मन जाणैं सब बात जाणत ही मीनिंग कबीर दोहे

मन जाणैं सब बात जाणत ही मीनिंग

मन जाणैं सब बात, जाणत ही औगुण करै।
काहे की कुसलात, कर दीपक कूँ बैं पड़ै॥
Man Jaane Sab Baat, Janat Hi Ogun Kare,
Kahe Ki Kuslaat, Kar Deepak Ku Be Pade.
मन जाणैं सब बात : यह मन उचित अनुचित/अच्छा बुरा सब जानता है.
जाणत ही औगुण करै : सब कुछ जानकार भी अवगुण ही करता है.
काहे की कुसलात : ऐसी स्थिति में कैसी कुशल क्षेम हो सकती है.
कर दीपक कूँ बैं पड़ै : हाथ में दीपक लेकर यदि कोई कुवे में पड़े.
कर : हाथ.
साहेब की वाणी है की यह मन अच्छा बुरा सब जानता है. यदि कोई हाथ में दीपक लेकर भी कुए में पड़े तो कोई कुशल कैसे हो सकता है. यह मन तो सब कुछ जानकार भी बुरा ही करता है. भाव है की इस मन को सब कुछ पता है लेकिन यह माया के भ्रम में पड़कर स्वंय की हानि ही करवाता है. ऐसे में कुशल कैसे हो सकती है. यदि कोई हाथ में दीपक लेकर कुए (विषय विकारों) में गिरे तो उसका क्या किया जा सकता है. ऐसी ही स्थिति मानव की होती है. उसे ज्ञान होने के उपरान्त भी वह माया के भ्रम में पड़ा रहता है और स्वंय की हानि करवाता है. भाव है की विषय वासनाओं के प्रभाव को व्यक्ति को समझना चाहिए और उसे ऐसी समस्त क्रियाओं से दूर रहना चाहिए. जीवन का उद्देश्य सदमार्ग पर चलते हुए इश्वर के नाम का सुमिरण करना है. मोह माया आदि से उसे विरक्ति ले लेनी चाहिए.
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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