शिव शब्द का अर्थ क्या है शिव हिंदी मीनिंग Shiv Naam Ka Arth Me
पूर्ण परम ज्ञान से स्वयंभू, जगत कल्याणकारी और शुभ शक्ति को ही शिव कहते हैं। शिव का अर्थ है अत्यंत ही कल्याणकारी और मांगलिक। शिव सर्वत्र व्याप्त होकर भी शून्य हैं। सिद्ध है की शून्य से ही जीवन का विकास हुआ है।
शिव शब्द में "शि" का अर्थ कल्याणकारी शक्ति है। आप शिव को एक सृजन ऊर्जा कह सकते हैं। "व" से आशय वाम से है जिसका अर्थ प्रवीणता से लिया जाता है।
शाब्दिक रूप से शिव का अर्थ समझें तो शिव से आशय "शुभ, पावन स्वाभिमानिक, अनुग्रहशील, सौम्य, दयालु, उदार, मैत्रीपूर्ण" और कल्याणकारी होता है।
शिव नामावली का आप गौर से अध्ययन करेंगे तो पाएंगे की शिव के नाम कल्याणकारी हैं और साथ ही समस्त नाम मोक्ष प्रदान करने वाले भी हैं।
सर्वाणिशिवनामानि मोक्षदान्येव सर्वदा।
तेष्वप्युत्तमं नाम शिवेति ब्रह्रासंज्ञितम्।।
शिवेति नाम विमलं येनोच्चारितमादरात्।
तेन भूयो न संसारसागर: समवाप्यते।।
तेष्वप्युत्तमं नाम शिवेति ब्रह्रासंज्ञितम्।।
शिवेति नाम विमलं येनोच्चारितमादरात्।
तेन भूयो न संसारसागर: समवाप्यते।।
संसार का जन्म और अंत शिव से ही है। शिव सृजन करते हैं तो संहार भी करते हैं। शिव के नाम को आप यूँ समझिये की जो समस्त अच्छाइयों और बुराइयों, गुणों और अवगुणों, सुन्दर और कुरूपता से परे जो है वह शिव है। सरल शब्दों में शिव कल्याणकारी और शुभ शक्ति है। ब्रह्माण्ड अनंत है इसका कोई आदि और अंत नहीं है। यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड शिव में व्याप्त है। श्रष्टि की शुरुआत से पहले और श्रष्टि के अंत के बाद भी शिव ही हैं।
महाकाल से आशय भी समय / काल से है। जो काल से परे हैं, काल से भी श्रेष्ठ है। अतः शिव किसी काल के अधीन नहीं हैं।
शम्भू : शिव स्वयंभू हैं। अर्थ है की वे काल से परे और जनम मरण के फेर से मुक्त हैं। वे ना तो जनम लेते हैं और नाहीं मरते हैं। शभु से आशय है की शिव भोग के समय विषय का रूप बना लेते हैं और मोक्ष हेतु एकाग्र वृति बन जाते हैं और इसीलिए इनको शम्भू भी कहा जाता है।
शं भवयसि च भवसे शं च भवसि चेति वा देव।
त्वं देवदारुविपिने लिग्ङे प्रथितोस्यत: शम्भु:।।
शं भवयसि च भवसे शं च भवसि चेति वा देव।
त्वं देवदारुविपिने लिग्ङे प्रथितोस्यत: शम्भु:।।
शिव सुख स्वरुप के साथ ही मोक्ष प्रदान करने वाले भी हैं। शिव पावन हैं और रूद्र भी। यही शिव की विशेषता है।
शिव मूल मंत्र
ॐ नमः शिवाय
महामृत्युंजय मंत्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनानत् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
रुद्र गायत्री मंत्र
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
ॐ नमः शिवाय
महामृत्युंजय मंत्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनानत् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
रुद्र गायत्री मंत्र
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
श्रावण मास विशेष : 10 शिव मंत्र Shiv Mantra
1. ॐ जुं स:।2. ॐ हौं जूं स:।
3. ॐ त्र्यंम्बकम् यजामहे, सुगन्धिपुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्, मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।'
4. 'ॐ ऐं नम: शिवाय।
5. 'ॐ ह्रीं नम: शिवाय।'
6. 'ऐं ह्रीं श्रीं 'ॐ नम: शिवाय' : श्रीं ह्रीं ऐं
7. चंद्र बीज मंत्र- 'ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चंद्रमसे नम:', चंद्र मूल मंत्र 'ॐ चं चंद्रमसे नम:'।
8. शिव गायत्री मंत्र- ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो रूद्र प्रचोदयात्।।
9. ॐ नमः शिवाय
10. ॐ ऐं ह्रीं शिव गौरीमय ह्रीं ऐं ऊं।
3. ॐ त्र्यंम्बकम् यजामहे, सुगन्धिपुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्, मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।'
4. 'ॐ ऐं नम: शिवाय।
5. 'ॐ ह्रीं नम: शिवाय।'
6. 'ऐं ह्रीं श्रीं 'ॐ नम: शिवाय' : श्रीं ह्रीं ऐं
7. चंद्र बीज मंत्र- 'ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चंद्रमसे नम:', चंद्र मूल मंत्र 'ॐ चं चंद्रमसे नम:'।
8. शिव गायत्री मंत्र- ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो रूद्र प्रचोदयात्।।
9. ॐ नमः शिवाय
10. ॐ ऐं ह्रीं शिव गौरीमय ह्रीं ऐं ऊं।
शिव के नंदी गण
शिव की अष्टमूर्ति
- नंदी
- भृंगी
- रिटी
- टुंडी
- श्रृंगी
- नन्दिकेश्वर
- बेताल
- पिशाच
- तोतला
- भूतनाथ
शिव की अष्टमूर्ति
- पृथ्वीमूर्ति - शर्व
- जलमूर्ति - भव
- तेजमूर्ति - रूद्र
- वायुमूर्ति - उग्र
- आकाशमूर्ति - भीम
- अग्निमूर्ति - पशुपति
- सूर्यमूर्ति - ईशान
- चन्द्रमूर्ति - महादेव
भगवान शिव के द्वादस ज्योतिर्लिङ्ग Lord Shiva Jyotirlinga
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम्॥
परल्यां वैद्यनाथम् च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥
एतेषां दर्शनादेव पातकं नैव तिष्ठति।
कर्मक्षयो भवेत्तस्य यस्य तुष्टो महेश्वराः॥
उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम्॥
परल्यां वैद्यनाथम् च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥
एतेषां दर्शनादेव पातकं नैव तिष्ठति।
कर्मक्षयो भवेत्तस्य यस्य तुष्टो महेश्वराः॥
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Author - Saroj Jangir
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