सरस किशोरी, वयस की थोरी, रति रस भोरी, कीजै कृपा की कोर। श्री राधे, कीजै कृपा की कोर। सरस किशोरी, वयस की थोरी, रति रस भोरी, कीजै कृपा की कोर। श्री राधे, कीजै कृपा की कोर।
(सरस : रसीला, रसयुक्त। किशोरी-दस से पंद्रह वर्ष के बीच की उम्रवाली बालिका, सुन्दर लड़की। वयस : उम्र, थोरी -उम्र में थोड़ा होना। रति रस : श्रृंगार रस का स्थाई भाव रति होता है तथा श्रृंगार रस में नायक और नायिका के मन में कल्पना के रूप में रति रस कि अवस्था में पहुँच जाता है तो वह श्रंगार रस कहलाता है| इसके अंतर्गत सौन्दर्य, प्रकृति, सुन्दर वन, वसंत ऋतु, पक्षियों का चहचहाना आदि क्रियाएं आती हैं। कोर-कुछ भाग। )
साधन हीन, दीन मैं राधे, तुम करुणामयी प्रेम अगाधे, काके द्वारे, जाय पुकारे, कौन निहारे, दीन दुःखी की ओर,
सरस किशोरी, वयस की थोरी, रति रस भोरी, कीजै कृपा की कोर। श्री राधे, कीजै कृपा की कोर।
(दीन :दयनीय दशावाला व्यक्ति, ग़रीब, दरिद्र और असहाय व्यक्ति दीन कहलाता है। , करुणामयी : करुणा करने वाली, दया दिखाने वाली। काके-किसके )
करत अघन नहीं नेक उघाऊँ, भजन करन में ना मन को लगाऊँ, करी बरजोरी, लखि निज ओरी, तुम बिनु मोरी, कौन सुधारे दोर। सरस किशोरी, वयस की थोरी, रति रस भोरी, कीजै कृपा की कोर।
श्री राधे, कीजै कृपा की कोर।
(अघन -तो नरम हो, जो घन अर्थात ठोस न हो, नेकु-थोड़ा सा भी, उघाऊँ -स्थिर। बरजोरी-जबरदस्ती, लखि- ध्यान देना। ओरी- की तरफ )
Krishna Bhajan Lyrics Hindi
भलो बुरो सो हूँ तिहारो, तुम बिनु कोउ न हितु हमारो, भानुदुलारी, सुधि लो हमारी, शरण तिहारी, हौं पतितन सिरमोर। सरस किशोरी, वयस की थोरी, रति रस भोरी, कीजै कृपा की कोर। श्री राधे, कीजै कृपा की कोर।
( तिहारो -आपका, हितु-हित चाहने वाला, भलाई चाहने वाला, भानुदुलारी- भानु जी की प्यारी, सुधि-सुध लेना, ध्यान देना। पतितन सिरमोर-बहुत बड़ा पापी। )
गोपी प्रेम की भिक्षा दीजै, कैसेहुँ मोहिं अपनी करी लीजै, तव गुण गावत, दिवस बितावत, हृदय भर आवत, बहवे प्रेम विभोर, सरस किशोरी, वयस की थोरी, रति रस भोरी, कीजै कृपा की कोर। श्री राधे, कीजै कृपा की कोर।
(कैसेहुँ-कैसे भी, मोहिं-मुझे, करी लीजे-मुझे अपना बना लीजिये।
पाय तिहारो प्रेम किशोरी, छके प्रेमरस ब्रज की खोरी, गति गजगामिनि, छवि अभिरामिनी, लखि निज स्वामिनी, बने कृपालु चकोर॥ सरस किशोरी, वयस की थोरी, रति रस भोरी, कीजै कृपा की कोर। श्री राधे, कीजै कृपा की कोर। पाठान्तर सरस किशोरी, वयस कि थोरी, रति सर बोरी, कीजै कृपा की कोर।
साधन हीन, दीन मैं राधे, तुम करुणामई प्रेम-अगाधे, काके द्वारे, जाय पुकारे, कौन निहारे, दीन दुखी की ओर।
उपरोक्त भजन में राधा रानी की सुंदरता और उनके प्रेम की प्रशंसा की गई है। भजन के पहले भाग में, भक्त राधा रानी की सुंदरता की तुलना मीठे रस से भरी हुई फूलों की माला से करते हैं। वे कहते हैं कि राधा रानी की चरणों की धूल भी अत्यंत मीठी है। भजन के दूसरे भाग में, भक्त राधा रानी के प्रेम की प्रशंसा करते हैं। वे कहते हैं कि सारी दुनिया राधा रानी की दीवानी है। वे राधा रानी से प्रार्थना करते हैं कि वे वृंदावन में श्याम के साथ आकर रहें।