उमराव थारी सूरत प्यारी लागै लिरिक्स मीनिंग राजस्थानी फोक सोंग

उमराव थारी सूरत प्यारी लागै लिरिक्स Umraav Thari Surat Pyari Laage Meaning (Rajasthani Folk Song Hindi Meaning)

यह पारम्परिक राजस्थानी विरह लोकगीत है जिसमे नायिका अपने पति (उमराव-प्रिय/पति) से संवाद करती है और विभिन्न बारह महीनों में स्वंय की स्थिति का वर्णन करती है, जिसका मूल भाव विरह वेदना ही है। इस लोकगीत का हिंदी मीनिंग निचे दिया गया है। 
 
उमराव थारी सूरत प्यारी लागै लिरिक्स मीनिंग राजस्थानी फोक सोंग

आप झरौखे बैठता, अळबलिया सिरदार,
हाज़र रहती गौरड़ी कर सोळा सिणगार,
हो जी सरकार,  थारी सूरत प्यारी लागै म्हारा राज,
म्हारा साहेबा, ओ जी म्हारा राज।

पिया गया परदेश में, नैणा टपके नीर,
ओळ्यू आवे पीव की, जिवड़ो धरे ना धीर,
ओ जी उमराव थारे, लेरा लागी आऊं, म्हारा राज।
राजन चाल्या पगा पगा, रथ पर रह गया दूत,
बिलखत छोड़ी कामणि, परिया की सी हूर,
उमराव थारी चलगत प्यारी लागै, म्हारा राज।
म्हारा साहेबा, ओ जी म्हारा राज।

चंदा तेरे चानणे, सूती पलंग बिछाय,
जद जागूँ जद एकली, मरुँ कटारी खाय,
सिरदार म्हारो, जोबण एडो जावे म्हारा राज,
पीव परदेसा था रह्या, सूनी आखातीज,
लुआ चाले जेठ की, जावे बदन पसीज,
ओ जी आसाढा बदळी छाई, अब घर आओ म्हारा राज,
म्हारा साहेबा, ओ जी म्हारा राज।

सावण बरख़ा झुक रही, चढ़ी घटा घनघोर,
कोयल कूक सुनावती, बोले दादुर मोर,
ओ जी उमराव, पपैयो पीव पीव शबद सुनावै, म्हारा राज,
म्हारा साहेबा, ओ जी म्हारा राज।

चम चम चमके बिजळी, टप टप बरसे मेह,
भर भादव बिलखत तजि, भलो निभायो नेह,
ओ जी, उमराव, चैत्र चौमासे ने घर आओ म्हारा राज,
म्हारा साहेबा, ओ जी म्हारा राज।

आसोजां मैं सीप ज्यूँ प्यारी करती आस,
पीव पीव करती धण कहे, प्रीतम ना आवे ना पास,
ओ जी, भरतार इंद्र ओलर ओलर आवे, म्हारा राज,
उमराव जी, ओ जी उमराव।

करूँ कढ़ाई चाव सै, तेरी दुर्गा माय,
आसोजा में आय के, जो प्रीतम मिल जाय,
महाराणी थारे सुवर्ण छतर चढ़ाऊँ, म्हारी माय,
म्हारा साहेबा, ओ जी म्हारा राज।

कातिक छाती कर कठिन, पिया बसे जा दूर,
लालच में बस होय के, बिलखत छोड़ी हूर,
सरकार, धण थारी ऊबी काग उड़ावे, म्हारा राज,

सखी संजोवे दीवळा, पूजे लक्ष्मी मात,
रलमिळ ओढ़े कामणि, ले प्रीतम ने साथ,
सरकार, सखी सब पीव संग मौज उड़ावे, म्हारा राज,
म्हारा साहेबा, ओ जी म्हारा राज।

मंगसर महीना में मेरे, मन में उठे तरंग,
पोष माघ की ठण्ड में, मदन करत मोहे तंग,
उमराव बिना कुण म्हारी, तपत मिटावे म्हारा राज,

फागण में संग की सखी, सभी रंगावै चीर,
मेरा सब रंग ले गयो, बाई जी रो बीर,
होळी ने थारी नार बेरंगी डोळे, म्हारा प्राण,
म्हारा साहेबा, ओ जी म्हारा राज।

साजन साजन मैं करूँ, साजन जीव जड़ी,
चुड़ले ऊपर मांड ल्यूं, बाँचू घड़ी घड़ी,
भरतार थांकी ओळ्यू म्हाने आवे म्हारा राज,
म्हारा साहेबा, ओ जी म्हारा राज।

चेत महीनो लागियो, बीत्यां बारह माँस,
गणगौरया घर आयके, पुरो मन की आस,
उमराव म्हाने हिवड़े स्यूँ लिपटाल्यो म्हारा राज,
ओ जी, उमराव म्हाने हिवड़े स्यूँ लिपटाल्यो म्हारा राज,
म्हारा साहेबा, ओ जी म्हारा राज।

चार कूँट की बावड़ी, ज्यां  में शीतल नीर,
आपां रळ मिल न्हावस्यां, नणदल बाई रा बीर,
उमराव थारी चलगत प्यारी लागे म्हारा राज,
ओ जी उमराव,  थारी बोली मीठी लागे म्हारा राज,
उमराव थारी बोली मीठी लागे, म्हारा राज।
म्हारा साहेबा, ओ जी म्हारा राज।

चाँदी को एक बाटको, ज्यामें भूरा भात,
हुकुम देवों सरकार थे, जीमां दोन्यूं साथ,
अजी सिरकार थाने, पंखियों ढुळाऊँ म्हारा राज,
ओ जी उमराव,  थारी बोली मीठी लागे म्हारा राज,
उमराव थारी बोली मीठी लागे, म्हारा राज।
उमराव जी, ओ जी उमराव।

पीव आया परदेस से, जाजम देइ बिछाय,
तन मन की फेर पुछस्यां, हिवड़े ल्यो लिपटाय,
ओ जी हुकुम करो तो धण, थारी हाजर है म्हारा राज,
ओ जी उमराव,  थारी बोली मीठी लागे म्हारा राज,
उमराव थारी बोली मीठी लागे, म्हारा राज।
उमराव जी, ओ जी उमराव। 

