तेरा संगी कोइ नहीं सब स्वारथ बँधी लोइ मीनिंग Tera Sangi Koi Nahi Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Meaning (Hindi Bhavarth/Hindi Arth)
तेरा संगी कोइ नहीं, सब स्वारथ बँधी लोइ।मनि परतीति न ऊपजै, जीव बेसास न होइ॥
Tera Sangi Koi Nahi, Sab Swarath Bandhi Loi,
Mani Marteeti Na Upaje, Jeev Besaas Na Hoi.
तेरा संगी कोइ नहीं : जीव का इस जगत में कोई संगी साथी नहीं है.
सब स्वारथ बँधी लोइ : सभी स्वार्थ के कारण एक दुसरे से बंधे पड़े हैं.
लोइ : लोग.
बँधी : बंधे हुए हैं.
मनि परतीति : मन में प्रीत उत्पन्न नहीं होती है.
न ऊपजै : उत्पन्न नहीं होती है.
जीव बेसास : जीव को विश्वास नहीं होता है.
न होइ : नहीं होता है.
प्रस्तुत साखी में कबीर साहेब की वाणी है की यह समस्त जगत स्वार्थ के बंधन में बंधा हुआ है. यहाँ पर कोई किसी से सच्ची प्रीत नहीं करता है. सच्चे प्रेम का किसी में उद्भव नहीं होता है, यही जगत में माया का प्रभाव है. भाव है की व्यक्ति को चाहिए की वह संसार/जगत के लोगों से प्रीत की इच्छा नहीं करे और इश्वर में अपने मन को लगाए. यदि इश्वर में उसका मन नहीं है तो इस जगत में उसे केवल स्वार्थ ही मिलने वाला है. यदि जीवात्मा का कोई साथी है तो वह इश्वर है, राम का नाम है. प्रत्तीती उत्पन्न नहीं होने का कारण यही है की लोग केवल स्वार्थजनित व्यवहार ही रखते हैं. सच्चा प्रेम कोई किसी से नहीं करता है, व्यक्ति के दुखो का कारण भी सांसारिक व्यवहार ही है. यदि हम संसार के लोगों से अपने सम्बन्ध नहीं रखकर उस पूर्ण परमात्मा से संपर्क रखे तो अवश्य ही मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा.
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सब स्वारथ बँधी लोइ : सभी स्वार्थ के कारण एक दुसरे से बंधे पड़े हैं.
लोइ : लोग.
बँधी : बंधे हुए हैं.
मनि परतीति : मन में प्रीत उत्पन्न नहीं होती है.
न ऊपजै : उत्पन्न नहीं होती है.
जीव बेसास : जीव को विश्वास नहीं होता है.
न होइ : नहीं होता है.
प्रस्तुत साखी में कबीर साहेब की वाणी है की यह समस्त जगत स्वार्थ के बंधन में बंधा हुआ है. यहाँ पर कोई किसी से सच्ची प्रीत नहीं करता है. सच्चे प्रेम का किसी में उद्भव नहीं होता है, यही जगत में माया का प्रभाव है. भाव है की व्यक्ति को चाहिए की वह संसार/जगत के लोगों से प्रीत की इच्छा नहीं करे और इश्वर में अपने मन को लगाए. यदि इश्वर में उसका मन नहीं है तो इस जगत में उसे केवल स्वार्थ ही मिलने वाला है. यदि जीवात्मा का कोई साथी है तो वह इश्वर है, राम का नाम है. प्रत्तीती उत्पन्न नहीं होने का कारण यही है की लोग केवल स्वार्थजनित व्यवहार ही रखते हैं. सच्चा प्रेम कोई किसी से नहीं करता है, व्यक्ति के दुखो का कारण भी सांसारिक व्यवहार ही है. यदि हम संसार के लोगों से अपने सम्बन्ध नहीं रखकर उस पूर्ण परमात्मा से संपर्क रखे तो अवश्य ही मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा.
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