गुरु बिन घोर अँधेरा रे संतो भजन
गुरु बिन घोर अँधेरा भजन
आग लगी आसमान में,
झुर झुर गिरे अँगार,
संत ना होते जगत में,
तो जल जातो संसार।
(आग लगी आकाश में, झर झर पड़त अंगार,
संत न होते जगत में तो जल मरता संसार )
सो सो चंदा उगवे,
सूरज तपे हज़ार,
इतरो चानणो होवता,
गुरु बिन घोर अंधार।
गुरु बिन घोर अँधेरा रे संतो,
गुरु बिन घोर अँधेरा जी,
बिना दीपक मंदरियों सूनों,
अब नहीं वस्तु का बेरा जी,
(गुरु बिन घोर अँधेरा रे संतो,
गुरु बिन घोर अँधेरा जी,
बिना दिपक मंदरियो सुनों,
अब नहीं वस्तु का बेरा जी )
झुर झुर गिरे अँगार,
संत ना होते जगत में,
तो जल जातो संसार।
(आग लगी आकाश में, झर झर पड़त अंगार,
संत न होते जगत में तो जल मरता संसार )
सो सो चंदा उगवे,
सूरज तपे हज़ार,
इतरो चानणो होवता,
गुरु बिन घोर अंधार।
गुरु बिन घोर अँधेरा रे संतो,
गुरु बिन घोर अँधेरा जी,
बिना दीपक मंदरियों सूनों,
अब नहीं वस्तु का बेरा जी,
(गुरु बिन घोर अँधेरा रे संतो,
गुरु बिन घोर अँधेरा जी,
बिना दिपक मंदरियो सुनों,
अब नहीं वस्तु का बेरा जी )
⭐⭐⭐ गुरु बिन घोर अँधेरा का हिंदी अर्थ/मीनिंग देखें Hindi Meaning of "Guru Bin Ghor Andhera" (Learn More)
अरे जब तक कन्या रहवे कँवारी,
नहीं पुरुष का बेरा जी,
आठों पहर आळस माहीं खेले,
अब खेले खेल घनेरा जी,
(गुरु बिन घोर अँधेरा रे संतो,
गुरु बिन घोर अँधेरा जी,
बिना दिपक मंदरियो सुनों,
अब नहीं वस्तु का बेरा जी )
अरे मिरगे री नाभि बसे कस्तूरी,
नहीं मिरगे को बेरा जी,
रणीबनी में फिरे भटकतो,
अब सूंघे घास घनेरा जी,
(गुरु बिन घोर अँधेरा रे संतो,
गुरु बिन घोर अँधेरा जी,
बिना दिपक मंदरियो सुनों,
अब नहीं वस्तु का बेरा जी )
अरे जब तब आग रहवे पत्थर में,
नहीं पत्थर को बेरा जी,
चकमक चोटां लागै शबद री,
अब फेके आग चंपेरा जी,
(गुरु बिन घोर अँधेरा रे संतो,
गुरु बिन घोर अँधेरा जी,
बिना दिपक मंदरियो सुनों,
अब नहीं वस्तु का बेरा जी )
रामानंद मिल्या गुरु पूरा,
दिया सबद टकसाणा जी,
कहत कबीर सुणों भई संतो,
अब मिट गया भरम अँधेरा जी,
(गुरु बिन घोर अँधेरा रे संतो,
गुरु बिन घोर अँधेरा जी,
बिना दिपक मंदरियो सुनों,
अब नहीं वस्तु का बेरा जी )
नहीं पुरुष का बेरा जी,
आठों पहर आळस माहीं खेले,
अब खेले खेल घनेरा जी,
(गुरु बिन घोर अँधेरा रे संतो,
गुरु बिन घोर अँधेरा जी,
बिना दिपक मंदरियो सुनों,
अब नहीं वस्तु का बेरा जी )
अरे मिरगे री नाभि बसे कस्तूरी,
नहीं मिरगे को बेरा जी,
रणीबनी में फिरे भटकतो,
अब सूंघे घास घनेरा जी,
(गुरु बिन घोर अँधेरा रे संतो,
गुरु बिन घोर अँधेरा जी,
बिना दिपक मंदरियो सुनों,
अब नहीं वस्तु का बेरा जी )
अरे जब तब आग रहवे पत्थर में,
नहीं पत्थर को बेरा जी,
चकमक चोटां लागै शबद री,
अब फेके आग चंपेरा जी,
(गुरु बिन घोर अँधेरा रे संतो,
गुरु बिन घोर अँधेरा जी,
बिना दिपक मंदरियो सुनों,
अब नहीं वस्तु का बेरा जी )
रामानंद मिल्या गुरु पूरा,
दिया सबद टकसाणा जी,
कहत कबीर सुणों भई संतो,
अब मिट गया भरम अँधेरा जी,
(गुरु बिन घोर अँधेरा रे संतो,
गुरु बिन घोर अँधेरा जी,
बिना दिपक मंदरियो सुनों,
अब नहीं वस्तु का बेरा जी )
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Ab Nahin Vastu Ka Bera Ji )