आप झरौखे बैठता, अळबलिया सिरदार : नायिका अपने पति के पास में होने की स्थिति की कल्पना करके कहती है की यदि आप मेरे पास होते तो आप झरोखे में बैठते, आप अलबेले सरदार (पति को ही सरदार कहा गया है ) झरोखे में बैठते। झरोखा -महलों और हवेलियों में ऊपरी मंजिल पर एक छोटी खिड़की रखी जाती थी, जिससे अक्सर बाहर का नज़ारा लिया जाता था।  
हाज़र रहती गौरड़ी कर सोळा सिणगार : आपकी सेवा के लिए गौरी (गोरड़ी -गौरी) सोलह श्रृंगार करके हाज़िर (उपलब्ध, सेवा में) रहती।
हो जी सरकार,  थारी सूरत प्यारी लागै म्हारा राज : मेरे सरकार, आपकी सूरत प्यारी लगती है। म्हारा राज-प्रिय के लिए सम्बोधन)
म्हारा साहेबा, ओ जी म्हारा राज : मेरे साहिब(स्वामी) मेरे राज (पति के लिए सम्बोधन )
पिया गया परदेश में, नैणा टपके नीर : मेरे पिया, प्रिय (पति) परदेस में हैं और मुझे उनकी याद आने के कारण मेरे नैना से/आखों से आंसू टपक रहे हैं।
ओळ्यू आवे पीव की, जिवड़ो धरे ना धीर : मुझे मेरे प्रिय की याद (ओळ्यू) आती है और मेरा हृदय / जिवडा में धीरज /धैर्य नहीं है।
ओ जी उमराव थारे, लेरा लागी आऊं, म्हारा राज : मेरे प्रिय मैं आपके पीछे चली आऊँगी। लारे-पीछे से चल देना। लागि आउ -पीछे पीछे चलना।
राजन चाल्या पगा पगा, रथ पर रह गया दूत :मेरे पिया (राजन) पैदल ही चल पड़े हैं और रथ में दूत रह गए हैं।
बिलखत छोड़ी कामणि, परिया की सी हूर : आपने परियों के समान हूर(सुंदर युवती) को तड़पती (बिलखती) छोड़ दी है। कामणि-कामुक। बिलखत-विलाप करती, तड़पती हुई।
उमराव थारी चलगत प्यारी लागै, म्हारा राज : उमराव, आपकी चाल प्यारी लगती है।
चंदा तेरे चानणे, सूती पलंग बिछाय : मैं तो चंदा की चाँदनी में पलंग बिछा कर सो रही हूँ।
जद जागूँ जद एकली, मरुँ कटारी खाय : मैं जब जागती हूँ तो अकेली होने के कारण मुझे तड़प होती है और मेरे सीने पर कटारी जैसी चल जाती है। मरुँ कटारी खाय से आशय है की मैं विरह में तड़प रही हूँ।  
सिरदार म्हारो, जोबण एडो जावे म्हारा राज : मेरे सरदार मेरा यौवन व्यर्थ ही जा रहा है। सिरदार-सरदार/स्वामी (पति) जोबन-यौवन, एडो -व्यर्थ
पीव परदेसा था रह्या, सूनी आखातीज : मेरे प्रिय आप तो परदेस में हैं और मेरी आखातीज सूनी रहती है। आखातीज- अक्षय तृतीया जिसके उपलक्ष पर किसान जहाँ बुआई की शुरूआत करते हैं, वहीँ इसका दान पुण्य का भी विशेष महत्त्व होता है।
लुआ चाले जेठ की, जावे बदन पसीज : इसके अगले महीने मैं नायिका कहती है जेठ/ ज्येष्ठ महीने में गर्मी पड़ती है और पसीने से बदन/तन पसीज जाता है।
ओ जी आसाढा बदळी छाई, अब घर आओ म्हारा राज : ऐसे ही आगे आषाढ़ महीने में बादल छाने लगने लगती है (विरह में अधिक दुखदाई). 
सावण बरख़ा झुक रही, चढ़ी घटा नभ घोर : सावन के महीने में आसमान में (नभ) बरसात घिर आई है। बरसात के बादल सावन में छाए हैं। घोर-घनघोर, अत्यंत गहरे बादल।
कोयल कूक सुणावती, बोले दादुर मोर : कोयल कुह कुह की ध्वनि सुनाती है और दादुर मोर बोल रहे हैं। दादुर मोर : दादर मोर, सावन में मोर बरसात के आगमन पर पंख फैलाकर नृत्य करते हैं इसे ही दादुर मोर कहा जाता है। हिंदी में दादुर से आशय मेढंक से भी लिया जाता है लेकिन यहाँ पर दादुर से आशय नृत्य करता मोर है।
