हेरत हेरत हे सखी मीनिंग
हेरत हेरत हे सखी, रह्या कबीर हिराइ।
बूँद समानी समंद मैं, सो कत हेरी जाइ॥
Herat Herat He Sakhi, Rahaya Kabir Hiraayi,
Bund Samaani Samand Me, So Kat Heri Jaai.हेरत हेरत : देखते देखते, खोजते खोजते.
हे सखी : आत्मा रूपी सखी.
रह्या हिराइ : स्वंय ही खो गए हैं.
बूँद समानी समंद मैं, सो कत हेरी जाइ : एक बूंद समुद्र में समा गई है, अब उसे कैसे ढूंढा जाए.
सो कत : वह कैसे.
हेरी जाई- खोजी जाए.
आत्मा का संवाद है की मालिक को खोजते खोजते मैं स्वंय ही खो गई हूँ, गुम हो गई हूँ. जैसे कोई एक बूंद समुद्र में जाकर मिल गई है तो उसे कैसे खोजा जा सकता है. भाव है की इश्वर को प्राप्त करना, खोजना कोई आसान कार्य नहीं है जैसे समुद्र में से एक बूंद को खोजना संभव नहीं है.
इस साखी का मूल भाव है की जीवात्मा पूर्ण परमात्मा का एक अंश है जैसे एक बूंद समुद्र का ही एक अंश है. जीवात्मा पूर्ण परमात्मा में जाकर मिल चुकी है, अब ऐसे में उसकी स्वतंत्र पहचान समाप्त हो गई है. उसे पुनः खोज पाना संभव नहीं है. अहम के समाप्त हो जाने पर जीवात्मा पूर्ण परमात्मा का ही भाग बन जाती है.