भगवान शिव के १०८ नाम हिंदी में Bhagwan Shiv Ke 108 Naam With Hindi Arth Sahit
जय शिव शंकर। भगवान शिव त्रिदेवों में से एक महादेव और देवो के देव हैं। भगवान शिव के १०८ नामों को यहाँ पर अर्थ सहित दिया गया है। इस पोस्ट में दिए गए नाम के अतिरिक्त इनके आगे के नाम और शिव नाम के हिंदी अर्थ को आप अगली पोस्ट पर देख सकते हैं।
शिव के नाम और उनके हिंदी अर्थ : शिव के नाम अर्थ Shiv Ke Naam Ke Hindi Arth (108 Shiv Name Hindi Meaning, Shiv Names Hindi Matlab )
1. शिव: कल्याण स्वरूप, कल्याण करने वाला. भगवान शिव समस्त जगत का कल्याण करने वाले और पोषण करने वाले हैं. इस नाम का मन्त्र - ॐ शिवाय नमः
2. महेश्वर: माया के अधीश्वर, इश्वर (महा+ईश्वर). मंत्र-ॐ महेश्वराय नमः
3. शम्भू : आनंद स्वरूप वालेशम्भू एक अपभ्रंश शब्द है जो स्वंय+भू से बना है जिसका अर्थ स्वंय में परिपूर्ण, स्वंय ही उत्पन्न होता है। मंत्र-ॐ शंभवे नमः
4. पिनाकी: पिनाक धनुष धारण करने वाले, भगवान् शिव की धनुष को पिनाक कहा जाता है, जिसका उल्लेख रामायण से प्राप्त होता है.
भगवान् श्री राम ने पिनाक धनुष को भंग करके ही जनक पुत्री सीता को प्राप्त किया था. मान्यता के अनुसार पिनाक धनुष शिव का मूल धनुष है जिसे विध्वंस और विनाश के लिए ही उपयोग में लिया जाता था. मंत्र- ॐ पिनाकिने नमः
5. शशिशेखर: चंद्रमा धारण करने वाले महादेव शिव. मंत्र- ॐ शशिशेखराय नमः
6. वामदेव : अत्यंत सुंदर स्वरूप वाले, भगवान् शिव (वामदेव का अर्थ भगवान् शिव के अतिरिक्त ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल के सूत्तद्रष्टा, गौतम ऋषि के पुत्र तथा "जन्मत्रयी" के तत्ववेत्ता हैं भी होता है ) मंत्र- ॐ वामदेवाय नमः
2. महेश्वर: माया के अधीश्वर, इश्वर (महा+ईश्वर). मंत्र-ॐ महेश्वराय नमः
3. शम्भू : आनंद स्वरूप वालेशम्भू एक अपभ्रंश शब्द है जो स्वंय+भू से बना है जिसका अर्थ स्वंय में परिपूर्ण, स्वंय ही उत्पन्न होता है। मंत्र-ॐ शंभवे नमः
4. पिनाकी: पिनाक धनुष धारण करने वाले, भगवान् शिव की धनुष को पिनाक कहा जाता है, जिसका उल्लेख रामायण से प्राप्त होता है.
भगवान् श्री राम ने पिनाक धनुष को भंग करके ही जनक पुत्री सीता को प्राप्त किया था. मान्यता के अनुसार पिनाक धनुष शिव का मूल धनुष है जिसे विध्वंस और विनाश के लिए ही उपयोग में लिया जाता था. मंत्र- ॐ पिनाकिने नमः
5. शशिशेखर: चंद्रमा धारण करने वाले महादेव शिव. मंत्र- ॐ शशिशेखराय नमः
6. वामदेव : अत्यंत सुंदर स्वरूप वाले, भगवान् शिव (वामदेव का अर्थ भगवान् शिव के अतिरिक्त ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल के सूत्तद्रष्टा, गौतम ऋषि के पुत्र तथा "जन्मत्रयी" के तत्ववेत्ता हैं भी होता है ) मंत्र- ॐ वामदेवाय नमः
7. विरूपाक्ष : विचित्र अथवा तीन आंख वाले, विलक्षण (अद्भुद) नेत्रों वाले को धारण करने के अर्थों में शिव जी को विरुपाक्ष कहा जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ असुंदर नेत्रों को धारण करने वाला होता है। सामान्य अर्थ में शिव जी विलक्षण इन्द्रियाँ धारण करते हैं इसलिए इनको विरुपाक्ष कहा जाता है। मंत्र- ॐ विरूपाक्षाय नमः
8. कपर्दी : जटा धारण करने वाले शिव। संस्कृत में इसे ऐसे समझें कपर्द+ई (प्रत्यय) जटा जूटधारी शिव। सामान्य अर्थ में जिसके बालों की लम्बी लम्बी लटाएं होती हैं, उसे कदर्पि कहा जाता है। मंत्र- ॐ कपर्दिने नमः
9. नीललोहित : नीले और लाल रंग वाले। भगवान शिव जिनका कंठ नीला और मस्तक लोहित वर्ण होने के कारण शिव को नीललोहित कहा जाता है। मंत्र- ॐ नीललोहिताय नमः
10. शंकर : सबका कल्याण करने वाले, कल्याणकारी। संस्कृत शङ्कर जिसका अर्थ मंगल करने वाला, शुभ होता है। शिव ही श्रष्टि के रचियता हैं।
10. शंकर : सबका कल्याण करने वाले, कल्याणकारी। संस्कृत शङ्कर जिसका अर्थ मंगल करने वाला, शुभ होता है। शिव ही श्रष्टि के रचियता हैं।
11. शूलपाणी : हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले शिव, शूल-तीर और पाणी का अर्थ हाथ होता है। जो हाथों में तीर को धारण किए हुए हैं भगवान शिव।
मंत्र-ॐ शूलपाणये नमः
मंत्र-ॐ शूलपाणये नमः
12. खटवांगी : खटिया का एक पाया रखने वाले, (ॐ खट्वांगिने नमः)
13. विष्णुवल्लभ : भगवान विष्णु के अति प्रिय। वल्लभ का अर्थ प्रिय होता है अतः जो विष्णु जी का प्रिय है, भगवान शिव। मंत्र- ॐ विष्णुवल्लभाय नमः
14. शिपिविष्ट : सितुहा में प्रवेश करने वाले, शिपि का अर्थ होता है सीपी या सीतुहा और विष्ट का अर्थ होता है प्रवेश करना। जो सीतुहा में प्रवेश कर गया उसे हीं शिपविष्ट कहते हैं। (यज्ञो वै विष्णु: पशव: शिपि यज्ञ एव पशुषु प्रतितिष्ठति।) समस्त जगत में व्याप्त होने के कारण शिव को ‘शिपिविष्ट’ कहा जाता है। मन्त्र -ॐ शिपिविष्टाय नमः मंत्र- ॐ शिपिविष्टाय नमः
14. शिपिविष्ट : सितुहा में प्रवेश करने वाले, शिपि का अर्थ होता है सीपी या सीतुहा और विष्ट का अर्थ होता है प्रवेश करना। जो सीतुहा में प्रवेश कर गया उसे हीं शिपविष्ट कहते हैं। (यज्ञो वै विष्णु: पशव: शिपि यज्ञ एव पशुषु प्रतितिष्ठति।) समस्त जगत में व्याप्त होने के कारण शिव को ‘शिपिविष्ट’ कहा जाता है। मन्त्र -ॐ शिपिविष्टाय नमः मंत्र- ॐ शिपिविष्टाय नमः
15. अंबिकानाथ : देवी भगवती के पति। भगवान शिव अम्बिका के पति हैं। अम्बिका से आशय जननी दुर्गा से है और नाथ का अर्थ स्वामी से है। भगवान् शिव पार्वती जी के पति होने के कारण अम्बिकनाथ कहलाते हैं। मंत्र- ॐ अंबिकानाथाय नमः
16. श्रीकण्ठ : सुंदर कण्ठ वाले, भगवान् शिव नीलकंठ और श्रीकंठ कहलाते हैं। श्री से आशय शुभ और सुन्दर से है। 16- नाम- श्रीकण्ठ
17. भक्तवत्सल : भक्तों को अत्यंत स्नेह करने वाले भगवान शिव। वत्सल का अर्थ होता है प्रेम करने वाला, करुणा को करने वाला। भगवान शिव अपने भक्तों पर शीघ्रता से प्रसन्न होकर उन पर स्वंय की करुणा बरसाते हैं। भक्तों से प्रेम करने के कारण भगवान् शिव को भक्तवत्सल कहा जाता है। मंत्र- ॐ भक्तवत्सलाय नमः
18. भव : संसार के रूप में प्रकट होने वाले भगवान शिव, मंत्र-ॐ भवाय नमः। भव का अर्थ संसार और उत्पत्ति होता है।
19. शर्व : कष्टों को नष्ट करने वाले, शृ (समाप्त करना )+व, शर्व+अच्] १. शिव भगवान शिव ही कष्टों का नाश करते हैं। मंत्र- ॐ शर्वाय नमः
20. त्रिलोकेश : तीनों लोकों के स्वामी भगवान शंकर। जो तीन लोक का ईश है। मंत्र- ॐ त्रिलोकेशाय नमः
21. शितिकण्ठ : भगवान शिव को सफेद कण्ठ के कारण शितिकंठ भी कहा जाता है। महादेव जहाँ नीलकंठ हैं वहीँ पर ये शितिकंठ भी हैं। दधदधिगलमिन्द्रपविप्रहृतिप्रभवं कालम्।
कालञ्जरगिरिशिखरे प्रथितस्त्वं शितिकण्ठ:।।
इंद्र के द्वारा वज्र के प्रहार से गले में कालिमा को लिए हुए आप शितिकंठ कहलाते हैं। मंत्र- ॐ शितिकण्ठाय नमः
कालञ्जरगिरिशिखरे प्रथितस्त्वं शितिकण्ठ:।।
इंद्र के द्वारा वज्र के प्रहार से गले में कालिमा को लिए हुए आप शितिकंठ कहलाते हैं। मंत्र- ॐ शितिकण्ठाय नमः
22. शिवाप्रिय : पार्वती के प्रिय, शिवा के पति शिव। मंत्र- ॐ शिवा प्रियाय नमः
23. उग्र : अत्यंत उग्र और गुसैल रूप धारण करने वाले। मंत्र- ॐ उग्राय नमः
24. कपाली : कपाल धारण करने वाले। मंत्र- ॐ कपालिने नमः (करैं केलि काली कपाली समेतं ।) शिव गले में कपालों की माला को धारण करते हैं। कपाल और कपाली का अर्थ मुंड और ठीकरा होता है।
25. कामारी : कामदेव के शत्रु, अंधकार को दूर करने वाले शिव का एक नाम कामारि है। मंत्र- ॐ कामारये नमः
23. उग्र : अत्यंत उग्र और गुसैल रूप धारण करने वाले। मंत्र- ॐ उग्राय नमः
24. कपाली : कपाल धारण करने वाले। मंत्र- ॐ कपालिने नमः (करैं केलि काली कपाली समेतं ।) शिव गले में कपालों की माला को धारण करते हैं। कपाल और कपाली का अर्थ मुंड और ठीकरा होता है।
25. कामारी : कामदेव के शत्रु, अंधकार को दूर करने वाले शिव का एक नाम कामारि है। मंत्र- ॐ कामारये नमः
26. सुरसूदन : शिव ने अंधक दैत्य को समाप्त किया था जिसके कारण उनको सूरसदन कहा जाता है। मंत्र- ॐ अन्धकासुरसूदनाय नमः
27. गंगाधर : गंगा को जटाओं में धारण करने वाले शिव। धर से आशय धारण करने वाला, जो गंगा को अपनी जटाओं (बालों) में रखता है वह गंगाधर, शिव। मंत्र- ॐ गंगाधराय नमः
28. ललाटाक्ष : माथे पर आंख धारण किए हुए, भगवान् शिव त्रिनेत्र धारी हैं और उनका तीसरा नेत्र मस्तक पर है। मंत्र- ॐ ललाटाक्षाय नमः।
29. महाकाल : कालों के भी काल, महाकाल (शिव ) मंत्र-ॐ कालकालाय नमः
30. कृपानिधि : करुणा की खान, कृपा करने वाले। मंत्र- ॐ कृपानिधये नमः
31. भीम : भयंकर और रौद्र/रुद्र रूप धारण करने वाले। मंत्र-ॐ भीमाय नमः भीम से आशय वृहद स्तर से होता है।
भगवान शिव के १०८ नाम हिंदी में Bhagwan Shiv Ke 108 Naam
32. परशुहस्त : हाथ में फरसा धारण करने वाले (ललाटाक्ष कालकाल कृपानिधि भीम परशुहस्त मृगपाणी जटाधर कैलाशवासी कवची त्रिपुरांतक वृषांक वृषभारूढ़ ) परशु-फरसा, हस्त-हाथ। मंत्र-ॐ परशुहस्ताय नमः
33. मृगपाणी : हाथ में हिरण धारण करने वाले। उल्लेखनीय है की मन को चंचल माना जाता है और शिव स्थिर हैं, अचलेन्द्र है इसलिए इन्हे मृगपाणि भी कहा जाता है (दारुवनस्थैस्त्वयाभिचरद्भि: प्रेषित एणो वेदशरीर:।
याचनमुद्रा वा तव हस्ते तत्प्रथितोSसि त्वं मृगपाणि:।।)
34. जटाधर : जटा रखने वाले। जटा को धारण (धर करने वाले )
35. कैलाशवासी : कैलाश पर निवास करने वाले, कैलाश पर वास करने वाले।
33. मृगपाणी : हाथ में हिरण धारण करने वाले। उल्लेखनीय है की मन को चंचल माना जाता है और शिव स्थिर हैं, अचलेन्द्र है इसलिए इन्हे मृगपाणि भी कहा जाता है (दारुवनस्थैस्त्वयाभिचरद्भि: प्रेषित एणो वेदशरीर:।
याचनमुद्रा वा तव हस्ते तत्प्रथितोSसि त्वं मृगपाणि:।।)
34. जटाधर : जटा रखने वाले। जटा को धारण (धर करने वाले )
35. कैलाशवासी : कैलाश पर निवास करने वाले, कैलाश पर वास करने वाले।
36. कवची : कवच धारण करने वाले, कवचयुक्त।
37. कठोर : मजबूत शरीर वाले शिव।
38. त्रिपुरांतक : त्रिपुरासुर का विनाश करने वाले। (रथेन क चेषुवरेण तस्य गणैश्च शम्भोस्त्रिपुरं दिधक्षत:।
पुरत्रयं दग्धुमलुप्तशक्ते: किमेतदित्याहुरजेन्द्र्मुख्या:।।
मन्ये च नूनं भगवान् पिनाकी लीलार्थमेतत् सकलं प्रहतुर्म्।
व्यवस्थितश्चेति तथाSन्यथा चेदाडम्बरेणास्य फलं किमेतत्।। )
त्रिपुरासुर को नष्ट करने के कारण महादेव को त्रिपुरांतक कहा जाता है।
39. वृषांक : बैल चिह्न की ध्वजा वाले शिव।
(त्वं गवामनयत: कुपितोSपि प्रार्थितोSसि सुकृतेन वृषेण।
तेन त्द्ध्वजरथो वृषशैले विश्रुतोSस्यभिधयाSपि वृषाङ्क:।।)
शिव वृषभ का चिह्न अपने ध्वजा के रूप में उपयोग करते हैं।
40. वृषभारूढ़ : बैल पर सवार होने वाले, बैल की सवारी करने वाले शिव। भगवान् शिव नन्दी साँढ को वाहन के रूप में स्वीकार करते हैं।
37. कठोर : मजबूत शरीर वाले शिव।
38. त्रिपुरांतक : त्रिपुरासुर का विनाश करने वाले। (रथेन क चेषुवरेण तस्य गणैश्च शम्भोस्त्रिपुरं दिधक्षत:।
पुरत्रयं दग्धुमलुप्तशक्ते: किमेतदित्याहुरजेन्द्र्मुख्या:।।
मन्ये च नूनं भगवान् पिनाकी लीलार्थमेतत् सकलं प्रहतुर्म्।
व्यवस्थितश्चेति तथाSन्यथा चेदाडम्बरेणास्य फलं किमेतत्।। )
त्रिपुरासुर को नष्ट करने के कारण महादेव को त्रिपुरांतक कहा जाता है।
39. वृषांक : बैल चिह्न की ध्वजा वाले शिव।
(त्वं गवामनयत: कुपितोSपि प्रार्थितोSसि सुकृतेन वृषेण।
तेन त्द्ध्वजरथो वृषशैले विश्रुतोSस्यभिधयाSपि वृषाङ्क:।।)
शिव वृषभ का चिह्न अपने ध्वजा के रूप में उपयोग करते हैं।
40. वृषभारूढ़ : बैल पर सवार होने वाले, बैल की सवारी करने वाले शिव। भगवान् शिव नन्दी साँढ को वाहन के रूप में स्वीकार करते हैं।
41. भस्मोद्धूलितविग्रह : भस्म लगाने वाले भगवान शिव। भगवान महादेव अपनी कमनीय काया पर सुन्दर भस्म लेपित करते हैं, जिसके कारण उनको भस्मोद्धूलितविग्रह कहा जाता है। (स्वोङ्गे भस्म विलिम्पन् नाथ! ज्ञानां शिरोव्रतमुपदिशसि।
भूतेशाभिधतीर्थेSपि त्त्वं भस्मोद्धूलितविग्रहनामा।। )
भूतेशाभिधतीर्थेSपि त्त्वं भस्मोद्धूलितविग्रहनामा।। )
(अधिक जानिये : शिव को सदाशिव क्यों कहते हैं ?42. सामप्रिय : साम गान (सामवेद) से प्रेम करने वाले शिव। भगवान शिव साम गान को सुनकर अत्यंत ही मुदित हो जाते हैं इसलिए शिव को सामप्रिय कहा जाता है।
(चन्दनस्पर्शशीतामृतस्यन्दिनी सान्त्ववाक् सामवेदोSथ सामानि वा।
तै: प्रयुक्तैरतीवेश! सम्प्रीयसे गीयसे तेन लोकेषु सामप्रिय:।।)
43. स्वरमय : सातों स्वरों में निवास करने वाले। शिव सामप्रिय हैं अर्थात संगीत को पसंद करते हैं और सातो स्वर (सा, रे, ग, म, प, ध, नि ) में शिव ही व्याप्त हैं इसलिए इनको स्वरमय कहा जाता है। स्वर का अर्थ है ध्वनि और प्रत्येक ध्वनि में शिव का ही वाश है।
44. त्रयीमूर्ति : वेद रूपी विग्रह करने वाले। त्रायी का अर्थ होता है वेद और वेदों का रूप ही शिव हैं। वेद स्वंय में शिव वाणी ही हैं।
(साम्ब! ॠग्वेदकोSस्यागलान्तात् आ च नाभे र्यजुर्वेदरूप:
नाभिदेशादध: सामवेद: तेन तेSभूत् त्रयीमूर्तिनाम।।)
45. अनीश्वर : जो स्वयं ही सबके स्वामी है। शिव स्वंय ईश्वर हैं और उनका कोई अन्य ईश्वर नहीं हो सकता है। जिसका कोई ईश्वर नहीं, जो स्वंयभू है वह शिव है।
46. सर्वज्ञ : सब कुछ जानने वाले, शिव ही तीनों लोको के ज्ञाता और त्रिकालदर्शी हैं। सब कुछ ज्ञात और अज्ञात को जानने के कारण शिव को सर्वज्ञ कहा जाता है।
(अधिक जाने : शिव को त्रिपुरारी क्यों कहते हैं )
47. परमात्मा : सब आत्माओं में सर्वोच्च, ईश्वर। शिव ही पूर्ण हैं।48. सोमसूर्याग्निलोचन : चंद्र, सूर्य और अग्निरूपी आंख वाले शिव। शिव के नेत्र चंद्र, सूर्य और अग्नि की भाँती प्रकाशित और तेजमय हैं इसीलिए सोमसूर्याग्निलोच कहा जाता हैं।
(घोरान्धकारविधुरं विविधोपतापतप्तं विप्द्गुरुतुषारपराहतं माम्।
त्वं चेज्जहासि वद कस्तपनेन्दुवह्निनेत्रो हरिष्यति परस्त्रिविधां ममार्तिम्।।)
49. हवि : आहुति रूपी द्रव्य वाले, हवन द्रव्य के रूप में प्रकट होने के कारण शंकर को हविरूप भी कहा जाता है।
50. यज्ञमय : यज्ञ स्वरूप वाले, यज्ञरूप होने के कारण शिव को यज्ञमय कहा जाता है।
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Author - Saroj Jangir
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