शंकर शिव भोले उमापति महादेव मीनिंग Shankar Shiv Bhole

शंकर शिव भोले उमापति महादेव Shankar Shiv Bhole Meaning

 
शंकर शिव भोले उमापति महादेव हिंदी मीनिंग Shankar Shiv Bhole Lyrics Meaning Hindi

ॐ, ॐ (रागात्मक ध्वनि)
शंकर शिव भोले उमापति महादेव
शंकर शिव भोले उमापति महादेव
पालनहार परमेश्वर, विश्वरूप महादेव
पालनहार परमेश्वर, विश्वरूप महादेव
महादेव, महादेव, महादेव।
महादेव, महादेव, महा देव। 
 
शंकर : कल्याणकारी, शुभंकर, भगवान शिव ही अत्यंत ही कल्याणकारी देव हैं।
शिव : सकारात्मक और केंद्रित कल्याणकारी ऊर्जा शिव हैं।
भोले : शिव निर्मल हृदय के हैं।
उमापति : शिव पार्वती के पति हैं, इसलिए उमापति हैं।
महादेव : जो देवों के देव हैं।
पालनहार : शिव जगत के पालनहार हैं।
परमेश्वर : सम्पूर्ण जगत के स्वामी हैं, ईश्वर हैं.
विश्वरूप : विराट रूप, वृहद रूप। 
महेशं सुरेशं सुरारार्ति नाशं
विभुं विश्व नाथं विभूत्यङ्ग भूषम्।
विरूपाक्ष मिन्द्वर्क वह्नि त्रिनेत्रं
सदानन्द मीडे प्रभुं पञ्च वक्त्रम्।
सदानन्द मीडे प्रभुं पञ्च वक्त्रम्।
सदानन्द मीडे प्रभुं पञ्च वक्त्रम्।
 
महेशं : शिव महा ईश्वर हैं, देवों के देव हैं, इसलिए महेश हैं।
सुरेशं : जो देवताओं के ईश्वर हैं।
सुरारार्ति नाशं (नाशम ) : जो देवताओं के संकट (आर्ति ) के नाश करने वाले हैं।
विभुं : शिव समस्त जगत के स्वामी हैं (विभु -ब्रह्मांड)
विश्व नाथं : जो विश्व के नाथ हैं, विश्व के  स्वामी हैं।
विभूत्यङ्ग भूषम् : जिनके देह पर पवित्र भभूति लगी शोभित है (विभूति-भभूति, अंग-शरीर, भूषम -शोभित है )
विरूपाक्ष मिन्द्वर्क : विशाल (असामन्य) नेत्र जो चन्द्रमा, सूर्य के प्रतीक हैं  -विरूप : असामान्य, अक्ष-आँखें, इंदु -चन्द्रमा, अर्क -सूर्य)
वह्नि त्रिनेत्रं : शिव के त्रिनेत्र जो सूर्य चन्द्रमा के अतिरिक्त अग्नि को समाहित किए हुए हैं।
सदानन्द मीडे : सदैव ही कल्याणकारी ईश्वर।
प्रभुं : ईश्वर।
पञ्च वक्त्रम् : पांच मुख वाले (शिव) 
नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते
नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते ।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य
नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य ॥
 
नमस्ते नमस्ते : आपको नमन है, हम सभी आपके चरणों में अपना शीश झुकाते हैं.
विभो विश्व मूर्ते : जो समस्त ब्रह्माण्ड के कण कण में हैं, स्वामी हैं। विभु-समस्त संसार / जगत, मूर्ति-के रूप में।
चिदानन्द मूर्ते : जो की चेतन मय आनंद मूर्ति हैं।
तपो योगगम्य : जो की तपस और योग के स्वामी, अधिकारी हैं।
श्रुति ज्ञानगम्य : जो की वेद (श्रुति) के अधिकारी हैं, स्वामी हैं। 
 
त्वत्तो जगद् भवति देव भव स्मरारे
त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश
लिङ्गात्मकं हर चराचर विश्व रूपिन्,
नमस्ते नमस्ते तपो योगगम्य
 
त्वत्तो : आपमें (शिव में)
जगद् भवति : जिससे समस्त जगत/संसार है।
देव भव : समस्त देवों के देव।
स्मरारे : कामदेव के शत्रु।
त्वय्येव : आपमें।
तिष्ठति : आप सम्पूर्ण संसार में व्याप्त हैं।
जगन्मृड : समस्त जगत पर उपकार करने वाले।
विश्वनाथ : विश्व के स्वामी।
त्वय्येव : आपमें।
गच्छति लयं : समस्त संसार आपमें ही विघटित है।
जगदेतदीश : जगत के ईश्वर।
लिङ्गात्मकं : आप ही लिंग हैं।
हर : दूर करते हैं, मुक्त करते हैं।
चराचर आप ही चर और अचर (स्थाई/अस्थाई) के स्वामी हैं।
विश्व रूपिन् : सम्पूर्ण विश्व के रूप में।

शंकर शिव भोले उमापति महादेव,
शंकर शिव भोले उमापति महादेव,
पालनहार परमेश्वर, विश्वरूप महादेव,
पालनहार परमेश्वर, विश्वरूप महादेव,
महादेव, महादेव, महादेव,
ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय,
ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय, 
 
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भजन श्रेणी : शिव भजन ( Shiv Bhajan)
 

Shankar Shiv Bhole Umapati Mahadev Devo..Har Har Mahadev

पशूनां पतिं पापनाशं परेशं
गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम्।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं
महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम्।।१।।
पशूनां पतिं पाप नाशं परेशं
गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम्।
जटा जूट मध्ये स्फुरद् गाङ्गवारिं
महादेव मेकं स्मरामि स्मरारिम्।।१।।

महेशं सुरेशं सुरारार्तिनाशं
विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं
सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।।२।।
❍महेशं सुरेशं सुरारार्ति नाशं
विभुं विश्व नाथं विभूत्यङ्ग भूषम्।
विरूपाक्ष मिन्द्वर्क वह्नि त्रिनेत्रं
सदानन्द मीडे प्रभुं पञ्च वक्त्रम्।।२।।

गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं
गवेन्द्राधिरूढं गणातीतरूपम्।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं
भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।।३।।
गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं
गवेन्द्राधि रूढं गणातीत रूपम्।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं
भवानी कलत्रं भजे पञ्च वक्त्रम्।।३।।

शिवाकान्त शम्भो शशाङ्कार्धमौले
महेशान शूलिन् जटाजूटधारिन्।
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप
प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।।४।।
शिवाकान्त शम्भो शशाङ्कार्ध मौले
महेशान शूलिन् जटा जूट धारिन्।
त्वमेको जगद् व्यापको विश्व रूप
प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्ण रूप।।४।।

परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं
निरीहं निराकारमोङ्कारवेद्यम्।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं
तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।।५।।
परात्मान मेकं जगद् बीजमाद्यं
निरीहं निराकार मोङ्कार वेद्यम्।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं
तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।।५।।

न भूमिर्न चापो न वह्निर्न वायु-
र्न चाकाश आस्ते न तन्द्रा न निद्रा।
न ग्रीष्मो न शीतो न देशो न वेषो
न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीडे।।६।।
न भूमिर्न चापो न वह्निर्न वायुर्
न चाकाश आस्ते न तन्द्रा न निद्रा।
न ग्रीष्मो न शीतो न देशो न वेषो
न यस्यास्ति मूर्तिस् त्रिमूर्तिं तमीडे।।६।।

अजं शाश्वतं कारणं कारणानां
शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।
तुरीयं तमःपारमाद्यन्तहीनं
प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम्।।७।।
अजं शाश्वतं कारणं कारणानां
शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।
तुरीयं तमः पार माद्यन्त हीनं
प्रपद्ये परं पावनं द्वैत हीनम्।।७।।

नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते
नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य
नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य।।८।।
नमस्ते नमस्ते विभो विश्व मूर्ते
नमस्ते नमस्ते चिदानन्द मूर्ते।
नमस्ते नमस्ते तपो योगगम्य
नमस्ते नमस्ते श्रुति ज्ञानगम्य।।८।।

प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ
महादेव शम्भो महेश त्रिनेत्र।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे
त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्यः।।९।।
प्रभो शूलपाणे विभो विश्व नाथ
महादेव शम्भो महेश त्रिनेत्र।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे
त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्यः।।९।।

शम्भो महेश करुणामय शूलपाणे
गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।
काशीपते करुणा जगदेतदेक-
स्त्वं हंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।।१०।।
शम्भो महेश करुणामय शूलपाणे
गौरीपते पशुपते पशुपाश नाशिन्।
काशीपते करुणा जगदेतदेकस्
त्वं हंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।।१०।।

त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे
त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश
लिङ्गात्मकं हर चराचरविश्वरूपिन्।।११।।
त्वत्तो जगद् भवति देव भव स्मरारे
त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश
लिङ्गात्मकं हर चराचर विश्व रूपिन्।।११।।
।।इति श्रीमच्छङ्कराचार्यकृतो वेदसारशिवस्तवः सम्पूर्ण।।
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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