मिनखा देही है अनमोली
मिनखा देही है अनमोली
मिनखा देही है अनमोल री,
भजन बिना वृथा क्यूं खोवे,
भजन करो गुरु जम्भेश्वर को,
आवागमन का दुखड़ा खोवे।।
गर्भवास में कवल किया था,
कवल पलटे हरि विमुख होवे,
बालपने बालक संग रमियो,
जवान भयो नारि बस होवे।।
चालीसां में तृष्णा जागी,
मोह माया में पड़कर सोवे,
बेटा पोता और पड़पोता,
हस्ती, घोड़ा, बग्घी होवे।।
धन कर ऐश करूं दुनिया में,
मेरे बराबर कोई न होवे,
गर्व गुमान करै मत प्राणी,
गर्व कियो हिरण्यकशिपु रोवे।।
गर्व कियो लंकापति रावण,
सीता हरकर लंका खोवे,
सच्चा पायक रामचन्द्र को,
हनुमान बलकारी होवे।।
तन में तीर्थ न्हाव त्रिवेणी,
ज्ञान बिना मुक्ति नहीं होवे,
ज्ञान ही बन के मृग ने,
कस्तूरी बन बन में टोवे।।
अड़सठ तीर्थ एक सुभ्यागत,
मात-पिता, गुरु सेवा से होवे,
दोय कर जोड़ ऊदो जन बोले,
आवागमन कदे न होवे।।
मिनखा देही है अनमोल री,
भजन बिना वृथा क्यूं खोवे,
भजन करो गुरु जम्भेश्वर को,
आवागमन का दुखड़ा खोवे।।
भजन बिना वृथा क्यूं खोवे,
भजन करो गुरु जम्भेश्वर को,
आवागमन का दुखड़ा खोवे।।
गर्भवास में कवल किया था,
कवल पलटे हरि विमुख होवे,
बालपने बालक संग रमियो,
जवान भयो नारि बस होवे।।
चालीसां में तृष्णा जागी,
मोह माया में पड़कर सोवे,
बेटा पोता और पड़पोता,
हस्ती, घोड़ा, बग्घी होवे।।
धन कर ऐश करूं दुनिया में,
मेरे बराबर कोई न होवे,
गर्व गुमान करै मत प्राणी,
गर्व कियो हिरण्यकशिपु रोवे।।
गर्व कियो लंकापति रावण,
सीता हरकर लंका खोवे,
सच्चा पायक रामचन्द्र को,
हनुमान बलकारी होवे।।
तन में तीर्थ न्हाव त्रिवेणी,
ज्ञान बिना मुक्ति नहीं होवे,
ज्ञान ही बन के मृग ने,
कस्तूरी बन बन में टोवे।।
अड़सठ तीर्थ एक सुभ्यागत,
मात-पिता, गुरु सेवा से होवे,
दोय कर जोड़ ऊदो जन बोले,
आवागमन कदे न होवे।।
मिनखा देही है अनमोल री,
भजन बिना वृथा क्यूं खोवे,
भजन करो गुरु जम्भेश्वर को,
आवागमन का दुखड़ा खोवे।।
बिश्नोई समाज की सबसे प्रसिद्ध साखी - मिनखा देही by DrMadhuBishnoi
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Author - Saroj Jangir
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