कबीर मारूँ मन कूँ मीनिंग Kabir Maru Man Ku Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Meaning (Hindi Bhavarth/Hindi Arth Sahit)
कबीर मारूँ मन कूँ, टूक टूक ह्नै जाइ।विष की क्यारी बोई करि, लुणत कहा पछिताइ॥
Kabir Maru Man Ku, Tuk Tuk Hane Jaai,
Vish Ki Kyaari Boi Kari, Lunat Kaha Pacchitaai.
मारूँ मन कूँ : मन को मरूँगा, (मन की विषय वासनाओं को मारना)
टूक टूक ह्नै जाइ : टुकड़े टुकड़े हो जाएगा.
विष की क्यारी बोई करि : विष की क्यारी बोकर, बीज बोकर.
क्यारी : फसल के लिए तैयार छोटा खेत.
लुणत : काट कर (विष की क्यारी को काट कर)
कहा : क्यों,
पछिताइ : पछाओगे.
टूक टूक ह्नै जाइ : टुकड़े टुकड़े हो जाएगा.
विष की क्यारी बोई करि : विष की क्यारी बोकर, बीज बोकर.
क्यारी : फसल के लिए तैयार छोटा खेत.
लुणत : काट कर (विष की क्यारी को काट कर)
कहा : क्यों,
पछिताइ : पछाओगे.
साधक को कबीर साहेब का सन्देश है की पहले तो तुमने ध्यान नहीं रखा और अपनी क्यारी में विष को बो दिया है. जब तुमने विष को बोया है, अपने मन रूपी खेत में मायाजनित व्यवहार रूपी विष की फसल को पैदा किया है तो अब तुम क्यों पछता रहे हो? स्पष्ट है की व्यक्ति जैसा बोयेगा वैसा ही काटेगा. तुमने पूरी जिंदगी माया के प्रभाव में आचरण किया, इश्वर के नाम की कोई भक्ति तुमने नहीं की.
अब जब उसका परिणाम आ रहा है तो तुम क्यों परेशान हो रहे हो.भाव है की हमें मानव जीवन अनेकों जन्मों के उपरान्त मिला है. यह एक खाली खेत के समान है, इसमें जैसी फसल हम बोयेंगे वैसी ही हमको पुनः प्राप्त होगी. अतः इसमें सद्कर्म और भक्ति रूपी फसल के बीज बोने हैं जिससे हमें ऐसा ही परिणाम पुनः प्राप्त होगा. यदि हम माया के जनित व्यवहार में ही लगे रहते हैं तो निश्चित ही विषकारी फसल के पात्र होंगे. यह संसार कर्म प्रधान है, जैसा कार्य हम करेंगे वैसे ही परिणाम हमको प्राप्त होंगे, इसलिए हमें चाहिए की हम सदा ही सद्कर्म करें और सत्संगति में रहें ताकि हमारी करनी में सुधार हो पाए. प्रस्तुत साखी में रूपक अलंकार की व्यंजना हुई है.
अब जब उसका परिणाम आ रहा है तो तुम क्यों परेशान हो रहे हो.भाव है की हमें मानव जीवन अनेकों जन्मों के उपरान्त मिला है. यह एक खाली खेत के समान है, इसमें जैसी फसल हम बोयेंगे वैसी ही हमको पुनः प्राप्त होगी. अतः इसमें सद्कर्म और भक्ति रूपी फसल के बीज बोने हैं जिससे हमें ऐसा ही परिणाम पुनः प्राप्त होगा. यदि हम माया के जनित व्यवहार में ही लगे रहते हैं तो निश्चित ही विषकारी फसल के पात्र होंगे. यह संसार कर्म प्रधान है, जैसा कार्य हम करेंगे वैसे ही परिणाम हमको प्राप्त होंगे, इसलिए हमें चाहिए की हम सदा ही सद्कर्म करें और सत्संगति में रहें ताकि हमारी करनी में सुधार हो पाए. प्रस्तुत साखी में रूपक अलंकार की व्यंजना हुई है.