नमो नमो वृन्दावन चन्द जहाँ विलाश करत
नमो नमो वृन्दावन चन्द जहाँ विलाश करत
नमो नमो वृंदावन चन्द,
जहाँ विलास करत प्रिया प्रियतम,
स्वेच्छा मय स्वच्छंद,
नमो नमो वृंदावन चन्द।।
कबहूं जात नहीं ताको तज,
नित्य किशोर बिहारी,
सेवत रहत ताहि निज कर सो,
वैकुंठादि विसारी,
नमो नमो वृंदावन चन्द।।
और लोक अवतार अष्ट ली,
यह निज वन राजधानी,
चारों ओर भरयो जमुना जल,
उज्ज्वल रस की खानी,
नमो नमो वृंदावन चन्द।।
प्रेम स्वरूप विपिन वर राजत,
जुगल सेव अभिलाषी,
मेरी कहा एक मुख,
वर्णौं ग्रंथ देत है साखी,
नमो नमो वृंदावन चन्द।।
जहाँ बोलनी पटरानी राग धुनि,
डोलनी मृदंग सुहायो,
जाको जस सुख शिव ब्रह्मादिक,
नारदादि मुनि गायो,
नमो नमो वृंदावन चन्द।।
राधा कृपा बिना अति दुर्लभ,
सुलभ अनन्य व्रत लीनहे,
एक आस विश्वास प्रिया को,
और सकल तज दीन्हे,
नमो नमो वृंदावन चन्द।।
राम सखी जीवन फल पायो,
कियो प्रिया जस गान,
छोड़ी सब पर पंच जगत के,
इहि बड़ाई मान,
नमो नमो वृंदावन चन्द।।
नमो नमो वृंदावन चन्द,
जहाँ विलास करत प्रिया प्रियतम,
स्वेच्छा मय स्वच्छंद,
नमो नमो वृंदावन चन्द।।
जहाँ विलास करत प्रिया प्रियतम,
स्वेच्छा मय स्वच्छंद,
नमो नमो वृंदावन चन्द।।
कबहूं जात नहीं ताको तज,
नित्य किशोर बिहारी,
सेवत रहत ताहि निज कर सो,
वैकुंठादि विसारी,
नमो नमो वृंदावन चन्द।।
और लोक अवतार अष्ट ली,
यह निज वन राजधानी,
चारों ओर भरयो जमुना जल,
उज्ज्वल रस की खानी,
नमो नमो वृंदावन चन्द।।
प्रेम स्वरूप विपिन वर राजत,
जुगल सेव अभिलाषी,
मेरी कहा एक मुख,
वर्णौं ग्रंथ देत है साखी,
नमो नमो वृंदावन चन्द।।
जहाँ बोलनी पटरानी राग धुनि,
डोलनी मृदंग सुहायो,
जाको जस सुख शिव ब्रह्मादिक,
नारदादि मुनि गायो,
नमो नमो वृंदावन चन्द।।
राधा कृपा बिना अति दुर्लभ,
सुलभ अनन्य व्रत लीनहे,
एक आस विश्वास प्रिया को,
और सकल तज दीन्हे,
नमो नमो वृंदावन चन्द।।
राम सखी जीवन फल पायो,
कियो प्रिया जस गान,
छोड़ी सब पर पंच जगत के,
इहि बड़ाई मान,
नमो नमो वृंदावन चन्द।।
नमो नमो वृंदावन चन्द,
जहाँ विलास करत प्रिया प्रियतम,
स्वेच्छा मय स्वच्छंद,
नमो नमो वृंदावन चन्द।।
नमो नमो श्रीवृंदावन-चंद।
नित्य अनंत अनादि एकरस,प्रिय प्यारी विहरत स्वच्छंद॥
सत्चित आनंद रूपमय, खग, मृग,द्रमुवेली वर बृंद।
'भगवतरसिक' निरंतर सेवत, मधुप भये पीवत मकरंद।।
नित्य अनंत अनादि एकरस,प्रिय प्यारी विहरत स्वच्छंद॥
सत्चित आनंद रूपमय, खग, मृग,द्रमुवेली वर बृंद।
'भगवतरसिक' निरंतर सेवत, मधुप भये पीवत मकरंद।।
|| नमो नमो श्री वृंदावन चंद || Nikunjwasi Swami Shri Ram Sharma ||
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Author - Saroj Jangir
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