दर्शन करल्यो जी हरि की लीला भजन

दर्शन करल्यो जी हरि की लीला है कृष्णा भजन

दर्शन करल्यो जी,
हरि की लीला है,
थे हिय में धर लो जी,
हरि की लीला है।।

आ लीला है रंग रंगीली,
कोई लाल, हरी, कोई पीली,
आ नित नव प्रेम रंगीली,
कोमल, निर्मल, चमकीली,
धारण करल्यो जी,
हरि की लीला है,
थे दर्शन करल्यो जी,
हरि की लीला है।।

कहु गंगा जी की धारा है,
कहु ऊंडा पानी खारा है,
कहु बिन चाहा ही बरसे है,
कहु पानी खातिर तरसे है,
घबरा मत जाईजो जी,
हरि की लीला है,
थे दर्शन करल्यो जी,
हरि की लीला है।।

कोई जन्मया, बंटे बधाई है,
कोई मर गया, करे उठाई है,
कोई हो रहा ब्याह, सगाई है,
कोई लड़ रहया, लोग-लुगाई है,
थे डर मत जाईजो जी,
हरि की लीला है,
थे दर्शन करल्यो जी,
हरि की लीला है।।

कोई धनवंता, कोई चपरासी,
कोई घरबारी, कोई सन्यासी,
कोई तर्कबाज, कोई विश्वासी,
कोई समझदार, कोई बकवासी,
थे झांकी करल्यो जी,
हरि की लीला है,
थे दर्शन करल्यो जी,
हरि की लीला है।।

कोई खावे है, कोई खोवे है,
कोई सिसक-सिसक कर रोवे है,
कोई लाम्बा पग कर सोवे है,
कोई टुक-टुक बैठा जोवे है,
जोवत रहिजो जी,
हरि की लीला है,
थे दर्शन करल्यो जी,
हरि की लीला है।।

अब कितरी कहूं कठे ताई,
कोई नाप-तोल गिनती नाही,
ये ना-ना रूप हरि का है,
लीला बिन लागे फीका है,
थे चित में धरल्यो जी,
हरि की लीला है,
थे दर्शन करल्यो जी,
हरि की लीला है।।

समंदर दवात, कागज धरती,
सूर, नर, सो लिखे सरस्वती,
वा लिखती हरदम जावे है,
लीला को पार न पावे है,
कोई बिसर मत जाईजो जी,
हरि की लीला है,
थे दर्शन करल्यो जी,
हरि की लीला है।।

दर्शन करल्यो जी,
हरि की लीला है,
थे हिय में धर लो जी,
हरि की लीला है।।


दर्शन करल्यो जी हरि की लीला है!! Bhajan By PH. M. Dr. Shri Ramprasad Ji Maharaj

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“सब कुछ हरि की लीला है।” जो यह समझ लेता है, उसके लिए दुख और सुख, हानि और लाभ, जीवन और मृत्यु — सब एक ही माला के मोती बन जाते हैं। संसार में जो कुछ भी घट रहा है — नदी का बहना, वर्षा का बरसना, किसी का जन्म, किसी का प्रस्थान — सब उसी अनंत खेल का हिस्सा हैं, जहाँ कोई छाया नहीं, केवल प्रकाश है। यह भाव संसार को त्यागने की नहीं, उसे पहचानने की प्रेरणा देता है। जब मन हर परिस्थिति में हरि की उपस्थिति देखना सीख जाए, तब शिकायतें शांत हो जाती हैं और समर्पण का सागर उमड़ आता है।

यह दृष्टि हमें देखने से आगे “दर्शन” तक ले जाती है। जो घटनाएँ पहले बिखरी हुई लगती थीं, वे एक नाटक के पात्र बन जाती हैं जिसमें हर कोई अपनी भूमिका निभा रहा है। कोई अमीर है, कोई संन्यासी, कोई रो रहा, कोई हँस रहा — लेकिन ये सब विविध रंग मिलकर उस चित्र को पूर्ण बनाते हैं जिसे “हरि लीला” कहते हैं। यह अनुभूति व्यक्ति को मोह से नहीं, बल्कि समझ से मुक्त करती है। वह बाहर होने के बजाय भीतर से देखना शुरू करता है, और तभी जीवन में सौंदर्य उतर आता है।

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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