जाऊं मैं सतगुरु ने बलहारी भजन

जाऊं मैं सतगुरु ने बलहारी भजन

सतगुरु मेरे सागड़ी,
भगवत सूं देय मिलाय,
ज्ञान गोला बरसाय के,
जम का फंद छुड़ाय।।

जाऊं मैं सतगुरु ने बलिहारी,
बंधन काट, किया निज मुक्ता,
सारी विपत निवारी,
म्हारा सतगुरु ने बलिहारी,
जाऊं मैं तो सतगुरु ने बलिहारी।।

बाणी सुणत प्रेम सुख उपज्यो,
दुरमति गई हमारी,
भरम करम का सांसा मेटिया,
दिया कपट उघाड़ी,
जाऊं मैं सतगुरु ने बलिहारी।।

माया बिरम का भेद समझाया,
सोहम लियो विचारी,
आदि पुरुष घट अंदर देख्या,
डायन दूर विडारी,
जाऊं मैं सतगुरु ने बलिहारी।।

दया करी मेरा सतगुरु दाता,
अबके लीना उबारी,
भवसागर सूं डूबत ताया,
ऐसो पर उपकारी,
जाऊं मैं सतगुरु ने बलिहारी।।

गुरु दादू के चरण कमल पर,
मेलूं शीश उतारी,
और ल्यो क्या आगे राखूं,
सुंदर भेंट तुम्हारी,
जाऊं मैं सतगुरु ने बलिहारी।।

जाऊं मैं सतगुरु ने बलिहारी,
बंधन काट, किया निज मुक्ता,
सारी विपत निवारी,
म्हारा सतगुरु ने बलिहारी,
जाऊं मैं तो सतगुरु ने बलिहारी।।


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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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