
लाभ:
नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम का अर्थ
ॐ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम् ||
शनि मंत्र हिंदी मीनिंग नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम का अर्थ : मैं श्री शनि देव को नमन करता हूँ। मैं भगवान शनि देव को नमन करता हूं, जो एक नीले पर्वत के रूप में चमक रहे हैं। श्री शनि देव काले रंग के हैं। सूर्य देव मार्तण्ड (सूर्य देव का दूसरा नाम) के पुत्र हैं। श्री शनि देव छाया (माता ) से पैदा हुए हैं। श्री शनि देव यम देव के भाई हैं, जो बहुत ही धीरे धीरे चलते हैं।
Om Nilanjana Samabhasam Ravi Putram Yamagrajam,
Chhaya Martanda Samhubhutam Tama Namami Shanescharam
Om Neelanjansamabhas Raviputram Ymagrajam,
Chhayamartandsamputam Tan Namaani Shaneshram
Shani Mantra Meaning in English : I bow down to Lord Shani Dev who is bright shine as that of a blue mountain. He is the son of Lord Surya (Lord Sun) and the brother of Yama (God of Kaal/Death). He is born to Chahya and Martanda (Lord Sun).
श्री शनि देव : श्री शनि देव न्याय और कर्म का फल देने वाले देवता हैं जो सूर्य और छायां के पुत्र हैं। शनि देव ही एकमात्र देव हैं जो मोक्ष प्रदान करते हैं। शिव जी से शनि देव को वरदान प्राप्त था की वे बहुत शक्तिशाली होंगे और मानवों के साथ देव भी उनसे भयभीत रहेंगे।
शनि बीज मन्त्र –
ॐ प्राँ प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः ॥
"ॐ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम" शनि देव मन्त्र के लाभ /फायदे Benefits of Shani Mantra Hindi
शनि देव के इस मन्त्र के जाप से साढ़े सती का दोष दूर होता है। साढ़े साती से ग्रसित व्यक्तिको शनि महामंत्र का 23000 बार जाप करने से लाभ प्राप्त होता है। इस शनि महामंत्र का जाप २३ दिवस के भीतर ही समाप्त कर देना चाहिए।
शनि देव मन्त्र :
अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर।।
गतं पापं गतं दु:खं गतं दारिद्रय मेव च।
आगता: सुख-संपत्ति पुण्योऽहं तव दर्शनात्।।
शनि देव जी का तांत्रिक मंत्र - ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः।
शनि देव महाराज के वैदिक मंत्र - ऊँ शन्नो देवीरभिष्टडआपो भवन्तुपीतये।
शनि देव का एकाक्षरी मंत्र - ऊँ शं शनैश्चाराय नमः।
शनि देव जी का गायत्री मंत्र - ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्।
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Author - Saroj Jangir
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