भगवान पार्श्वनाथ श्री जैन धर्म के २३ वे तीर्थंकर हैं। पुरातन अभिलेखों के आधार पर भगवान पार्श्वनाथ जी का जन्म वर्तमान समय से 2 हजार 9 सौ वर्ष पूर्व वाराणसी (उत्तरप्रदेश) में हुआ था। इनके पिता अश्वसेन और माता का नाम वामा था। इनका जन्म कृष्ण एकादशी के रोज हुआ था। भगवान पार्श्वनाथ ने काशी में शिक्षा को ग्रहण किया। पार्श्वनाथ ने चतुर्विध संघ की स्थापना की, जिसमे मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविका होते है।
तीर्थंकर पार्शवनाथ ने जैन धर्म के चार मुख्य व्रत – सत्य, अहिंसा, अस्तेय और अपरिग्रह की शिक्षा लोगों को दी एंव भगवान पार्श्व नाथ की शिक्षाएं:- सदैव ही सत्य बोलना कभी चोरी ना करना संपत्ति का संचय नहीं करना कभी जीवों पर हिंसा न करना सदैव ही आत्म संयम रखना।
शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करूँ प्रणाम। उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम। सर्व साधू और सरस्वती, जिन मन्दिर सुखकार।
अहिच्छत्र और पार्श्व को, मन मंदिर में धार।
|| चौपाई || पार्श्वनाथ जगत हितकारी, हो स्वामी तुम व्रत के धारी | सुर नर असुर करे तुम सेवा, तुम ही सब देवन के देवां। तुमसे करम शत्रु भी हारा, तुम कीना जग का निस्तारां। अश्वसैन के राजदुलारे, वामा की आँखो के तारें। काशी जी के स्वामी कहाये, सारी परजा मौज उड़ाएं। इक दिन सब मित्रों को लेके, सैर करन को वन में पहुँचे | हाथी पर कसकर अम्बारी, इक जगंल में गयी सवारी | एक तपस्वी देख वहां पर, उससे बोले वचन सुना कर | तपसी तुम क्यों पाप कमाते, इस लक्कड़ में जीव जलाते | तपसी तभी कुदाल उठाया, उस लक्कड़ को चीर गिराया | निकलें नाग नागनी कारे, मरने के थे निकट बिचारे | रहम प्रभू के दिल में आया, तभी मन्त्र नवकार सुनाया | भर कर वो पाताल सिधाये, पद्मावति धरणेन्द्र कहाएँ,
Jain Bhajan Lyrics Hindi
तपसी मर कर देव कहाया, नाम कमठ ग्रन्थों में गाया | एक समय श्रीपारस स्वामी, राज छोड़ कर वन की ठानी | तप करते थे ध्यान लगाये, इकदिन कमठ वहाँ पर आएं, फौरन ही प्रभु को पहचाना, बदला लेना दिल में ठाना | बहुत अधिक बारिश बरसाई, बादल गरजे बिजली गिरायी, बहुत अधिक पत्थर बरसाए, स्वामी तन को नहीं हिलाए, पद्मावती धरणेन्द्र भी आए, प्रभु की सेवा मे चित लाये, धरणेन्द्र ने फन फैलाया, प्रभु के सिर पर छत्र बनाया | पद्मावति ने फ़न फ़ैलाया, उस पर स्वामी को बैठाया | कर्मनाश प्रभु ज्ञान उपाया, समोशरण देवेन्द्र रचाया | यही जगह अहिच्छत्र कहाये, पात्र केशरी जहाँ पर आए, शिष्य पाँच सौ संग विद्वाना, जिनको जाने सकल जहाना | पार्श्वनाथ का दर्शन पाया सबने जैन धरम अपनाया | अहिच्छत्र श्री सुन्दर नगरी, जहाँ सुखी थी परजा सगरी | राजा श्री वसुपाल कहाये, वो इक जिन मन्दिर बनवाए, प्रतिमा पर पालिश करवाया, फौरन इक मिस्त्री बुलवाया |
वह मिस्तरी माँस था खाता, इससे पालिश था गिर जाता | मुनि ने उसे उपाय बताया, पारस दर्शन व्रत दिलवाया | मिस्त्री ने व्रत पालन कीना, फौरन ही रंग चढ़ा नवीना | गदर सतावन का किस्सा है, इक माली का यों लिखा है, वह माली प्रतिमा को लेकर, झट छुप गया कुए के अन्दर | उस पानी का अतिशय भारी, दूर होय सारी बीमारी | जो अहिच्छत्र ह्रदय से ध्यावें, सो नर उत्तम पदवी वावे | पुत्र संपदा की बढ़ती हो, पापों की इक दम घटती हों। है तहसील आँवला भारी, स्टेशन पर मिले सवारी | रामनगर इक ग्राम बराबर, जिसको जाने सब नारी नर | चालीसे को चन्द्र बनाये, हाथ जोड़कर शीश नवाएँ,
सोरठा: नित चालीसहिं बार, पाठ करे चालीस दिन | खेय सुगन्ध अपार, अहिच्छत्र में आय के | होय कुबेर समान, जन्म दरिद्री होय जो | जिसके नहिं सन्तान, नाम वंश जग में चले ||
बहुत मन मोहक जैन भजन | श्री पार्श्वनाथ चालीसा। Shri Parshwanath Chalisa |Rajkumar Vinayak | Video
भगवान पार्श्वनाथ जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर हैं। उनका जन्म लगभग 2,900 वर्ष पूर्व वाराणसी में हुआ था। पार्श्वनाथ का जन्म पौष कृष्ण दशमी के दिन हुआ था। उनके पिता का नाम राजा अश्वसेन और माता का नाम वामादेवी था। प्रारंभ में उन्होंने राजकुमार के रूप में जीवन बिताया, लेकिन 30 वर्ष की आयु में गृहस्थ जीवन त्यागकर सन्यास लिया। 83 दिनों की कठोर तपस्या के बाद उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई। उन्होंने सत्य, अहिंसा, अस्तेय और अपरिग्रह के सिद्धांतों का प्रचार किया। उनकी शिक्षाओं से जैन धर्म को विशेष पहचान मिली। उनका निर्वाण श्रावण शुक्ला सप्तमी को सम्मेद शिखर पर हुआ।
Author - Saroj Jangir
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