कबीर सेरी साँकड़ी चंचल मनवाँ चोर मीनिंग Kabir Seri Sankadi Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Meaning (Hindi Bhavarth/Arth Sahit)
कबीर सेरी साँकड़ी चंचल मनवाँ चोर।गुण गावै लैलीन होइ, कछू एक मन मैं और॥
Kabir Seri Sankadi, Chanchal Manva Chor,
Gun Gave Leleen Hoi, Kachhu Ek Man Me Aur.
सेरी : गली.
साँकड़ी : संकड़ी, संकरी.
चंचल : चंचल है, स्थिर नहीं है.
मनवाँ चोर : मन चोर है, स्थिर नहीं है.
गुण गावै : गुणगान करता है, गुणों का बखान करता है.
लैलीन होइ : मगन होकर।
कछू एक : मन में कुछ और है लेकिन बाह्य रूप से कुछ और ही / प्रथक प्रदर्शित कर रहा है.
मन मैं और : उसके मन में कुछ और ही चल रहा है.
साँकड़ी : संकड़ी, संकरी.
चंचल : चंचल है, स्थिर नहीं है.
मनवाँ चोर : मन चोर है, स्थिर नहीं है.
गुण गावै : गुणगान करता है, गुणों का बखान करता है.
लैलीन होइ : मगन होकर।
कछू एक : मन में कुछ और है लेकिन बाह्य रूप से कुछ और ही / प्रथक प्रदर्शित कर रहा है.
मन मैं और : उसके मन में कुछ और ही चल रहा है.
इश्वर प्राप्ति, इश्वर के पास पंहुचने की गली तो अत्यंत ही संकड़ी है, तुम कैसे उस मार्ग तक पंहुच सकते हो? ऊपर से तुम्हारा ही मन स्थिर नहीं है, वह चंचल है. यह इश्वर के गुण तो गाता है लेकिन स्थिर नहीं है, उसमे लीन नहीं है. साधक का मन चंचल होकर चारों तरफ घूम रहा है. बाहर से तो वह इश्वर का गुणगान करता हुआ दिखाई प्रतीत होता है लेकिन उसके मन में कुछ और है, भाव है की उसके मन में सुमिरण नहीं अपितु संसार के मायाजनित व्यवहार घूम रहे हैं.
अभी साधक स्वंय को माया से अलग नहीं कर पाया है, माया अभी भी संलग्न है. इसीलिए उसका मन चारों तरफ विचरण कर रहा है. अतः कबीर साहेब का मूल भाव है की अपने मन को स्थिर करो और हरी सुमिरण में लगाओं क्योंकि यदि पूर्ण निष्ठां नहीं है तो प्रेम की गली जो अत्यंत ही संकरी है उससे गुजर पाना संभव नहीं होग. प्रस्तुत साखी में भेदकातिस्योक्ति अलंकार की व्यंजना हुई है.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |