तिरिया तृष्णा पापणी मीनिंग Tiriya Trishna Papni Hindi Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Meaning (Hindi Arth/Hindi Bhavarth)
तिरिया तृष्णा पापणी, तासूँ प्रीति न जोड़ि।पैड़ी चढ़ि पाछाँ पड़े, लागै मोटी खोड़ि॥
Triya Trishna Papani, Taasu Priti Na Jodi,
Paidi Chadhi Paccho Pade, Laage Moti Khodi.
तिरिया/त्रीया तृष्णा त्रिण्णाँ पापणी : त्रिया (स्त्री) और तृष्णा (माया) दोनों ही पापिनी हैं.
तासूँ प्रीति न जोड़ि : उनसे कोई प्रीत को मत जोड़ो, उनसे चित्त को मत लगाओ.
पैड़ी चढ़ि पाछाँ पड़े : एक पैडी, कदम/स्टेप चढ़ने पर यह पीछे पड़ जाती हैं.
लागै मोटी खोड़ि : बहुत ही बुरा परिणाम प्राप्त होता है.
तिरिया : त्रिया, स्त्री/नारी.
तृष्णा : माया, तृष्णा.
पापणी : पापिनी है, पापयुक्त है.
तासूँ : जिनसे/उससे (माया से)
प्रीति : स्नेह, प्रेम.
न जोड़ि : जोड़ो मत, हेत मत लगाओं.
पैड़ी चढ़ि : सीढ़ी को चढ़कर, कदम आगे बढाने से.
पाछाँ पड़े : पीछे पड़ जाती है.
लागै : लगती है (पीछे लग जाती है)
मोटी : बड़ी, ज्यादा.
खोड़ि : खोट/दोष.
तासूँ प्रीति न जोड़ि : उनसे कोई प्रीत को मत जोड़ो, उनसे चित्त को मत लगाओ.
पैड़ी चढ़ि पाछाँ पड़े : एक पैडी, कदम/स्टेप चढ़ने पर यह पीछे पड़ जाती हैं.
लागै मोटी खोड़ि : बहुत ही बुरा परिणाम प्राप्त होता है.
तिरिया : त्रिया, स्त्री/नारी.
तृष्णा : माया, तृष्णा.
पापणी : पापिनी है, पापयुक्त है.
तासूँ : जिनसे/उससे (माया से)
प्रीति : स्नेह, प्रेम.
न जोड़ि : जोड़ो मत, हेत मत लगाओं.
पैड़ी चढ़ि : सीढ़ी को चढ़कर, कदम आगे बढाने से.
पाछाँ पड़े : पीछे पड़ जाती है.
लागै : लगती है (पीछे लग जाती है)
मोटी : बड़ी, ज्यादा.
खोड़ि : खोट/दोष.
स्त्री और माया दोनों पापिनी हैं, इनसे प्रीत को नहीं जोड़नी चाहिए. एक कदम भी इनकी और चढ़ने, अग्रसर होने पर इसका बहुत ही बड़ा पाप लगता है. इस साखी का मूल भाव है त्रिया और तृष्णा एक समान हैं, दोनों ही जीव को पाट का भागी बनाती हैं. अतः दोनों को समझ कर इनसे दूर रहने में ही जीव की भलाई होती है.
तिरिया और तृष्णा दोनों ही भक्ति मार्ग में बाधक होती हैं क्योंकि ये व्यक्ति को सांसारिक बन्धनों से मुक्त नहीं होने देती हैं. कबीर साहेब ने अनेक स्थानों पर स्त्री का विरोध इन्ही कारणों से किया है क्योंकि वे स्त्री को माया का ही रूप समझते हैं जो जीवात्मा को संसार के बन्धनों में उलझा कर रख छोडती है.
तिरिया और तृष्णा दोनों ही भक्ति मार्ग में बाधक होती हैं क्योंकि ये व्यक्ति को सांसारिक बन्धनों से मुक्त नहीं होने देती हैं. कबीर साहेब ने अनेक स्थानों पर स्त्री का विरोध इन्ही कारणों से किया है क्योंकि वे स्त्री को माया का ही रूप समझते हैं जो जीवात्मा को संसार के बन्धनों में उलझा कर रख छोडती है.
भजन श्रेणी : कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग