सती पति संग नीसरी है, अपने पिया के गैल, सुरत लगी अपने साहिब से, अग्नि काया बिच मेल, अलबेला को खेल, फ़कीरी,
अलल पंछी ज्यूँ उलटा चाले, बाँस भरत नट खेल,
Kabir Bhajan Lyrics in Hindi,Prakash Gandhi Bhajan Lyrics
मेरु इक्कीस छेद गढ़ बंका, चढ़गी अगम के महल, अलबेला को खेल, फ़कीरी,
दो और एक रवे नहीं दूजा, आप आप को खेल, कहे सामर्थ कोई असल पिछाणै, लेवै गरीबी झेल, अलबेला को खेल, फ़कीरी,
फकीरी अलबेला को खेल मीनिंग
इस भजन में फकीरी को, भक्ति को अलबेला रो खेल कहा गया है। यह हर किसी के बस की बात नहीं है क्योंकि यह सांसारिक नियम कायदों से विमुख होकर चलती है। इसे कायर झेल/सहन नहीं कर सकता है। आत्मिक रूप से सुदृढ़ व्यक्ति ही इसे झेल सकने में समर्थ होता है। उदाहरण के स्वरुप जैसे रण में तीर, भालों की नोंक आपस में एक दूसरे के समक्ष होती हैं, जरा सी चूक जानलेवा होती है ऐसे ही भक्ति भी कोई आसान कार्य नहीं होता है। इन्हे तो सन्मुख होकर झेल सकने वाला व्यक्ति ही कर सकता है। ऐसे ही अपने पति की मृत्यु के उपरान्त सती घर से बाहर निकलती है। उसे अपने साहिब से सुरति लग जाती है और अग्नि और काया के मध्य मेल हो जाता है। वह अग्नि से विचलित नहीं होती है। ऐसी ही तप और साधना भक्ति में भी आवश्यक होती है जिसे कोई बिरला ही बिरला ही प्राप्त कर पाता है।
Kaayar Sake Na Jhel Phakeeree, Kaayar Sake Na Jhel, Fakeeree, Alabela Ko Khel, Fakeeree, Phakeeree Alabela Ko Khel. Alabela Ko Khel, Fakeeree, Kaayar Sake Na Jhel Phakeeree.