बिना शीश की पणिहारी लिरिक्स Bina Shish Ki Panihaari Bhajan Lyrics Kabir Bhajan

बिना शीश की पणिहारी लिरिक्स Bina Shish Ki Panihaari Bhajan Lyrics Kabir Bhajan, Kabir Bhajan By Prahlaad Singh Tipaniya ji.

खेल ब्रह्माण्ड का पिंड में देखिया, जगत की भरमना दूर भागी,
बाहर भीतर एक आकाशवत सुषुम्ना, डोरी तहँ उलटी लागि।
पवन को पलट कर सुन्न में घर किया, धरिया में अधर भरपूर देखा,
कहे कबीर गुरु पूर की, मेहर सों त्रिकुटी मद्ध दीदार देखा,
धरती तो रोटी भई, और कागा लिए ही जाए,
पूछो अपने गुरु से वो कहां बैठकर खाए।
नाद नहीं था, बिन्द नहीं थी करम नहीं थी काया,
अलख पुरुष को जिव्हा नहीं थी तो शब्द कहा से आया,
शबद हमारा आदि का, पल पल करूँ याद,
अंत फलेगी माहली, ऊपर की सब बाद।
सोधु शबद में कनियारी भई,
ढूँढूँ शबद में कनियारी,
बिना डोर जल भरे कुए से,
बिना शीश की वा पणिहारी,
सोधू शबद में कणिहारी भई।

भव बिन खेत, कुआ बिन बाड़ी,
जल बिन रहट चले भारी,
बिना बीज़ एक बाड़ी रे बोई,
बिन पात के बेल चली,
बिना मुँह का मिरगला उन,
बाड़ी को खाता घडी घड़ी,
बिना चोँच का चिरकला उन,
बाड़ी को चुगता घड़ी घड़ी,
सोधू शबद में कणिहारी भई।

ले धनुष वो चला शिकारी,
नहीं धनुष पर चाप चढ़ी,
मिरग मार भूमि पर राखिया,
नहीं मिरग को चोट लगी,
मुआ मिरग का माँस लाया,
कुण नर की देखो बलिहारी,
सोधू शबद में कणिहारी भई।

धड़ बिन शीश, शीश बिन गगरी,
वा भर पानी चली पनिहारी,
करूँ विनती उतारो गागरी,
जेठ जेठाणी मुस्कानी,
सोधू शबद में कणिहारी भई।

बिन अग्नि रसोई पकाई,
वा सास नणद के बहु प्यारी,
देखत भूख भगी है बालम की,
चतुर नार की वा चतुराई,
सोधू शबद में कणिहारी भई।

कहे कबीर सुणो भाई साधो,
ये बात है निर्बाणि,
इना भजन की करे खोजना,
उसे समझना ब्रह्मज्ञानी,
सोधू शबद में कणिहारी भई। 

बिना शीश की पणिहारी || Bina Shish Ki Panihaari

Main Vocal : Padmashri Prahlad Singh Tipanya Chorus : Ashok Tipaniya and Vijay Tipaniya Violin : Devnarayan Saroliya Dholak : Ajay Tipaniya Harmonium : Dharmandra Tipaniya Video : Mayank Tipaniya, Pritam Tipaniya Sound & Video Mixing : Peter Jamra
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2 टिप्पणियां

  1. :
  2. इस भजन का भावार्थ बताएँ।