सतगुरू हैं रंगरेज, चुनर मोरी रंग डारी, स्याही रंग छुड़ाये कै रे, दियो मजीठा रंग, धोए से छूटे नहीं रे, दिन दिन होत सुरंग,
सतगुरू हैं रंगरेज, चुनर मोरी रंग डारी।
भाव के कुण्ड,नेह के जल में । प्रेम रंग दई बोर, चश्के चाश लगाये कै रे,खूब रंगी चकचोर,
सतगुरू हैं रंगरेज, चुनर मोरी रंग डारी।
सतगुरू ने चुनरी रंगी रे, सतगुरू चतुर सुजान,
Satguru Bhajan Lyrics in Hindi
सब कुछ उन पर वार दू रें, तन मन और प्राण,
सतगुरू हैं रंगरेज, चुनर मोरी रंग डारी।
कह कबीर रंगरेज गुरू रे, मुझ पर हुये दयाल, शीतल चुनरी ओढ़ के रे, पही हू मगन निहाल ,
सतगुरू हैं रंगरेज, चुनर मोरी रंग डारी।
सतगुरु एक कुशल रंगरेज हैं, जिन्होंने मेरी चुनरी को गहरे प्रेम के रंग में रंग दिया है। उन्होंने पहले मेरे ऊपर लगे स्याही जैसे नकारात्मक रंगों को हटाया और फिर मजीठ (गहरे लाल) रंग से रंग दिया, जो धोने से भी नहीं छूटता और दिन-प्रतिदिन और भी गहरा होता जाता है।
भावना के कुण्ड में, नेह (स्नेह) के जल में, प्रेम के रंग में मुझे डुबोकर, सतगुरु ने मुझे पूरी तरह से रंग दिया है। इस प्रेम के रंग की चसक (लत) ऐसी लगी है कि अब यह रंग और भी गहरा होता जा रहा है। सतगुरु ने मेरी चुनरी को इस तरह रंगा है कि अब मैं तन, मन, धन और प्राण सब कुछ उन पर वारने के लिए तैयार हूँ। कबीर कहते हैं कि सतगुरु, जो एक महान रंगरेज हैं, ने मुझ पर दया की है। अब मैं इस शीतल (शांत) चुनरी को ओढ़कर मगन (प्रसन्न) और निहाल (धन्य) हो गया हूँ।
Satgur Hai Rangrez Chunar Meri - Sant Kabir Ji - RSSB Shabad