ओ जी उमराव, पपैयो पीव पीव शबद सुनावै, म्हारा राज : मेरे प्रिय, पपैया (पपीहा) पीव पीव की ध्वनि (शब्द) सुनाता है। 
चम चम चमके बिजळी, टप टप बरसे मेह : आकाश में चम चम करके बिजली चमक रही है, और टप टप करके बरसात हो रही है। मेह-बरसात।
भर भादव बिलखत तजि, भलो निभायो नेह : आपने बीच भादव (भादवा महीना) माह में मुझे छोड़ (तजि) दिया है, आपने अच्छा प्रेम निभाया है। भलो निभायो नेह में व्यंग्य है की आपने प्रेम नहीं निभाया है।
ओ जी, उमराव, चैत्र चौमासे ने घर आओ म्हारा राज : मेरे प्रिय चैत्र माह, चौमासा (बरसात से आगे के चार महीने) में आप घर पर आ जाओ।
आसोजां मैं सीप ज्यूँ प्यारी करती आस : आसोज (आषाढ़) महीने में मैं सीप (सीपी) की भाँती आपसे आसा करती हूँ।
पीव पीव करती धण कहे, प्रीतम ना आवे ना पास : आपकी नारी आपने नाम की, पीव पीव के नाम की रटन लगा रही है, कह रही है। मेरे प्रीतम मेरे पास नहीं आ रहे हैं। धण - नारी (पत्नी रूप में)
ओ जी, भरतार इंद्र ओलर ओलर आवे, म्हारा राज : मेरे भरतार (पति) इंद्र (बरसात) रह रह कर आती है।
करूँ कढ़ाई चाव सै, तेरी दुर्गा माय : ऐसे में माता दुर्गा से विनती है की वह मुझपर कृपा करे और मैं बड़े ही चाव से माता दुर्गा की कढ़ाई करुँगी। कढ़ाई चढाने से आशय है की तेल में पकवान बनाउंगी और माता के भोग लगाऊंगी। माय-माता।
आसोजा में आय के, जो प्रीतम मिल जाय : मेरी विनती है की आप कुछ ऐसा करो जिससे आसोज महीने में मेरा प्रीतम घर पर आ जाए, मिल जाए।
महाराणी थारे सुवर्ण छतर चढ़ाऊँ, म्हारी माय : मेरी महारानी (माता रानी) मैं आपके सोने से बना हुआ छत्र चढ़ाउंगी। छतर -छतरी। सुवर्ण -सोने की।
कातिक छाती कर कठिन, पिया बसे जा दूर : कार्तिक (कातिक / काती ) महीने में कठोर हृदय करके (छाती को कठिन करना ) पिया दूर जाकर रह रहे हैं।  
लालच में बस होय के, बिलखत छोड़ी हूर : धन दौलत कमाने के लालच में पड़कर, लालच के बस होकर पिया मुझ जैसी परी  (हूर, सुंदर स्त्री जैसे कोई अप्सरा) तड़पती हुई, बिलखती हुई को छोड़कर दूर चले गए हैं।
सरकार, धण थारी ऊबी काग उड़ावे, म्हारा राज : मेरे सरकार, आपकी स्त्री खड़ी खड़ी कौवे उड़ा रही है, आशय है की आपकी प्रतीक्षा में लगी रहती है। मुंडेर पर कौवे बोलने का संकेत किसी अतिथि के आने का संकेत भी होता है।
सखी संजोवे दीवळा, पूजे लक्ष्मी मात : मेरी सखिया दीपावली के अवसर पर दीपक संजो रही हैं, दीपक को कतारों में लगा रही हैं और लक्ष्मी माता का पूजन कर रही हैं।
रलमिळ ओढ़े कामणि, ले प्रीतम ने साथ : वे आपस में मिलकर, रलमिल कर नए वस्त्र धारण करती हैं और अपने प्रीतम को साथ में रखती हैं।
सरकार, सखी सब पीव संग मौज उड़ावे, म्हारा राज : मेरे सरकार, आप देखो की मेरी सभी सखिया अपने पीव, प्रियतम के साथ मौज उड़ा रही हैं।
मंगसर महीना में मेरे, मन में उठे तरंग : मंगसर (मार्गशीष ) महीने में मेरे मन में तरंग उठती है।
पोष माघ की ठण्ड में, मदन करत मोहे तंग  : पौष महीने की ठण्ड में मुझे आपकी याद आती है और मुझे कामुक करता है, कामुकता मुझे तंग करती है।
उमराव बिना कुण म्हारी, तपत मिटावे म्हारा राज : मेरी अग्नि (विरहाग्नि) को मेरे प्रिय उमराव के अतिरिक्त कौन मिटा सकता है (कोई नहीं).
फागण में संग की सखी, सभी रंगावै चीर : फागण (फाल्गुन) महीने में मेरे साथ की सभी सखियाँ अपने वस्त्रों को रंगवाती हैं, रंगरेज से रंग चढ़वाती हैं।
मेरा सब रंग ले गयो, बाई जी रो बीर : लेकिन मेरा तो सर्वस्व आप (बाई -ननद का बीर -पति) बाई जी के भाई ले गए हैं। चीर -वस्त्र।
होळी ने थारी नार बेरंगी डोळे, म्हारा प्राण : होली के अवसर पर आपकी नार (स्त्री) बेरंग ही फिर रही है (आप होते तो रंग लगाते)
साजन साजन मैं करूँ, साजन जीव जड़ी : मैं साजन साजन के नाम की रटन लगा रही हूँ, कह रही हूँ और साजन ही मेरे प्राणों के आधार हैं। जीवजडी -जीवन का आधार।
चुड़ले ऊपर मांड ल्यूं, बाँचू घड़ी घड़ी : मैं अपने चूड़े पर आपके नाम को रेखांकित कर लूँ, चित्रित कर लूँ (मांड ल्यूं) और उसे बार बार (घडी घडी ), थोड़े समय के अंतराल पर पढ़ती रहूं (बाचूं-पढ़ना).
भरतार थांकी ओळ्यू म्हाने आवे म्हारा राज : मेरे भरतार (पति) मुझे आपकी (थाकि ) याद (ओळ्यू ) आ रही है, मेरे प्रिय।
चेत महीनो लागियो, बीत्यां बारह माँस : चैत्र महीना फिर से लग गया है, और इस तरह से बारह महीने बीत गए हैं। बीत्या-बीत गए हैं। लागियो-लग गया है।
गणगौरया घर आयके, पुरो मन की आस : गणगौर के अवसर पर आप घर पर पधारो/आओ और मेरे मन की आस को पूर्ण करो। पुरावो - पूर्ण करना।
उमराव म्हाने हिवड़े स्यूँ लिपटाल्यो म्हारा राज : मेरे प्रिय मुझे अपने हृदय से लगा लो।
चार कूँट की बावड़ी, ज्यां में शीतल नीर : चार दीवार की एक बावड़ी (छोटा तालाब) है जिसमे ठंडा पानी भरा है।
आपां रळ मिल न्हावस्यां, नणदल बाई रा बीर : आप और हम दोनों इसमें मिलकर नहाएंगे। मेरी ननद बाई के बीर, मेरे पति।
उमराव थारी चलगत प्यारी लागे म्हारा राज : मेरे प्रिय आपकी आवाजाही मुझे अधिक प्रिय लगती है।
ओ जी उमराव,  थारी बोली मीठी लागे म्हारा राज : मेरे प्रिय मुझे आपकी बोली मीठी लगती है।
चाँदी को एक बाटको, ज्यामें भूरा भात : चांदी का एक बड़ा कटोरा (बाटका -बड़ी कटोरी ) भूरे रंग के चावल से भरा हुआ है। भात-चावल।
हुकुम देवों सरकार थे, जीमां दोन्यूं साथ : मेरे सरकार आप हुकम तो दें, हम दोनों साथ में जीमते (भोजन करते हैं ) हैं। दोन्यू-दोनों।
अजी सिरकार थाने, पंखियों ढुळाऊँ म्हारा राज : अजी मेरे सरकार मैं आपको पंखा करती हूँ, हवा करती हूँ। पंखियों ढुळाऊँ- हाथ का पंखा जिससे हवा की जाती है।
ओ जी उमराव,  थारी बोली मीठी लागे म्हारा राज,
पीव आया परदेस से, जाजम देइ बिछाय : मेरे प्रिय परदेस से आए हैं और मैंने जाजम को बिछा दिया है।  जाजम- अतिथि आदि के आने पर एक बड़ी चटाई बिछाई जाती थी जिस पर वे बैठते थे उसे ही जाजम कहा जाता है।
तन मन की फेर पुछस्यां, हिवड़े ल्यो लिपटाय : हाल चाल मैं फिर पूछ लुंगी अभी तो आप मुझे अपनी छाती से लगा लो, लिपटा लो।
ओ जी हुकुम करो तो धण, थारी हाजर है म्हारा राज : आप हुकम करों मैं आपकी धण  (स्त्री) हाजिर हूँ। 

Umrav Thari Boli (Original Song) | Superhit Rajasthani Song | Shilpi Mathur | Veena Music

Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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