सिरसाटें हरि सेविये छांड़ि जीव की बाणि मीनिंग
सिरसाटें हरि सेविये छांड़ि जीव की बाणि Sirsate Hari Seviye Meaning Kabir Ke Dohe
सिरसाटें हरि सेविये, छांड़ि जीव की बाणि।Sirsate Hari Seviye, Chhadi Jeev Ki Bani,
Je Sir Diya Hari Mile, Tab Lagi Hani Na Jani.
कबीर साहेब के इस दोहे का भावार्थ है की हरी की सेवा सर्वोच्च है उसके लिए यदि अपने सर का बलिदान देना भी पड़े तो दे देना चाहिए। यदि सर का बलिदान करके इश्वर की प्राप्ति होती हो तो अवश्य ही हरी के नाम का सुमिरन करना चाहिए। सर देने से अभिप्राय है की अपने अहम् का त्याग करना।
कबीर साहेब अपने इस दोहे द्वारा भक्त को पूर्ण समर्पण और अहंकार-त्याग का सर्वोच्च मार्ग दिखाते हैं। वे कहते हैं कि सिर कटाकर ('सिरसाटें') भी हरि (ईश्वर) की सेवा करनी चाहिए और अपनी सांसारिक, तुच्छ 'जीव की बाणि' (आदतों, इच्छाओं और जीवभाव के अहंकार) का परित्याग कर देना चाहिए। इसका तात्पर्य यह है कि ईश्वर की भक्ति में व्यक्ति को किसी भी प्रकार की कीमत चुकाने से नहीं हिचकना चाहिए। दोहे का निचोड़ यह है कि यदि 'सिर देने' (अर्थात अपने अहंकार, स्वार्थ और देहाभिमान का संपूर्ण बलिदान करने) से हरि की प्राप्ति हो जाए, तो इस बलिदान को किसी भी प्रकार की हानि (नुकसान) नहीं मानना चाहिए, बल्कि यह सौदा अत्यंत लाभकारी है। इस प्रकार, कबीर साहेब का यह दोहा समझाता है कि ईश्वर की सच्ची सेवा और प्राप्ति केवल आत्म-बलिदान (अहंकार-त्याग) से ही संभव है, और इस महान लक्ष्य के सामने जीवन की किसी भी क्षति का कोई मूल्य नहीं है।
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |
