शिव के १०८ नाम हिंदी अर्थ सहित Shiv Ke 108 Naam Hindi Meaning

शिव के १०८ नाम हिंदी अर्थ सहित Shiv Ke 108 Naam Hindi Meaningशिव के १०८ नाम और उनके हिंदी में अर्थ /मतलब

भगवान शिव आप पर कृपा करें, श्री शिव के १०८ नामों का हिंदी अर्थ/हिंदी मीनिंग/हिंदी  मतलब यहाँ पर दिया गया है। इससे पूर्व के नाम और उनके अर्थ देखने के लिए कृपया यहाँ पर क्लिक करे। 
 
शिव के नाम हिंदी अर्थ सहित Shiv Ke Naam Hindi Meaning Lord Shiva 108 Names

श्री शिव नामावली हिंदी अर्थ सहित Shiva Namawali Hindi Arth Sahit

51. सोम : उमा के सहित रूप वाले, सोम के उच्चारण के साथ ही ॐ का उच्चारण भी होता है। मंत्र- ॐ सोमाय नमः
52. पंचवक्त्र : पांच मुख वाले शिव। पूर्वा,पश्चिमा, उत्तरा, दक्षिणा एवं ऊर्ध्वा दिक्भेद से क्रमश: तत्पुरुष, सद्योजात, वामदेव, अघोर एवं ईशान नामों से जाने जाते हैं।
53. सदाशिव : नित्य कल्याण रूप वाले, कल्याणकारी शिव। मंत्र- ॐ पंचवक्त्राय नमः
54. विश्वेश्वर : विश्व के ईश्वर होने के कारण शिव को विश्वेशर कहा जाता है। मंत्र- ॐ सदाशिवाय नमः
55. वीरभद्र : वीर तथा शांत स्वरूप वाले भगवान शिव। मंत्र- ॐ विश्वेश्वराय नमः
56. गणनाथ : गणों के स्वामी शिव। मंत्र-ॐ गणनाथाय नमः
57. प्रजापति : प्रजा का पालन- पोषण करने वाले। शिव समस्त जगत के पालक हैं। मंत्र- ॐ प्रजापतये नमः
58. हिरण्यरेता : स्वर्ण के समान तेजमय शिव। मंत्र- ॐ हिरण्यरेतसे नमः
59. दुर्धुर्ष : किसी से न हारने वाले, जिनको जीत ना सके। मंत्र- ॐ दुर्धर्षाय नमः 
60. गिरीश : पर्वतों के स्वामी, पर्वतों के राजा। गिरीश का एक अर्थ हिमालय पर्वत भी होता है। मंत्र- ॐ गिरीशाय नमः 
 
 
61. गिरिश्वर : कैलाश पर्वत पर रहने वाले, गिरी के ईश्वर। मंत्र- ॐ गिरिशाय नमः
62. अनघ : पापरहित या पुण्य आत्मा, अघ से रहित, निष्पाप, शोकहीन शिव। मंत्र- ॐ अनघाय नमः
63. भुजंगभूषण : सांपों व नागों के आभूषण के रूप में धारण करने वाले। भगवान् शिव के गले में सर्पों की माला होती है। मंत्र- ॐ भर्गाय नमः
64. भर्ग : पापों का नाश करने वाले शिव। बुराइयों और अज्ञान के अन्धकार को नाश करने वाले परमात्मा  'भर्ग' कहलाते हैं।
65. गिरिधन्वा : मेरू पर्वत को धनुष बनाने वाले शिव। मंत्र- ॐ गिरिधन्वने नमः
66. गिरिप्रिय : पर्वतों से प्रेम करने वाले, पर्वतप्रिय। मंत्र- ॐ गिरिप्रियाय नमः
67. कृत्तिवासा : गजचर्म पहनने वाले शिव। भगवान् शिव कपड़ों के रूप में कृत्ति अथवा गजचर्म को धारण करते हैं। कृत्तिवासत्व की कथा में इसका उल्लेख मिलता है। मंत्र- ॐ कृत्तिवाससे नमः
68. पुराराति : पुरों का नाश करने वाले, त्रिपुरारी। पुर नामक असुर का शत्रु और पुराराति से आशय शत्रुओं के नगरों को समाप्त करने वाले। मंत्र- ॐ पुरारातये नमः
69. भगवान् : सर्वसमर्थ ऐश्वर्य संपन्न, दयालु और कृपालु शिव।
70. प्रमथाधिप : प्रथम गणों के अधिपति शिव। मंत्र- ॐ प्रमथाधिपाय नमः
71. मृत्युंजय : मृत्यु पर विजय प्राप्त करने वाले, मृत्यु को जितने वाले शिव। मंत्र- ॐ मृत्युंजयाय नमः
72. सूक्ष्मतनु : सूक्ष्म शरीर वाले शिव जिनकी विशालता शून्य के समान सूक्ष्म है। मंत्र- ॐ सूक्ष्मतनवे नमः
73. जगद्व्यापी : जगत में व्याप्त शिव। मंत्र- ॐ जगद्व्यापिने नमः श्री शिव जगत के कण कण में व्याप्त शक्ति हैं।
74. जगद्गुरू : जगत के गुरु, शिव को आदि गुरु और आदि योगी कहा जाता है। मंत्र- ॐ जगद्गुरुवे नमः 
75. व्योमकेश : आकाश रूपी बाल वाले, शिव के बाल वृहत जटाधारी हैं। मंत्र- ॐ व्योमकेशाय नमः
76. महासेनजनक : कार्तिकेय के पिता श्री शिव। मंत्र- ॐ महासेनजनकाय नमः
77. चारुविक्रम : सुन्दर पराक्रम वाले शिव, मंत्र- ॐ चारुविक्रमाय नमः
78. रूद्र : उग्र रूप वाले, शिव रौद्र रूप धारण करके प्रलय करते हैं। मंत्र- ॐ रुद्राय नमः
79. भूतपति : भूतप्रेत व पंचभूतों के स्वामी शिव। भू से आशय राजा से और पति से आशय स्वामी से होता है। मंत्र- ॐ भूतपतये नमः 
80. स्थाणु : स्पंदन रहित कूटस्थ रूप वाले, सदा स्थाई और अटल रहने के भाव में। स्थाणु का मूल शाब्दिक अर्थ ऐसा पेड़ जिसके ऊपर की डालियाँ और पत्ते आदि न रह गए हों, ठूँठ होता है। मंत्र- ॐ स्थाणवे नमः
81. अहिर्बुध्न्य : कुण्डलिनी- धारण करने वाले शिव। मंत्र- ॐ अहिर्बुध्न्याय नमः।  अहिर्बुध्न्य का शाब्दिक अर्थ अहिर्बुध्न्य नाग का एक देवता होता है।
82. दिगम्बर : नग्न, आकाश रूपी वस्त्र वाले। दिगंबर सस्कृत का शब्द है और इसका शाब्दिक अर्थ नग्न होता है। मंत्र- ॐ दिगंबराय नमः
83. अष्टमूर्ति : आठ रूप वाले शिव। मंत्र- ॐ अष्टमूर्तये नमः। भविष्यपुराण में शिव की आठ मूर्तियों (अष्टमूर्ति ) के बारे में जानकारी प्राप्त होती है यथा पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, यजमान, सोम और सूर्य।
84. अनेकात्मा : अनेक आत्मा वाले शिव। इस नाम का  मंत्र- ॐ अनेकात्मने नमः।
85. सात्त्विक : सत्व गुणों से युक्त शिव। मंत्र- ॐ सात्विकाय नमः। सत्त्व (शाब्दिक अर्थ : "अस्तित्व, वास्तविकता" ; विशेषण : सात्विक) 
86. शुद्धविग्रह : दिव्यमूर्ति वाले, अष्टमूर्तिरनेकात्मा सात्त्विक: शुद्धविग्रह:
शाश्वत: खण्डपरशुरजपाशविमोचक:
मृड: पशुपतिर्देवो महादेवोऽव्यय: प्रभु:
पूषदन्तभिदव्यग्रो दक्षाध्वरहरो हर
मंत्र- ॐ शुद्धविग्रहाय नमः
87. शाश्वत : नित्य रहने वाले, सदा स्थापित रहने वाले शिव।  मंत्र- ॐ शाश्वताय नमः
88. खण्डपरशु : टूटा हुआ फरसा धारण करने वाले शिव, महादेव। मंत्र- ॐ खण्डपरशवे नमः
89. अज : जन्म रहित, जो जन्म और मरण से ऊपर हो। मंत्र- ॐ अजाय नमः 
90. पाशविमोचन : बंधन से छुड़ाने वाले, मंत्र- ॐ पाशविमोचकाय नमः। पाश का अर्थ चुंगल और जाल / बंधन होता है। 
91. मृड : सुखस्वरूप वाले, मृड् (संतुष्ट करना) मंत्र- ॐ मृडाय नमः
92. पशुपति : पशुओं के स्वामी, मंत्र- ॐ पशुपतये नमः।
93. देव : स्वयं प्रकाश रूप, देवता। मंत्र- ॐ देवाय नमः
94. महादेव : देवों के देव, महादेव। मंत्र- ॐ महादेवाय नमः 
95. अव्यय : खर्च होने पर भी न घटने वाले, जो कभी कम नहीं होता है। मंत्र- ॐ अव्ययाय नमः। अव्यय का शाब्दिक अर्थ होता है जो व्यय न किया जा सके जिनके रूप में लिंग , वचन , पुरुष , कारक , काल आदि के कारण कोई परिवर्तन ना हो उसे अव्यय कहा जाता है।
96. हरि : विष्णु के समान। मंत्र- ॐ हरये नमः
97. पूषदन्तभित् : पूषा के दन्त (दाँतों ) को तोड़ने वाला/उखाड़ने वाला श्री शिव। मंत्र- ॐ पूषदन्तभिदे नमः
98. अव्यग्र : व्यथित न होने वाला, श्री शिव। मंत्र- ॐ अव्यग्राय नमः।  शाब्दिक रूप से अव्यग्र का अर्थ शांत और ठंडा होता है। 
 99. दक्षाध्वरहर : दक्ष के यज्ञ का नाश करने वाले शिव।  मंत्र- ॐ दक्षाध्वरहराय नमः 

(शूलपाणि देव जय प्रलयंकर,बोलो बम बम जय शिव शंकर
हर लो मेरी हर भव बाधा,चरणों में तेरे शीश अभयंकर
सहस्राक्ष औ सहस्रपाद,भगनेत्रभिद तारक परमेश्वर
पशुपति पाशविमोचन भोले,अव्यय अव्यग्र दक्षाध्वरहर
सात्विक हो तुम खण्डपरशु,शाश्वत महादेव दिगम्बर
मृत्युंजय जगद्गुरु चारुविक्रम,भूतपति भोले शिव शंकर
व्योमकेश गिरिप्रिय कृत्तिवासा,वीरभद्र सदाशिव विश्वेश्वर
गणनाथ प्रजापति हिरण्यरेता,भर्ग अनघ गिरीश गिरीश्वर
भस्मोद्धूलितविग्रह सामप्रिय,सोमसूर्याग्निलोचन अनीश्वर
नीलकण्ठ शिवाप्रिय कामारी, सुरसूदन महाकाल गंगाधर
त्रिलोकेश भक्तवत्सल स्वामी,शिव महेश्वर तुम शशिशेखर
बोलो बम बम जय शिव शंकर, बोलो बम बम जय शिव शंकर) 
 
100. हर : पापों को हर लेने वाले श्री शिव। हर -दूर करना। मंत्र- ॐ हराय नमः
101. भगनेत्रभिद् : भग देवता की आंख फोड़ने वाले शिव। मंत्र- ॐ भगनेत्रभिदे नमः
102. अव्यक्त : इंद्रियों के सामने प्रकट न होने वाले, जो कण कण में व्याप्त होकर भी प्रकट ना हो। मंत्र- ॐ अव्यक्ताय नमः

(अधिक जानिये : शिव को सदाशिव क्यों कहते हैं ?
103. सहस्राक्ष : अनंत आँख वाले, त्रिकालदर्शी। मंत्र- ॐ सहस्राक्षाय नमः
104. सहस्रपाद : अनंत पैर वाले, कण कण में व्याप्त श्री शिव। मंत्र- ॐ सहस्रपदे नमः
105. अपवर्गप्रद : मोक्ष प्रदान करने वाले, अर्थात मौक्ष, प्रद, अर्थात प्रदान करने वाले, सदा मौक्ष देने वाले। मंत्र- ॐ अपवर्गप्रदाय नमः

(अधिक जाने : शिव को त्रिपुरारी क्यों कहते हैं )

106. अनंत : देशकाल वस्तु रूपी परिच्छेद से अति दूर सर्वत्र व्याप्त। मंत्र- ॐ अनन्ताय नमः
107. तारक : जगत को तारने वाले, शिव। मंत्र-ॐ तारकाय नमः।
108. परमेश्वर : प्रथम ईश्वर, आदि ईश्वर। मंत्र- ॐ परमेश्वराय नमः 
 

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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