जब भी मुझको याद करोगे भजन
जब भी मुझको याद करोगे भजन
जब भी मुझको याद करोगे,
जब भी मुझको याद करोगे,
जब भी मुझको याद करोगे — मैं आऊँगा।
शिरडी की समाधि में मेरे प्राण बसे हैं,
शिरडी की समाधि में मेरे प्राण बसे हैं...
ध्यान लगाओ, हाँ ध्यान लगाओ,
मुझे सामने ही पाओगे।
नज़र से कहीं दूर नहीं जा पाओगे।
अलख जगाओ, ज्योत जलाओ,
अलख जगाओ, ज्योत जलाओ,
मैं दिखूँगा —
शिरडी की समाधि में मेरे प्राण बसे हैं...
(अंतरा 2)
मैं भक्तों से, हाँ मैं भक्तों से
नहीं बिछड़कर रह सकता हूँ।
भक्तों का दुख-दर्द ज़रा भी सह सकता हूँ।
भीतर के पट खोल रे बंदे,
भीतर के पट खोल — तार से तार मिलाओ।
शिरडी की समाधि में मेरे प्राण बसे हैं...
(अंतरा 3)
शिरडी से जो —
ओ शिरडी से जो सच्चे दिल से प्यार करेगा,
भवसागर की लहरों में वो नहीं बहेगा।
यहाँ वहाँ, हर थल में मेरी —
हाँ, यहाँ वहाँ हर थल में मेरी खुशबू फैली।
शिरडी की समाधि में मेरे प्राण बसे हैं...
(अंतरा 4)
मुझ पर अपना —
ओ मुझ पर अपना जिसने सब कुछ किया समर्पित,
मैं भी उस पर कर देता हूँ सब कुछ अर्पित।
मुझ में और भक्त में कोई —
मुझ में और भक्त में कोई भेद नहीं है।
शिरडी की समाधि में मेरे प्राण बसे हैं...
(पुनरावृत्ति)
जब भी मुझको याद करोगे — मैं आऊँगा,
शिरडी की समाधि में मेरे प्राण बसे हैं... (×4)
जब भी मुझको याद करोगे,
जब भी मुझको याद करोगे — मैं आऊँगा।
शिरडी की समाधि में मेरे प्राण बसे हैं,
शिरडी की समाधि में मेरे प्राण बसे हैं...
ध्यान लगाओ, हाँ ध्यान लगाओ,
मुझे सामने ही पाओगे।
नज़र से कहीं दूर नहीं जा पाओगे।
अलख जगाओ, ज्योत जलाओ,
अलख जगाओ, ज्योत जलाओ,
मैं दिखूँगा —
शिरडी की समाधि में मेरे प्राण बसे हैं...
(अंतरा 2)
मैं भक्तों से, हाँ मैं भक्तों से
नहीं बिछड़कर रह सकता हूँ।
भक्तों का दुख-दर्द ज़रा भी सह सकता हूँ।
भीतर के पट खोल रे बंदे,
भीतर के पट खोल — तार से तार मिलाओ।
शिरडी की समाधि में मेरे प्राण बसे हैं...
(अंतरा 3)
शिरडी से जो —
ओ शिरडी से जो सच्चे दिल से प्यार करेगा,
भवसागर की लहरों में वो नहीं बहेगा।
यहाँ वहाँ, हर थल में मेरी —
हाँ, यहाँ वहाँ हर थल में मेरी खुशबू फैली।
शिरडी की समाधि में मेरे प्राण बसे हैं...
(अंतरा 4)
मुझ पर अपना —
ओ मुझ पर अपना जिसने सब कुछ किया समर्पित,
मैं भी उस पर कर देता हूँ सब कुछ अर्पित।
मुझ में और भक्त में कोई —
मुझ में और भक्त में कोई भेद नहीं है।
शिरडी की समाधि में मेरे प्राण बसे हैं...
(पुनरावृत्ति)
जब भी मुझको याद करोगे — मैं आऊँगा,
शिरडी की समाधि में मेरे प्राण बसे हैं... (×4)
Shirdi Ki Samadhi Mein C. Laxmichand | Sai Baba Bhajan | Shirdi Sai Baba | Sai Bhajans
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Song Credits:
Song Name: Shirdi Ki Samadhi Mein
Album: Shri Sai Jyot
Singer: C. Laxmichand
Music Director: C. Laxmichand
Lyrics: Shivshankar Vasistha
Graphics: Sadique
Song Name: Shirdi Ki Samadhi Mein
Album: Shri Sai Jyot
Singer: C. Laxmichand
Music Director: C. Laxmichand
Lyrics: Shivshankar Vasistha
Graphics: Sadique
प्रभु की कृपा का वह पवित्र धाम, जहाँ उनकी उपस्थिति हर भक्त के हृदय में बसी है, एक ऐसी ज्योति है जो सदा प्रज्वलित रहती है। भक्त का सच्चा स्मरण और ध्यान प्रभु को उसके सामने ला खड़ा करता है, मानो वह हर पल उसके साथ ही हों। यह भक्ति का वह गहरा बंधन है, जो भक्त को प्रभु की निकटता का अनुभव कराता है, और उसे यह विश्वास दिलाता है कि वह कभी भी उनसे दूर नहीं हो सकता। उनकी कृपा की यह खुशबू सृष्टि के हर कोने में फैली है, जो भक्त के मन में एक अलख जगाती है और उसे प्रभु के प्रेम में डुबो देती है। यह स्मरण और समर्पण ही भक्त को भवसागर की लहरों से पार होने की शक्ति देता है।
प्रभु और भक्त के बीच का रिश्ता इतना गहरा है कि वह किसी भेद को नहीं मानता। जब भक्त अपने हृदय के पट खोलकर प्रभु को पूर्णतः समर्पित कर देता है, तब प्रभु भी उस पर अपनी सारी कृपा उड़ेल देते हैं। उनकी करुणा ऐसी है कि वह भक्तों के दुख-दर्द को सहन नहीं कर सकते और सदा उनके साथ रहकर उनकी हर पुकार सुनते हैं। यह प्रभु की वह अनन्य कृपा है, जो भक्त को यह अनुभव कराती है कि वह और प्रभु एक ही हैं। उनकी शरण में रहने वाला भक्त न केवल अपने जीवन को सार्थक बनाता है, बल्कि उनकी कृपा की उस पवित्र धारा में डूबकर सदा आनंद और शांति का अनुभव करता है।
प्रभु और भक्त के बीच का रिश्ता इतना गहरा है कि वह किसी भेद को नहीं मानता। जब भक्त अपने हृदय के पट खोलकर प्रभु को पूर्णतः समर्पित कर देता है, तब प्रभु भी उस पर अपनी सारी कृपा उड़ेल देते हैं। उनकी करुणा ऐसी है कि वह भक्तों के दुख-दर्द को सहन नहीं कर सकते और सदा उनके साथ रहकर उनकी हर पुकार सुनते हैं। यह प्रभु की वह अनन्य कृपा है, जो भक्त को यह अनुभव कराती है कि वह और प्रभु एक ही हैं। उनकी शरण में रहने वाला भक्त न केवल अपने जीवन को सार्थक बनाता है, बल्कि उनकी कृपा की उस पवित्र धारा में डूबकर सदा आनंद और शांति का अनुभव करता है।
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Author - Saroj Jangir
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