जिसके सर पे तेरा हाथ हो माँ भजन

जिसके सर पे तेरा हाथ हो माँ भजन

(मुखड़ा)
जिसके सिर पे तेरा हाथ हो माँ,
उसकी किस्मत का फिर तो क्या कहना।
देने वाली तू ही एक दाती,
कब से तरसे हैं ये भी दो नैना।
जिसके सिर पे तेरा हाथ हो माँ,
उसकी किस्मत का फिर तो क्या कहना।।

(अंतरा 1)
तन भी तेरा है, मन भी तेरा माँ,
तेरा तुझ पर किया मैंने अर्पण।
चार दिन की है जो ज़िंदगानी,
है ये जीवन तुझी पे समर्पण।
डोर कच्ची है जीवन की मेरी,
माँ पकड़ लो, करो अब न देरी।
देने वाली तू ही एक दाती,
कब से तरसे हैं ये भी दो नैना।
जिसके सिर पे तेरा हाथ हो माँ,
उसकी किस्मत का फिर तो क्या कहना।।

(अंतरा 2)
देर न कर, कहीं बुझ न जाए,
मेरे हृदय का दीपक कहीं माँ।
आस है तुझसे ओ ज्योतावाली,
दर्शन बिन बुझें न ये नैना।
वंचित न कर ममता से,
दम रोते हुए निकले न।
देने वाली तू ही एक दाती,
कब से तरसे हैं ये भी दो नैना।
जिसके सिर पे तेरा हाथ हो माँ,
उसकी किस्मत का फिर तो क्या कहना।।

(अंतरा 3)
छल-कपट माँ, मैं कुछ भी न चाहूँ,
ना ही चाहूँ मैं महलों में रहना।
सर झुके तो तेरे दर के आगे,
और दर इसको झुकने न देना।
पावन हो न पाएगा जीवन,
गर तेरा साथ ‘सुनील’ संग हो न।
देने वाली तू ही एक दाती,
कब से तरसे हैं ये भी दो नैना।
जिसके सिर पे तेरा हाथ हो माँ,
उसकी किस्मत का फिर तो क्या कहना।।

(पुनरावृत्ति - मुखड़ा)
जिसके सिर पे तेरा हाथ हो माँ,
उसकी किस्मत का फिर तो क्या कहना।
देने वाली तू ही एक दाती,
कब से तरसे हैं ये भी दो नैना।
जिसके सिर पे तेरा हाथ हो माँ,
उसकी किस्मत का फिर तो क्या कहना।।
 

हाथ दया का धर दे मेरे सर पे भजन  || lakhwinder singh lakha || navratri bhajan 2023

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